मुर्ख चरित्रहीन स्त्री | Murkh Charitrhin Stri

मुर्ख चरित्रहीन स्त्री | Murkh Charitrhin Stri : किसी स्थान में एक कृषक – दम्पती निवास करते थे। किसान तो वृद्ध हो चुका था, जबकि उसकी पत्नी अभी तक जवान थी। एक दिन एक ठग ने उसे घर से निकलते देख लिया। उसने उसका पीछा किया और उसके सामने जाकर बोला-‘सुंदरी ! मैं तो विधुर हूं और वृद्ध की पत्नी होने के कारण तुम भी विधवाओं जैसा ही जीवन व्यतीत कर रही हो। चलो, हम दोनों यहां से भागकर किसी दूसरे स्थान पर जाकर सुखपूर्वक रहें?’
किसान की पली को सुझाव पसंद आ गया। अपनी सहमति जताकर वह घर लौट गई।
रात होने पर जब उसका पति सो गया तो उसने अपने पति का सारा धन समेटा और उसे लेकर प्रात:काल उस ठग के साथ वहां से प्रस्थान कर गई।

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मुर्ख चरित्रहीन स्त्री | Murkh Charitrhin Stri : जब वे दोनों अपने ग्राम से बहुत दूर निकल गए तो मार्ग में उन्हें एक गहरी नदी मिली। उस समय उस ठग के मन में विचार आया कि इस पहले से ही भोगी हुई स्त्री को अपने साथ ले जाकर क्या करूंगा! यह विचार करके उसने कृषक – पत्नी से कहा-‘प्रिये ! यह नदी बहुत गहरी है। ऐसा करता हूं कि पहले इस गठरी को ले जाकर उस किनारे पर रख आता हूं, बाद में तुमको अपनी पीठ पर लादकर उस पार ले जाऊंगा।’ कृषक – पत्नी बोली-‘ठीक है। जैसा तुम्हें उचित लगे, वैसा ही करो।’ जब वह कृषक – पत्नी उसे गठरी देने लगी तो ठग बोला – ‘अपने पहने हुए गहने और अपने शरीर पर पहने हुए वस्त्र भी उतारकर दे दो। ऐसा करने से तुम्हारे कपड़े भी भीगने से बचे रहेंगे।’ कृषक – पत्नी ने उसे अपने शरीर पर पहने गहने और वस्त्र भी उतारकर दे दिए।

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मुर्ख चरित्रहीन स्त्री | Murkh Charitrhin Stri : वह बिल्कुल निर्वस्त्र होकर नदी के तट पर बैठ गई। ठग उन वस्तुओं को लेकर नदी के दूसरे किनारे पर पहुंचा और फिर कभी लौटकर नहीं आया। वह स्त्री अपने प्रेमी के लौटने की प्रतीक्षा में बैठी थी कि तभी एक गीदड़ी अपने मुंह में मांस का एक टुकड़ा दबाए उसके समीप पहुंची। उसे नदी के किनारे जल में बैठी एक मछली दिखाई दी। उसने मांस का टुकड़ा जमीन पर रखा और उस मछली पर झपटी । उसी समय आकाश से एक गिद्ध ने झपट्टा मारा ओर वह गीदड़ी के रखे मांस को उठाकर चलता बना। उधर गीदड़ी को स्वयं पर झपटते देख मछली भी जल में डुबकी लगा गई। उसकी यह हालत देखकर किसान की पत्नी हंस पड़ी। वह गीदड़ी से बोली – ‘अरे मूर्ख ! सब कुछ खोकर भी अब तुम किसकी राह देख रही हो?’

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मुर्ख चरित्रहीन स्त्री | Murkh Charitrhin Stri :  गीदड़ी उसकी ओर उपहास – भरी नजरों से देखती हुई बोली – मूर्ख किसे कह रही हो नादान स्त्री! तुम तो मेरे से भी ज्यादा मूर्ख हो। मैंने तो अपना आहार ही गंवाया है किंतु तुमने तो अपने पति को भी खो दिया, प्रेमी भी हाथ से गया और अब साथ लाए धन को भी गंवाकर नदी किनारे नंगी होकर बैठी हो। तुम अब किसकी राह देख रही हो?’ मगर से यह कहानी सुनकर वानर ने कहा – ‘कृतघ्न ! मैं तुम्हें कोई उपाय नहीं बताऊंगा। अबसे तुम मुझे अपना मित्र भी मत कहना। सज्जनों के बताए मार्ग पर जो व्यक्ति नहीं चलता, उसका विनाश अवश्य होता है। वह व्यक्ति उसी प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे घंटाधारी ऊंट हुआ था। मगर ने पूछा-‘‘यह घंटाधारी ऊंट कौन था ?’ वानर बोला – ‘सुनाता हूं, सुनो।’

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Hind Patrika

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