मार्कन्डेय | Markandey : मार्कण्डेय, मृकुन्द कभी भी विवाह न करने का प्रण लिया हुआ था। वह सदा नर नारायण के नाम के जाप में लगे रहते थे। अपने पिता से आज्ञा लेकर एक बार वह तपस्या के लिए जंगल की ओर चल दिए। इन्द्रदेव यह देख भयभीत हो गए कि कहीं मार्कण्डेय अपनी भक्ति के कारण उनसे अधिक शक्तिशाली न बन जाए और उनका स्थान न ले ले। अत: उन्होंने कामदेव व अप्सराओं को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा, परन्तु सब व्यर्थ रहा।
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कई वर्षों के पश्चात् नारायण ने मार्कण्डेय को दर्शन दिए और वरदान माँगने के लिए कहा, “प्रभु, मुझे अपनी माया के दर्शन करा दीजिए।” मार्कण्डेय बोले। “ऐसा ही होगा, परन्तु सही समय आने पर” नारायण बोले। मार्कण्डेय वापस हिमालय पर पुष्पभद्रा नदी के किनारे आश्रम में रहने के लिये आ गए। कुछ समय पश्चात् आकाश का रंग परिवर्तित हो गया। तेज हवायें चलने लगी।
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मार्कन्डेय | Markandey : भारी बरसात तथा तेजी के साथ आँधी तूफान आ गया। शीघ्र ही वहाँ चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा। धीरे-धीरे पानी का स्तर ऊँचा होता चला गया और पहाड़ व पर्वत पानी में डूबने लगे। तब ऐसी स्थिति देखकर मार्कण्डेय ने आश्रम को छोड़ दिया और पानी से बचने के लिए पर्वत पर चढ़ गए। अचानक यह देखकर वह हैरान हो गए कि जैसे-जैसे वह पर्वत पर चढ़ते जा रहे थे वैसे-वैसे, पानी का स्तर ऊँचा और ऊँचा होता जा रहा था पर उनके पैरों से ऊपर नहीं चढ़ रहा था।
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शीघ्र ही सारी पृथ्वी पानी में डूब गई। यहाँ तक कि कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। परन्तु मार्कण्डेय अब भी पहले के समान ही सुरक्षित थे। अचानक मार्कण्डेय ने एक बरगद के पेड़ को देखा। उन्होंने बरगद के पेड़ की सबसे ऊँची शाखा पर बैठने का विचार किया। और वहाँ बैठकर तब तक इंतज़ार करने की सोची, जब तक पानी का स्तर नीचे नहीं आ जाता यह सोचकर वह जैसे ही पेड़ पर कूदे, उन्होंने एक सुंदर बच्चे को उसकी पत्तियों में पड़ा देखा.
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मार्कन्डेय | Markandey : उसका चेहरा दिव्य प्रकाश से चमक रहा था जैसे ही वो बच्चे को उठाने लगे, बच्चे ने जोर से साँस ली। अचानक मार्कण्डेय बच्चे के मुँह मे प्रवेश कर गए। मार्कण्डेय को ऐसा लगा कि जैसे वे किसी गहरी सुरंग में जा रहे हों। अचानक वह जमीन से टकराए। वहाँ उन्होंने जो देखा उसे देखकर, वह हैरान हो गए। उनके चारों ओर सभी कुछ सामान्य था। पूरा विश्व सूखा था, लोग अपना जीवन सामान्य रूप से बिता रहे थे। वहाँ बारिश व पानी का कहीं कोई नामों निशान न था।
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मार्कन्डेय | Markandey : अचानक हवा का एक तेज झोंका आया और मार्कण्डेय हवा के साथ एक तिनके के समान उड़ गए। थोड़ी देर बाद उन्होंने अपने आपको उसी बरगद के वृक्ष पर पाया। जिसके आस-पास पहले की तरह पानी भरा हुआ था। यह देखकर वह बहुत हैरान हो गए। तभी उन्होंने भगवान् शिव तथा पार्वती को नन्दी पर आकाश मार्ग से आते देखा। मार्कण्डेय ने उन्हें बुलाया और सम्मानपूर्वक नमस्कार किया और जो कुछ हुआ उसके विषय में बताया।
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मार्कन्डेय | Markandey : इस पर भगवन शिव बोले, “मार्कंद्य, तुमने अपनी तपस्या पूरी होने के बाद नर नारायण से उनकी माया देखने की इच्छा प्रकट की थी, यह सब वही हैं. वह बालक, जिसने तुम्हे मुंह से खिंच लिया था, वह स्वयं भगवन विष्णु ही थे. नर नारायण स्वयं भगवान् विष्णु का ही एक रूप हैं.”
“कृपया मुझे भगवान के अन्य रूपों के विषय में बताइए,” मार्कण्डेय ने शिव से प्रार्थना की। भगवान् शिव बोले, “दिव्य प्रभु ब्रह्मा देव इस समूची सृष्टि के रचयिता हैं। और भगवान् विष्णु उस सृष्टि के संरक्षक है अर्थात् देखरेख करते हैं। और मैं महेश संहारक, अर्थात् नाश करने वाला। परन्तु एक फर्क है, मैं केवल
पापियों का ही संहार करता हूँ, पवित्र आत्माओं का नहीं।” यह शिक्षा देकर भगवान् शिव व पार्वती अपने मार्ग पर आगे चले गए। इसके बाद मार्कण्डेय पुन: अपने आश्रम में वापिस आ गए और अपना शेष जीवन नारायण (भगवान विष्णु) के नाम का जाप करने में लगा दिया। अन्त में, भगवान् विष्णु के सेवक उन्हें दिव्य रथ में बिठाकर स्वर्ग में ले गए।
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