मैं भारत की हूँ : कलकत्ता में सन् 1946 के दिसंबर मास में, मदर टेरेसा ‘मिशन ऑफ चैरिटी’ की स्थापना के लिए भाग-दौड़ कर रही थीं। उन दिनों वे कलकत्ता में माइकल गोमेज के मकान की तीसरी मंजिल पर बने एक कमरे में रहती थीं। कमरे में सामान के नाम पर एक लकड़ी की पेटी और एक जीसस की छोटी मूर्ति थी। पैसा न होने के कारण उनके सामने खाने की समस्या भी बनी रहती थी। लेकिन माइकल गोमेज की मदद से किसी तरह काम चल रहा था।
एक दिन मदर टेरेसा माइकल के साथ ट्राम में बैठकर कहीं जा रही थीं। ट्राम में भीड़ बहुत थी। ट्राम में उनके सामने बैठे कुछ यात्री आंखें फाड़-फाड़कर उनकी ओर देख रहे थे। तभी उनमें से एक यात्री अपने साथी से बोला, “यह विदेशी महिला यहां मानव सेवा करने आई है। दरअसल, यह सेवा करने नहीं, भारत में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने आई है।”
“ठीक कहा आपने।” दूसरे ने उत्तर दिया, ” भारतीय पहनावे से कोई भी भ्रम में पड़ सकता है और गरीब लोग इनके बहकावे में आकर धर्म-परिवर्तन कर डालते हैं।”
तभी मदर ने उनसे कहा, “दादा ! आप भ्रम मत पालिए। भारत मेरा देश है और मैं भारत की नागरिक हूं। धर्म परिवर्तन कराना मेरा उद्देश्य नहीं, निराश्रित लोगों की सेवा करना मेरा धर्म है।”
मदर की बात से वे यात्री शरम से पानी-पानी हो गए।
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