Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain
Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : प्रियजनों आज हम आपको शिवरात्री से जुडी बाते बताएंगे जिसमे हम आपको बताएंगे की शिवरात्री का व्रत क्यूँ किया जाता हैं इसके पीछे की क्या कथा हैं? इस महान शिवरात्री के व्रत को करने से क्या फल प्राप्त होता हैं तो आइये हम बताते हैं इसके बारे में फाल्गुन कृष चतुर्दशी को शिवरात्री पर्व मनाया जाता हैं. माना जाता हैं की श्रृष्टि के प्रारम्भ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान् शंकर का भगवान् शिव का ब्रह्मा से शिव के रूप में अवतरण हुआ था,
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : प्रलय के बेला में इसी दिन प्रभु इसमें समाए. भगवान् शिव तांडव करते हुवे ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर दिया था इसी लिए इसे महा शिवरात्री अथवा काल रात्रि कहा गया हैं. कई स्थानों पर यह भी माना जाता हैं की इसी दिन भगवान् शिव का विवाह हुआ था तीनो भुवनो की अपासुन्दारी तथा शिवरी गौरां को अर्धागिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिसाचो से घिरे रहते हैं.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : उनका रूप बड़ा अजीब हैं. शरीर पर मसानो की भस्म, गले पर सर्पो का हार, कंठ में विष, जटाओ में जगतारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला हैं, बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले ईश्वर, अमंगल रूप होने पर भी भक्तो का मंगल करते हैं और श्री संम्पत्ति प्रदान करते हैं साल में होने वाली बारह शिव्रात्रियो में महा शिवरात्री सबसे महत्वपूर्ण माना जाता हैं.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : शिकारी कथाओं एक बार पार्वती जी ने भगवान् शिव शंकर से पूछा ” ऐसा कौन सा श्रेष्ठ और सरल व्रत पूजन हैं जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं. उत्तर में शिवजी ने पार्वती को शिवरात्रि के व्रत के विधान का बता कर यह कथा सुनाई “एक बार चित्र भानु नामक एक शिकारी था, पशुओ की हत्या कर के वो अपने कुटुम को पालता था व्ह्ह एक साहूकार का रिनी था लेकिन उसके ऋण समय पर ना चुका सक. क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंधी बना दिया. संयोग से उस दिन शिवरात्री थी.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव्सम्बंधित बाते सुनता रहा. चौतादिशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी सांध्य होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकान के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छुट गया. अपनी दिनचर्या की भाँती वो जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिन भर बंधीग्रह में रहने के कारण भूख – प्यास से व्याकुल था.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल विरिक्ष पर पन्दाव बनाने लगा. बेल वृक्ष के निचे शिवलिंग था जो विविध पत्रों से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता ना चला. पड़ाव बनाते समय जो टहनियां तोड़ी वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी, इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी पूरा हो गया और शिव लिंग पर बेल पात्र भी चढ़ गया. एक पहर रात्री बीत जाने पर एक गर्भवती हिरनी तालाब पर पानी पिने पहुंची शिकारी ने ज्यो ही धनुष चढ़ा कर ज्यो ही प्रत्युन्जा खिंची हिरनी बोली “मैं गर्भवती हूँ शीघ्र ही प्रसव करुँगी तुम एक साथ जीवो की ह्त्या करोगे जो ठीक नहीं हैं, मैं बच्चे को जन्म देकर शिग्ढ़ ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाउंगी,
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : तब मार लेना” शिकारी ने प्रत्युन्जा ढीली कर ली और हिरनी झाड़ियो में लुप्त हो गयी. कुछ ही देर बाद एक और हिरनी उधर से निकली शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया तब उसे देख हिरनी ने नम्रता पूर्व नामन किया “हे शिकारी मैं थोड़ी देर पहले ऋतू से निवृत हुई हूँ, कामातुर विरहनी हूँ अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ, मैं अपने पति से मिलकर शिग्ढ़ ही तुम्हारे पास आ जाउंगी. शिकारी ने उसे भी जाने दिया. 2 बार शिकार को खो कर उसका माथा ठमका और यह चिंता में पद गया. रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : तभी एक अन्य हिरनी अपने बच्चो के साथ वहां से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था उसने धनुष पर तीर चढाने पर देर नहीं लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था की हिरनी बोली ” हे शिकारी मैं इन बच्चो को इनके पिता के हवाले कर के लौट आउंगी, इस समय मुझे मत मारो” शिकारी हंसा और बोला “सामने आये शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मुर्ख नहीं इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चूका हूँ, मेरे बच्चे भूख – प्यास से तड़प रहे होंगे.
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उत्तर में हिरनी ने फिर कहा “जैसे तुम्हे अपने बच्चो की ममता सता रह हैं ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए मैं भी थोड़ी देर के लिए बच्चो के नाम पर जीवन दान मांग राइ हूँ, हे शिकारी मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़ देने के बाद तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ” हिरनी का स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गयी, उसने उस हिरनी को भी जाने दिया, शिकार के अभाव में बेल वृक्ष पर बैठा हुआ शिकारी बेल वृक्ष से टहनियां तोड़ – तोड़ कर निचे फेकता जा रहा था. तभी थोड़ी देर बाद एक रिशत पुष्ट हिरन वहां आया शिकारी ने सोच लिया की
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : वो उसका शिकार अवश्य करेगा शिकारी अपनी प्रत्यंचा देख कर हिरन विनीत स्वर में बोला “हे शिकारी भाई यदि तुमने मुझसे पूर्व आणि वाली तीन हिरनियो तथा छोटे – छोटे बच्चो को मार डाला हैं तो मुझे भी मारने में विलंभ ना करो ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख ना सहना पड़े. मैं उन हिरनियो का पति हूँ यदि तुमने उन्हें जीवन दान दिया हैं तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो, मैं उनसे मिल कर तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगा, हिरन की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना चक्र घूम गया.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : उसने सारी कथा हिरन को सूना दी तब हिरन ने कहा मेरी तीनो पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञा बद्द होकर गयी हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी अत: जैसे तुमने उन्हें विश्वास पात्र मान कर छोड़ा हैं वैसे ही मुझे भी जाने दो, मं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शिग्ढ़ ही उपस्थित होता हूँ. उपवास, जागरण तथा शिवलिंग पर बेल पात्र चढने से शिकारी का हिंसक ह्रदय निर्मल हो गया था उसमे भगवन शक्ति का वास हो गया था, धनुष और बाण उसके हाथ से सहज ही छुट गया. भगवान् श्हिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक ह्रदय तार्निक भावो से भर गया.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : वह अपने अतीत के कर्मो को याद कर के पश्चताप की ज्वाला में जलने लगा थोड़ी ही देर बाद वो हिरन के परिवार के सामने उपस्थित हो गया ताकि वह उनका शिकार कर सके. किन्तु जंगली पशुओ की ऐसी सत्यता, सात्विकता एकम सामूहिक प्रेम भावना देख कर शिकारी को बड़ी ग्लानी हुई, उसके नेत्रों से आंसुओ की छड़ी लग गयी. उस मृग परिवार को ना मार कर शिकारी ने अपने कठोर ह्रदय को जीव हिंसा से सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया.
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Mahashivratri Kyun Mnaayi Jaati Hain : देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे. घटना की परिणिति होते ही देवी – देवताओं ने पुष्प वर्षा की तब शिकारी और हिरन परिवार मोक्ष को प्राप्त हुवे. प्रियजनों देखा आपने किस तरह अनजाने में भी शिकारी के द्वारा व्रत करने पर उसे मोक्ष की प्राप्त हुई. इसी प्रकार अगर मनुष्य महाशिवरात्रि का व्रत सच्चे मन से करता हैं तो उसकी हर मनोकामना पूरी हॉट हैं और मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं.
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