महाभारत का युद्ध : हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के पुत्र-मोह और ज्येष्ठ कौरव युवराज दुर्योधन की अनीति का परिणाम महाभारत के युद्ध के रूप में सामने आया। इस युद्ध में समस्त भरतखंड के वीर दो पक्षों में बंट गए। एक पक्ष कौरवों का था, जो अपने सर्वेसर्वा दुर्योधन के संकेतों पर षड्यंत्रकारी चाल चलते रहते थे, जबकि दूसरा पक्ष पांडवों का था, जो सत्य, धर्म और न्याय के पथ पर थे। उनके सर्वेसर्वा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण थे। । महाभारत के इस विशाल ध्वंसकारी युद्ध को रोकने के प्रयास भगवान श्रीकृष्ण, पितामह भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे महापुरुषों ने कई बार किए, किंतु अहंकार, अभिमान और दुराचरण के पक्षधर दुर्योधन
दुःशासन की समझ में एक भी बात न आई । कर्ण और शकुनि ने ईर्ष्या की इस अग्नि में घृत का काम | किया। अंतत: कौरवों और पांडवों की सेनाएं कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने आ डटीं।
| कौरवों के सेनापति पितामह भीष्म बनाए गए, जबकि पांडवों के सेनापति बने धृष्टद्युम्न! दोनों ओर से शंखनाद के तीव्र घोष के साथ ही महाभारत का युद्ध आरम्भ हो गया।
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