लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha
लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha : किसी वन में एक भील रहता था। एक बार जंगल में वह शिकार करने गया। उसने एक बहुत बड़े सूअर को तीर मारा। सूअर भी क्रोध में आकर उस भील शिकारी पर झपटा और अपने पैने दातों से उसका पेट फाड़ डाला। भील तड़प तड़पकर वहीं मर गया किंतु तीर के घाव के कारण वह सूअर भी न बच सका और वहीं ढेर हो गया|
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इतने में एक भूखा गीदड़ वहां पहुंच गया। भील और सूअर को मरा पड़ा देख उसकी प्रसन्नता का पारावार न रहा। गीदड़ ने मन-ही-मन निश्चय किया कि वह उनको इस प्रकार खाएगा, जिससे कि भोजन बहुत दिनों तक चलता रहे। तब पहले उसने भील के निकट पड़े धनुष की तांत-प्रस्सी को ही खाना आरंभ कर दिया। उसने तांत पर लगी चर्बी को जैसे ही खाना आरंभ किया कि वह कड़कड़ाकर टूट गई। धनुष का दूसरा भाग उसके तालू से आ टकराया और उसके तालू को फोड़ता हुआ उसके सिर से शिखा की भांति निकल गया। गीदड़ ने तत्काल दम तोड़ दिया। यह कथा सुनाकर ब्राह्मण कहने लगा कि इसलिए मैं कहता हूं कि व्यक्ति को अधिक लोभ नहीं करना चाहिए और लोभ का सर्वथा परित्याग भी नहीं कर देना चाहिए। आयु, कर्म, धन, विद्या तथा मरण, इन पांचों को तो विधाता व्यक्ति को गर्भावस्था में ही प्रदान कर देता है।
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लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha : इन्हें वह व्यक्ति अपने पौरुष से प्राप्त नहीं करता | यह सुनकर ब्राह्मणी बोली-‘यदि ऐसी ही बात है तो मेरे घर में थोड़े-से तिल भोजन करा दूंगी।’ ब्राह्मण उसकी बात से संतुष्ट होकर भिक्षा के लिए दूसरे गांव चला गया। ब्राह्मणी ने अपने वचनानुसार घर में पड़े तिलों को छांटना शुरू कर दिया। जब
हुए तिलों को अशुद्ध कर दिया। यह वह ब्राह्मण को भोजन कैसे कराएगी बहुत विचार करने के बाद उसने सोचा कि बदले किसी से बिना साफ किए तिल मांगे का किसी को पता ही नहीं पड़ पाएगा। छाज में रखकर घर-घर घूमने लगी और कहने के बदले बगैर छटे तिल दे दे। ” अचानक यह हुआ कि मैं जिस घर में भिक्षा के लिए गया था, उसी घर में वह भी तिलों को बेचने पहुंच गई और कहने लगी-बिना छंटे तिलों के स्थान पर छंटे तिलों को ले ली। उस घर की गृह-पत्नी जब यह सौदा करने जा रही थी तब उसके लड़के ने, जो अर्थशास्त्र पढ़ा हुआ था, अपनी माता को रोककर कहा-‘मां! इन तिलों को मत लेना। यह तिल बदलने योग्य नहीं हैं। जरा सोचो तो, कौन पागल होगा तो छंटे हुए तिल देकर बदले में बिना छंटे तिल ले लेगा ? अवश्य उसके पीछे कोई कारण रहा होगा। यह बात अकारण नहीं हो सकती।’ पुत्र के कहने पर उसकी माता ने उन तिलों को लेने का विचार छोड़ दिया।
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लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha : यह कहानी सुनाने के बाद बृहत्सिफकू ने ताम्रचूड़ से पूछा-क्या तुम्हें उस चूहे के आने-जाने का मार्ग मालूम है ?’ ताम्रचूड़ बोला-‘वह तो मुझे मालूम नहीं, मित्र। पर वह कोई अकेला थोड़े ही आता है ! साथ में पूरी फौज होती है चूहों की । उनके साथ ही वह आता है और साथ ही जाता है। ” ‘तुम्हारे पास कोई फावड़ा या कुदाली है ? ताम्रचूड़ ने कहा-‘हां, एक फावड़ा तो है।’ ‘ठीक है, कल प्रात:काल हम दोनों अन्य मनुष्यों के उठने से पहले उठकर उस चूहे के पदचिह्नों के आधार पर उसके बिल का पता लगा लेंगे।” हिरण्यक कहने लगा-उस संन्यासी के वचन सुनकर मैंने भी सोचा कि अब तो मैं मारा ही जाऊंगा। किंतु कोई-न-कोई उपाय तो करना ही चाहिए। यह विचार कर मैंने उस दिन अपना मार्ग बदल दिया। उस मार्ग से गया ही नहीं, जिससे प्रतिदिन वापस आता था। मैं अपने साथियों को लेकर उस नए मार्ग से जा रहा था कि सामने से एक विशालकाय बिलाव आ गया। वह मेरे साथियों पर टूट पड़ा। उसके मुंह से जो चूहे बच गए, उन्होंने दूसरे मार्ग से आने के कारण मुझे भला-बुरा कहना आरंभ कर दिया।
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लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha : वे सब खून से लथपथ थे और उसी प्रकार अपने पुराने बिल में घुस गए। अपने परिजनों के अपने प्रति ऐसे बुरे-भले शब्द सुनकर मुझे बहुत ग्लानि हुई। मैंने तत्काल वह स्थान छोड़कर जाने का निश्चय कर लिया और अपने पुराने बिल में न जाकर अन्यत्र स्थान पर चला गया। किंतु मेरे मूर्ख साथी पुन: अपने पुराने बिल में घुस गए।
प्रात:काल वे संन्यासी फावड़ा लेकर चूहों के रक्त के निशान देखते हुए पुराने बिल तक पहुंच गए और उन्होंने उस बिल को खोद डाला। जिस धन के कारण मुझमें शक्ति थी उन्होंने उसको निकाल लिया।
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फिर ताम्रचूड़ का संन्यासी मित्र बोला-‘अब तुम्हें रात को जागने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, मित्र। मैंने चूहे की सारी शक्ति को छीन लिया है। अब से तुम निश्चिंत
होकर चैन की नींद सो सकते हो।” इतना कहकर उन्होंने वह धन उठाया और अपने मठ की ओर चले गए। उनके जाने के बाद मैं सोचने लगा कि अब मैं क्या करूं ? कहां जाऊं ? किसी प्रकार वह दिन बीता और रात हुई तो मैं अपने बचे हुए साथियों को लेकर पुन: उसी मठ में पहुंच गया। हमारे आने की आवाज सुनकर ताम्रचूड़ ने फिर उसी प्रकार बांस से अपने भिक्षापात्र को खटखटाना आरंभ कर दिया | यह देख उसका संन्यासी मित्र कहने लगा-‘मित्र ! क्या तुम अब भी नि:शंक होकर नहीं सो सकते ?’
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लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha : ताम्रचूड़ बोला-देखते नहीं, वही चूहा फिर अपने साथियों को लेकर आ पहुंचा है। भिक्षा पात्र को खटखटाऊंगा नहीं तो फिर खा जाएगा वह उसमें रखा भोजन।’ इस पर ताम्रचूड़ का संन्यासी मित्र हसकर बोला-‘अब तुम चिंता मत करो मित्र, अब उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया है।’ उस संन्यासी की बात सुनकर गुस्से से मेरा खून खौल उठा। मैंने उस भिक्षा-पात्र को लक्ष्य करके जोर की छलांग लगाई, किंतु उस तक पहुंचे बिना ही मैं धड़ाम से भूमि पर आ गिरा। यह देखकर ताम्रचूड़ का मित्र कहने लगा- वह देखो। तभी तो मैं कहता था कि धन के कारण ही लोग बलवान होते हैं। धनी व्यक्ति ही पंडित माना जाता है। अब तुम निश्चिंत होकर सो जाओ। इसके कूदने का जो कारण था, वह अब हमारे हाथ लग चुका है।’ ताम्रचूड़ के मित्र ने ठीक ही कहा था। मुझमें एक उंगली-भर ऊपर कूदने की शक्ति नहीं रही थी | तब मैं वहां से निराश होकर प्रात:काल अपने बिल में वापस आ गया। मेरी यह दशा देखकर मेरे अनुयायी मेरी खिल्ली उड़ाने लगे और मुझे भांति-भांति के उलाहने देने लगे।
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लोभी व्यक्ति के मस्तक में शिखा | Lobhi Vyakti Ke Mastak Mein Shikha : उन सबकी बात सुनकर मैंने स्वयं को बहुत धिक्कारा। मेरे अनुचर मुझे छोड़कर मेरे शत्रु बन गए। इस प्रकार उन्होंने मेरा दुगुना उपहास किया। तब मैंने विचार किया कि क्यों न एक बार संन्यासी के तकिए के नीचे रखे उस धन को खींचकर अपने यहां ले आऊं । ऐसा निश्चय करके मैं रात्रि में हिम्मत करके फिर संन्यासी के यहां पहुंचा। मैंने अपने पैने दांतों से धन की पेटी को काट भी डाला, किंतु ठीक उस समय, जब मैं उसमें रखे धन को हथियाने का प्रयास कर रहा था, अचानक वह संन्यासी जाग गया | उसने जल्दी से मेरे सिर पर अपने बांस का प्रहार कर दिया। मैं बेहद भयभीत हो गया। सिर पर पांव रखकर भागा और बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाने में सफल हो पाया। किसी ने सच ही कहा है कि मिलने वाली वस्तु मनुष्य को अवश्य मिलती है। विधाता भी उसको रोक नहीं सकता। तब से मैं किसी वस्तु के नष्ट हो जाने पर दुखी नहीं होता और किसी वस्तु के अनायास मिल जाने पर आश्चर्य भी नहीं करता। क्योंकि जो वस्तु भाग्य में होगी वह तो हमें मिलेगी ही, और दूसरे की वस्तु हम कभी पा नहीं सकते । हिरण्यक की बात सुनकर लघुपतनक ने पूछा -‘वह भला किस तरह ?’ तब हिरण्यक ने उसे यह कहानी सुनाई।
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