Krodhi Brahman क्रोधी ब्राह्मण : बादशाह अकबर के शासनकाल में दिल्ली शहर में एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था। अकबर के दरबार में वह नियमित रूप से आता रहता था। बादशाह, बीरबल तथा अन्य दरबारीगण उसका बहुत सम्मान करते थे। क्योंकि वह अच्छी-अच्छी नसीहतें देता तथा धर्म-ग्रंथों से शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनाता था। परंतु उसके क्रोधी व हठी स्वभाव से सब उससे बहुत डरते थे। अपने इस शिक्षाप्रद स्वभाव के कारण वह एक बार जो सोच लेता, उसे पूरा करके ही छोड़ता था। एक दोपहर वह भोजन करने के लिए बैठा। उसकी पत्नी ने उसके लिए गर्म-गर्म भोजन परोस रखा था। जैसे ही ब्राह्मण ने चावल का पहला कौर मुँह में डाला, उसने तुरंत थूक दिया। चावलों में से एक बाल निकाल कर वह बोला “चावलों में बाल पड़ा है।
मुझे यह पसंद नहीं। चूँकि यह पहली बार हुआ है इसलिए मैं तुम्हें माफ करता हूँ। यदि ऐसा दोबारा हुआ, तो मैं तुम्हें सजा दिए बिना नहीं छोड़ेंगा।” ऐसा कहकर ब्राह्मण खड़ा हो गया और घर से बाहर चला गया। ब्राह्मण भूखा ही घर से बाहर चला गया था। अत: उसकी पत्नी बहुत दुखी हुई। इसलिए उसने अपने आप से यह वायदा किया कि भविष्य में भोजन पकाते समय वह विशेष ध्यान रखेगी। अब वह भोजन पकाने से पहले अपने बालों को अच्छी तरह बाँध लेती थी। परंतु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कुछ दिनों बाद ब्राह्मण के खाने में दोबारा बाल निकला। वह बहुत क्रोधित हुआ और बोला “मैंने तुम्हें चेतावनी दी थी, परंतु तुमने ध्यान नहीं रखा। अब भुगतो। मैं नाई को बुलाकर अभी तुम्हारे बालों की हजामत करवा देता हूँ।” ऐसा कहकर ब्राह्मण क्रोध में नाई को बुलाने के लिए वहाँ से चला गया। ब्राह्मण की पत्नी बहुत धार्मिक विचारों वाली थी। उसने अपने आप को घर में बंद कर लिया।
जल्दी ही उसका पति नाई लेकर वापस आ गया। उसने दरवाजा खटखटाया। परंतु उसकी पत्नी ने डर के कारण दरवाजा नहीं खोला। गुस्से में ब्राह्मण चिल्लाने लगा, “तुम दरवाजा क्यों नहीं खोल रहीं? मैं नाई को बुला लाया हूँ। अब मैं तुम्हें सबक सिखाऊँगा।” नाई के आने की बात सुनकर ब्राह्मणी रो पड़ी, परंतु उसने दरवाजा नहीं खोला। कुछ मिनट इंतजार करने के बाद नाई, ब्राह्मण से जल्दी वापस आने के लिए कहकर चला गया। जब लगातार धमकी देने से भी ब्राह्मणी ने दरवाजा नहीं खोला तो ब्राह्मण चिल्लाया “मैं बढ़ई को बुलाने जा रहा हूँ। वह अपनी पैनी आरी से दरवाजा काट देगा।” ऐसा कहकर ब्राह्मण चला गया। उसके बाद उसकी पत्नी बाहर आई और अपने पड़ोसियों के पास जाकर निवेदन किया “कृपया कोई जाकर मेरे भाईयों को इस घटना की खबर कर दे। वे जल्दी ही मुझे बचाने के लिए आ जाएँगे, अन्यथा मेरे पति मेरेसिर के बालों की हजामत करवा देंगे।” पड़ोसी से प्रार्थना करके ब्राह्मणी अपन घर वापस आ गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। पड़ोसी अपने घोड़े पर सवार हुआ और शीघ्र ही ब्राह्मणी के भाईयों के पास पहुँच गया। उसने सारी घटना ब्राह्मणी के भाईयों को बता दी। वे जल्दी ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए। रास्ते में उनमें से एक ने कहा “मैं परामर्श के लिए बीरबल के पास जा रहा हूँ, वह मेरा मित्र है। तुम तीनों बहन की मदद के लिए पहुँची।” तीनों भाई अपनी बहन के पास चले गए और चौथा भाई बीरबल से मिलने चला गया। बीरबल से सलाह लेकर वह भी अपनी बहन के घर पहुँच गया। वहाँ चारों ओर भीड़ लगी हुई थी।
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ब्राह्मण अपनी पत्नी को बाहर निकालने के लिए दरवाजे को पीट रहा था। चौथे भाई ने अन्य भाईयों को अपने पास बुलाया और वे सब कुछ देर के लिए कहीं चले गए। जब वे वापस आए, तो उनके सिर मुड़े हुए थे। वे अपने साथ एक सफेद कपड़ा भी लाए थे, जो मृत शरीर को ढकने के लिए कफन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जल्दी ही बीरबल भी लकड़ियाँ लेकर पहुँच गया। उन्होंने लकड़ी की चिता सजा दी। फिर उन्होंने ब्राह्मण को सफेद कपड़े में लपेट कर उसे चिता पर लिटा दिया। “यह तुम लोग मेरे साथ क्या कर रहे हो? तुम मेरे साथ मरे हुए व्यक्ति के समान व्यवहार क्यों कर रहे हो?” ब्राह्मण घबराहट में चिल्लाया। उनमें से एक भाई बोला, “श्रीमान्, आप ज्ञानी व्यक्ति हैं। आप तो जानते हैं कि हिन्दू रिवाजो को अनुसार एक स्त्री को सिर को बाल केवल तभी काटे जा सकते हैं जब वह विधवा हो जाए। यदि आप अपनी पत्नी के सिर के बाल कटवाना चाहते हैं, तो पहले आपको मरना होगा।” यह सुनकर ब्राह्मण बड़े असमंजस में पड़ गया। उसकी पत्नी, जो खिड़की से यह सब देख रही थी, भागकर घर से बाहर आई। “अरे भाईयो! तुम मेरे पति के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हो? कृपया इन्हें छोड़ दो। अगर तुम मेरे जीवित पति को अग्नि को हवाले कर दोगे, तो मेरा सुहाग लुट जाएगा और तुम्हें बहुत पाप लगेगा।” अब ब्राह्मण को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने अपनी पत्नी और उसके भाईयों से अपनी गलती की माफी माँगी। उसने बीरबल को उसकी दी हुई सीख के लिए धन्यवाद दिया कि गुस्से में व्यक्ति को अपना संतुलन नहीं खोना चाहिए।
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