किराए की अदायगी : इतनी रात गए उन दोनों के लौट आने के बाद चिंतित माइकल की जान में जान आई। उसने मदर से | पूछा, “सिस्टर ! तुम लोग कहां चले गए थे? मेरी तो फिक्र के मारे जान ही निकली जा रही थी। तुम्हारे ये कपड़े और पैर भी कीचड़ से भर गए हैं। इस वक्त तुम कहां से आ रही हो?”
मदर ने माइकल को सारा किस्सा सुना दिया और कहा, “माइकल ! हमें उस औरत की मदद करनी चाहिए।निराश्रित और दुखी की मदद करना, ईश्वर की मदद करने जैसा है।”
“तुम ठीक कहती हो सिस्टर!” माइकल बोला, “हम कल ही चलकर उस सूदखोर झोंपड़ी वाले का पिछला और आगे के दो माह का किराया चुकता कर देते हैं। इस प्रकार गरीबों को सताना कहां तक उचित है?”
मदर ने कहा, “माइकल ! वैसे तो उस औरत को वह झोंपड़ी छोड़ देनी चाहिए। लेकिन उसका बच्चा अभी बहुत छोटा है। उस बच्चे के बाप का भी कोई अता-पता नहीं है। इसलिए हमें ही उसकी मदद करनी चाहिए।’ । दूसरे दिन माइकल और मदर टेरेसा ने उस झोंपड़ी के मालिक का किराया अदा कर दिया। उसने झोंपड़ी पर लाकर छत रख दी। इस प्रकार उस औरत और बच्चे की सुरक्षा हो गई।