Jiva Ayurveda in Hindi जीवा आयुर्वेदिक का ज्ञान
Jiva Ayurveda in Hindi: जीवा आयुर्वेदा एक ऐसा आयुर्वेदिक तरीका हैं जो आपकी स्वास्थय से सम्बंधित सभी परेशानियों को जड़ से समाप्त करने में सहायक होगा।
Jiva Ayurveda in Hindi : साथ ही साथ इन आयुर्वेदिक तरीको को आप अच्छे से समझ पाएं तो ये आपकी खामखाँ की होने वाली जेबख़र्ची ( बाहर से लायी जाने वाली महंगी दवाये) से भी बचाएगा। यहाँ पर केवल एक बात ध्यान रखने की जरुरत हैं की आप जिन चीज़ो को भी अपनाये उन्हें strictly follow करे और सारी चीज़ो को खुद के लिए उपलब्ध कराये otherwise आपको ही अपनी विफलता के साथ साथ अपनी समय बर्बादी का सामना करना पड़ेगा.
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नोट: जीवा आयुर्वेदिक घरेलू उपचार का तरीका है, इस विधि को बिना पूरा जाने इसका उपयोग करना आपको तकलीफ दे सकता है, तो कोशिश करे की जिस व्यक्ति को जीवा आयुर्वेदिक का ज्ञान हो उससे पहले सलहा ले ले और बाद में इसका इस्तमाल करे। अतः मैं आपसे निवेदन करुगा की जीवा आयुर्वेदिक के इस्तेमाल से पहले आप इसके बारे में अच्छी तरह जान ले, ज्यादा जानकारी के लिए आप जीवा आयुर्वेदिक की ओफ्फिकल वेबसाइट पर विजिट करे।
आयुवेद क्या हैं?
क्युकी बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते. आयुर्वेद क्या हैं ? और ये अलोपेथी से बेहतर क्यूँ हैं? अगर आयुर्वेद शब्द या meaning की बात करे तो आयु मतलब life या जीवन और वेद का मतलब होता हैं ज्ञान मतलब ‘जीवन का ज्ञान स्वस्थ रहने के लिए.’ आयुर्वेद हमे सिखाता हैं की स्वस्थ जीवन कैसे जिया जाए. कैसे आहार – विहार किया जाए जिससे की हम बीमार ना पड़े. आपको शायद पता ना होगा की हमारा आहार – विहार मतलब खाने पिने का तरीका और रहने का तरीका ही मुख्य कारण होता हैं. अगर आप सही खान पान करेंगे तो सही तरीके से रहेंगे तो बीमार नहीं पड़ सकते इसीलिए जब आप आयुवेदिक दवा खाते हैं तो आयुर्वेदिक डॉक्टर कुछ परहेज़ भी बताते हैं. परहेज़ उन चीजों से किया जाता हैं जो बीमारी को बढ़ता हैं या फिर बीमारी का कारण होता हैं.
और जब हम बीमार पड़ जाते हैं तो आयुर्वेद हमे प्राकृतिक जड़ी बूटियों के सहारे बीमारियों को दूर करने का उपाय बताता हैं जिसे आयुर्वेदिक औषदी कहेते हैं. चरकसंहिता में एक श्लोक में कहा गया हैं ‘आयुर्वेदस्य प्रयोजनम स्वस्थस्य स्वास्थ्य रचनम आतुरस्च्य विकास प्रच्नम च’ इसका मतलब हैं की आयुर्वेद का प्रयोजन या उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना हैं और रोगी व्यक्ति के रोग को दूर करना हैं. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का जन्म हमारे देश भारत में हुआ हैं. आज से हजारो साल पहले आयुर्वेद का जनक ध्नमंत्रीको कहते हैं और ऐसा माना जाता हैं की ध्नमंत्रीभगवान विष्णु के अवतार हैं. ध्नमंत्रीके बाद ऐसे बहुत से ऋषि मुनि हुवे हैं जिन्होंने आयुर्वेद को आगे बढ़ाया हैं जिनमे चरक, शिशुर्क, शरंघ्दर इत्यादि प्रमुख हैं. इन ऋषियों ने अपने समय में अपने अपने आयुर्वेदिक नुस्खे लिखे थे जो इनकी अपनी अपनी किताबो में वर्णित हैं जैसे महर्षि चरक ने चरक संहिता नाम की किताब लिखी, इसी तरह महर्षि शिशुरत ने शिशुरत संहिता नाम की किताब लिखी और शहरान्ध्र ऋषि ने शरान्ध्र संहिता नाम की किताब लिखी हैं. इन में से कुछ धन्वन्तरी के चेले भी हैं जिन्होंने ध्नमंत्रीके बताये गए नुस्खो को याद किया था और इन्ही सारी किताबो को मिला कर आजकल की किताबे शास्त्रिय औषधि कही जाती हैं. यहाँ में आपको एक और बात से अवगत करना चाहूँगा की आयुर्वेद की सारी प्राचीन ग्रन्थ और दवाओ की जानकारी के नुस्खे अधिकतर श्लोको के रूप में हैं जब तक आपको संस्कृत का अच्छा ज्ञान ना हो इसे नहीं समझ सकती. आयुर्वेद मतानुसार शास्त्रीय औषदीयाँ कभी फेल नहीं होती क्युकी ये एक दम ब्रह्मा अवतार ध्नमंत्रीने बताई हैं. और ब्रह्मा जी की लकीर की तरह ये तब से आज तक वैसे ही असर करती हैं. जरा सोचिये यही फर्क हैं आयुर्वेद और अलोपैथी में.
उदहारण के लिए योग राज़ गुगुल आयुर्वेद की एक दवा हैं जो की हजारो साल से काम कर रही हैं और काम करती रहेगी. जबकि आगरा एक अंग्रेजी दवा की बात करे तो रिसर्च से एक दवा निकल कर आती हैं. कुछ साल प्रयोग किया जाता हैं लेकिन कुछ सालो बाद सुनाई पड़ता हैं हैं की इस दवाई का प्रयोग ना करे. इससे कैंसर होता हैं और फिर वेह दवा बन कर दी जाति हैं क्युकी फायदे की जगह नुक्सान करने लग जाति हैं. जहाँ तक हमारी जानकारी हैं कोई भी ऐसी अंग्रेजी दवा नहीं हैं जिसका side इफ़ेक्ट नहीं होता हैं. बहुत ही common दवाईयाँ ही आप ले लो जैसे की पेरासिटामोल और अनाल्गेसिक जो बुखार को कम करती हैं दर्द को कम करती हैं लेकिन इसका side इफ़ेक्ट लीवर पर होता है और ये लीवर को damage कर सकती हैं. जबकि आयुर्वेद की साधारण दवाई योग राज़ गूगूल को देखिये इसे आप सालो साल खा सकते हैं बिना किसी side इफ़ेक्ट के और यह शरीर के सभी अंगो को सही करने में कारगार हैं तो आप समझ सकते हैं की अंग्रेजी दवा और आयुर्वेदिक दवा में आखिर क्या अंतर हैं. यहाँ हम बताने चाहेंगे की हम चिकत्सा अलोएपैथि के खिलाफ नहीं हैं. उसका भी अपना महत्व han फिलहाल हम उसका अंतर बटा रहे हैं.
आयुर्वेद से ही मिलता जुलता यूनानी चिकित्सा पद्धति हैं जो आयुर्वेद की ही तरह जो जड़ी बूटी और खानज उत्पादों पर निर्भर हैं लेकिन इसकी उत्पति यूनान यानी जो आज का इर्न देश हैं. होमोपथी भी जड़ी बूटी पर ही आधारित हैं लेकिन इसका सिद्धांत आयुर्वेदिक और यूनानी से बिलकुल अलग हैं. हर चिकत्सा पद्धिति का एक सिधांत होता हैं और आयुर्वेद त्रिदोष के सिद्धांत पर काम करता हैं. त्रीदोश मतलब तीन दोष जो हैं कफ, पित्त और वायु जब ये तीनो दोष संतुलित रहते हैं तो शरीर को कोई रोग नहीं होता यानी की जब ये तीनो दोष संतुलित रहते हैं तो शरीर भी संतुलन में यानी की स्वस्थ रहता हैं और जब इन तीनो में से कोई ज्यादा या कम हो जाता हैं तो आदमी बीमार हो जाता हैं. इसी कफ, पित्त और वायु को ध्यान में रखते हुवे आयुर्वेद काम करता हैं और इसी के अनुसार रोगी को रोग की दवाए दी जाती हैं.
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Jiva Ayurveda in Hindi : मोटे तौर पर त्रिदोष के हिसाब से आप खुद भी सोच सकते हैं की आपको किस दोष की बीमारी हैं? जैसे खासी, सर्दी, अस्थमा, या सांस की बीमारी वगेरा कफ्फ दोष की वजह से होती हैं, पित्त दोष की वजह से हाथ में जलन या शरीर में कही भी जलन होना एसिडिटी या पीलिया जौंडिस वैगेरा, और वात या वायु विकार के कारण दर्द वाले सारे रोग होते हैं जैसे गठिया, जोड़ो का दर्द, साय्त्रिचा, कमरदर्द या कोई भी दर्द हो, मतलब अगर संक्षेप में कहूँ तो कफ्फ दोष के बिना खासी नहीं होगी, पित्त दोष के बिना जलन नहीं होगी और वायु दोष के बिन दर्द नहीं होगा. आदमी की शरीरिक बनावट से भी प्रकृति का भी पता चलता हैं. यहाँ एक बात और बता देते हैं की कई सारे बीमारियों में दोनों दोष या फिर कभी कभी तीनो दोष भी कुपित हो जाते हैं. जिसका पत्ता हम लक्षण और नाडी ज्ञान से करते हैं. आपने देखा होगा की जब भी आप किसी वैध जी या आयुर्वेद के डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपकी नब्ज़ या नाडी पकड़ के जरुर देखेंगे. नाडी से पता लगाया जाता हैं की रोगी किस प्रकृति का हैं? और नब्ज़ से पता लगाया जाता हैं की कौन कौन से दोष बढे हुवे हैं.
नाडी ज्ञान के अनुभवी वेध आपसे बिना कुछ पूछे आपकी सारी बीमारी बता सकते हैं की क्या क्या बीमारी से आपका शरीर ग्रस्त हैं.
जब शरीर में तीनो दोष कुपित हो जाते हैं तो समझ जाइए भयंकर बीमारी हैं जो आसानी से ठीक नहीं होती. एक दो दोष कुपित होने वाली बीमारी जल्दी ठीक हो जाती हैं. आयुर्वेदिक दवाओं के प्रयोग से रोग के मूल कारण को नष्ट किया जाता हैं मतलब अयुर्वेद्क दवा से रोग जड़ से ठीक होता हैं जबकि अंग्रेजी दवाओं में ऐसा नहीं होता उदहारण के लिए जैसे अगर किसी को बवासीर हुई हैं तो ऑपरेशन करवा लीजिये लेकिन कुछ महीनों बाद बवासीर होने के चांसेस घटेंगे नहीं और अगर आपने किडनी या ब्लैडर की पथरी के लिए ऑपरेशन करवाया हो तो दोबारा पथरी हो जाना आम बात हैं जानते हैं क्यों ऑपरेशन से पथरी निकाल देना तत्काल राहत वाला काम हैं जिससे की रोगी को आराम मिलता हैं लेकिन पत्थर बनने के कारण को आयुर्वेदिक दवा ही जड़ से मिटाती हैं. ऑपरेशन चीर फाड़ के माध्यम को एलोपथी में इनकार नहीं किया जा सकता.
पर क्या आप जानते हैं की सर्जरी के जनक भी महर्षि शुशुर्त ही हैं. महर्षि शुशुर्त ने हजारो साल पहले मोतिया बाँध का सफल ऑपरेशन किया था. वो भी कब? जब ना तो धातु के धार दार हथियार थे और ना ही ऑपरेशन थियेटर. अलेओपथि वाले भी मानते हैं की शुशुर्त की ‘father of surgery’ हैं. आयुर्वेद में सही खान पान पर भी बहुत जोर दिया गया हैं ये बी बताया गया हैं की कूं सी चीज़ को कम खाना चाहिए और कौन सी चीज़ को ज्यादा, कौन सी चीज़ को रात में नहीं खाना चाहिए, कौन सी चीज़ को कुछ चीजों के साथ मिला कर नहीं कहना चाहिए इत्यादि. यहाँ पर आपको एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहुगा की हमारे देश के ही कुछ लोगो ने आयुर्वेद के नाम को बदनाम किया हैं ये वो लोग हैं जो दो – चार जड़ी बूटियों को जान कर खुद को आयुर्वेदिक डॉक्टर कहते हैं और लोगो को उलटी सीधी सलाह देकर आयुर्वेद को बदनाम करते हैं. ऐसे लोगो को ना तो आयुर्वेद का कोई ज्ञान होता है और ना ही रोग का. ऐसे लोगो से सावधान रहिये.
तो दोस्तों ये था आयुर्वेद और इसके महत्व संक्षेप में हमने आपको इसका अर्थ समझाने की कोशिश की आशा हैं आपको ये लेख पसंद आएगा.
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Dhanawaad bhai, bhaut sahi likha hai aapne.
bahut sahi likha hain aapne
धन्यवाद वीनू गोपाल जी! 🙂
very very Good
Bahut accha hai
धन्यवाद आस मोहम्मद जी 🙂
nice blog