Jallianwala Bagh Essay in Hindi

Jallianwala Bagh Essay in Hindi : लोकमान्या बाल गंगाधर तिलक का सपना हो या शहीदे आज़म भगत सिंह का सपना हो या महात्मा गांधी का सपना हो, या अर्विदे गोश का सपना हो या हमारे देश में उद्धम सिंह का सपना हो. उद्धम का सपना क्या था? आप सभी जानते हैं हमारे भारत देश में एक अँगरेज़ अधिकारी बहुत कुख्यात और बहुत क्रूर आ गया था जिसका नाम था डायर अमृतसर में उसकी posting हो गयी थी और उसने rollet act नाम का कानून बना दिया था जिसमे नागरिको के मूल अधिकार पूरी तरह से खत्म होने वाले थे और नागरिको के मूल अधिकार खत्म हो कर सब कुछ हमारी आज़ादी जो भी थोड़ी बहुत बची हुई थी वो अंग्रेजो के पास जाने वाली थी.

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Jallianwala Bagh Essay in Hindi : तो उस rollet act के विरोध में 14 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाघ में एक बड़ी सभा हुई थी जिसमे 25,000 लोग शामिल हुवे थे उस बड़ी सभा में डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलाई थी. आप अंदाजा लगा सकते हो अगर आप में से किसी भाई या बहन ने police में नौकरी की हो या सेना में नौकरी की हो तो इस बात का अंदाज़ा उनको बहुत अच्छे से लगेगा की 15 minute के अंदर 1,650 round गोलियां. एक हजार छै सौ पचास round गोलियां चली थी और 3000 से ज्यादा क्रान्तिकारी वही तड़प तड़प कर मर गए थे. आप में से जिन लोगो ने अमृतसर देखा हैं, जलियावाला बाघ देखा हैं आपको मालुम होगा जलियावाला बाग़ के घुसने के लिए और निकलने के लिए एक ही दरवाज़ा हैं. चारो तरफ से वो चार दीवारी से वो घिरा हुआ हैं रो दरवाज़ा भी मुश्किल से चार या सादे चार फीट का हैं. उस दरवाज़े पर डायर ने तोप लगा दी थी आगे की कोई आकर निकलने ना पाए और जलियावाला बाघ में एक कुंवा हैं बल्कि दो कुंवे हैं.

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Jallianwala Bagh Essay in Hindi : अंधे कुंवे के रूप में जाने जाते हैं. अंधाधुंध जब 1650 round गोलियां चली तो जो गोलियों के शिकार हुवे वो तो वही पर शहीद हो गए और जो बच गए उन्होंने जान बचाने के लिए कुंवे में छलांग लगाई और कुंवा लाशो से भर गया. और मृत शरीरो से भर गया और और 15 minute तक गोलियां चलाते हुवे हंसते हुवे, खिलखिलाते हुवे डायर वहां से चला गया. रास्ते में जाते हुवे अमृतसर की सडको के दोनों तरफ जो भी भारतीय नागरिक उसको मिला उनको गोलियां मार कर पीछे तोप के मुंह से रस्सी से बांधकर घसीट कर वो लेकर गया था इसका इनाम उसको अंग्रेजो की संसद की तरफ से मिला था. शाबाशी मिली थी, उसकी पद्दोनिति मिली थी, उसका promotion हुआ था और उसको भारत से लन्दन भेज दिया गया था और बड़े ओहोदे पर. उद्धम सिंह उसी हत्याकांड के समय लोगो के बीच में शामिल थे

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Jallianwala Bagh Essay in Hindi : और अप जानते हैं की उनकी उम्र मुश्किल से 11 – 12 साल की हुआ करती थी तो उस हत्याकांड के समय जब वो शामिल थे और उन्होंने अपनी आँखों से देखा तो उन्होंने संकल्प लिया था और संकल्प उनका ये था की जिस डायर ने क्रूरता के साथ मेरे देश के नागरिको की ह्त्या की हैं इस डायर को मैं नहीं छोडूंगा ये मेरे जीवन का आखिरी संकल्प हैं और इस संकल्प को पूरा करने के लिए आपको एक बात और बात और मालुम हैं शहीदे आज़म उद्धम सिंह घर से एक दम गरीब थे. माता – पिता का साया उठा चुका था. आनाथ आश्रम में बड़े हुवे थे पल कर. माता – पिटा साथ में नहीं थे दोनों मर चुके थे, बड़े भाई थे उनकी मृत्यु हो चुकी थी किसी बीमारी से, अपने परिवार में वो अकेले रह गए थे और उनके पास आर्थिक संसाधन कुछ नहीं थे तो जब उन्होंने योजना बनाई की डायर को मारने की, सकल्प पहले ले लिया और योजना बनाई की लन्दन जाना हैं.

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Jallianwala Bagh Essay in Hindi : लन्दन जानेके लिए पैसे चाहिए. पैसे कहाँ से आएँगे तो उन्होंने ता किया की मैं किसी के सामने हाथ फैलाऊ उससे अच्छा हैं. मैं मेहनत मजदूरी कर के पैसे कमाऊ तो उन्होंने कारपेंटरी का काम सिखा ये लकड़ी का काम जिसको हम कहते हैं और लकड़ी का कम करते करते इतने पैसे जमा किये की अमेरिका गए फिर अमेरिका से लन्दन पहुँच गए. लन्दन पहुँचने के बाद फिर एक होटल में काम किया. पानी पिलाने का ताकि कुछ पैसे इक्कठे हो और बन्दुक खरीदी जा सके, पिस्तौल खरीदी जा सके और ये सब काम करते करते शहीद आज़म उद्धम सिंह को आप जानते हैं इक्कीस साल लग गए. 1919 में जलियावाला बाघ का काण्ड हुआ था. 1940 में जा कर उन्होंने अपना संकल्प पूरा कर पाए थे. 21 साल वो पैसो के लिए परिश्रम के साथ कही न कही अपने जीवन को लगाते हुवे संकल्प के लिए जिंदा थे. इक्कीस साल के बाद 1940 में kingson एक जगह हैं लन्दन में kingson palace वहां पर जब डायर का एक बड़ा कार्यक्रम हो रहा था और उसको मालाए पहनाए जा रही थी और उसका सम्मान किया जा रहा था तो उस समय कार्यक्रम में उद्धम सिंह पहुंचे थे

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Jallianwala Bagh Essay in Hindi : और अपनी जेब से बन्दुक निकाल कर तडातड़ तीन गोलियां मारी थी और तीन गोलियां मार कर एक ही वाक्य कहा था की आज मैंने 21 साल पहले का मेरा संकल्प पूरा किया हैं और मैं अब इसके बाद एक minute जिंदा नहीं रहना चाहता, 1 minute भी जिंदा नहीं रहना हैं. अब मेरे दिल की इच्छा पूरी हुई हैं तो बन्दुक को जब उन्होंने अँगरेज़ अधिकारी के सामने सौपा तो अँगरेज़ अधिकारी के हाथ काँप रहे थे उसको ये लगता था की कही मुझे भी नहीं मार देगा तो उद्धम सिंह ने कहा घबराओ मत मेरी तुमसे कोई दुश्मनी नहीं हैं. मेरी तो दुश्मनी थी जिसने मेरे देश के 3000 लोगो को मारा क्रान्तिकारियो का इतना उंचा आदर्श की जो संकल्प लिया हैं उसी की पूर्ति के लिए जीवन लगा देना हैं. उसमे दस साल लगे, 15 साल लगे, 20 साल लगे, 21 साल लगे ये शहीदे आज़म से हमे सीखना चाहिए.

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