ग्राह ओर गज | Grah Aur Gaj : एक दिन ग्राह नामक गन्धर्व झील में स्नान कर रहा था। उसके साथ कुछ गंधर्व स्त्रियाँ भी थी जो उसके साथ झील में स्नान का आनन्द ले रही थीं। तभी ऋषि देवल झील पर आये, वह पूजा-अर्चना से पूर्व झील के जल में स्नान करना चाहते थे। जैसे ही उन्होंने झील में प्रवेश किया, गंधर्व स्त्रियों ने उन्हें देख लिया और उनका मजाक उड़ाने लगीं- ‘देखो! वह कैसा हास्यापद सा लग रहा है? उसके बाल और दाढ़ी उसके गालों पर चिपक गयी, वाह! क्या दृश्य है?” तब गंधर्व स्त्रियों ने ग्राह को चुनौती दी, “चलो कुछ आनंद लेते हैं। ग्राह, तुम उन्हें परेशान करने में हमारी सहायता क्यों नहीं करते? हम अपना समय हँसी मजाक में व्यतीत करेंगे।” ग्राह मान गया और पानी के अन्दर चला गया। वह पानी के नीचे तैरता हुआ आया और उसने देवल ऋषि की टाँग खींच ली। ऋषि देवल डूबने ही वाले थे क्योंकि उन्हें पानी के नीचे से खींचा जा रहा था। इस प्रकार ग्राह बार-बार ऋषि की परेशान किये जा रहा था।
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ग्राह ओर गज | Grah Aur Gaj : यह देख देवल ऋषि क्रोधित हो गये और ग्राह को देखकर बोले, “मैं तुम्हें श्राप देता हूँ तुम अपना शेष जीवन मगरमच्छ के रूप में इस झील में ही व्यतीत करोगे।” यह सुनते ही ग्राह देवल ऋषि से क्षमा माँगने लगा, परन्तु देवल ऋषि ने उसे क्षमा नहीं किया। तब ग्राह ने पूछा, “महर्षि, मुझे बताइए कि मैं इस श्राप से कब मुक्त होऊँगा?” “जब भी भगवान् विष्णु का चक्र तुम्हारे शरीर को छु जाएगा, तुम अपने वास्तविक स्वरूप में आ जाओगे।” उसी क्षण ग्राह, मगरमच्छ बन गया और उसने झील में पानी पीने के लिए आने वाले जानवरों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। एक दिन, गज नाम का हाथी झील पर पानी पीने आया। वह गज भी पहले से ही श्रापित था। वह इन्द्र दमन नाम का राजा था। एक बार महर्षि अगस्त्य इन्द्र दमन के दरबार में उससे मिलने आए तो इन्द्र दमन ने अपने सिंहासन से उठकर उनका स्वागत् नहीं किया। अत: क्रोध में महर्षि ने उसे श्राप दे” दिया। इस प्रकार राजा इन्द्र दमन एक हाथी के रूप में परिवर्तित हो गया।
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ग्राह ओर गज | Grah Aur Gaj : झील पर आकर जैसे ही गज पानी पीने लगा, तभी ग्राह भी वहाँ पानी पीने के लिये आ गया। वह भूखा था इसलिए उसने गज को टाँग से पकड़ कर खींचना शुरू कर दिया। फलस्वरूप दोनों में संघर्ष आरम्भ हो गया। अन्त में मगरमच्छ ग्राह, गज को झील के मध्य तक ले आया। वह गज के पैरों व कमर को निगल गया। गज चिल्लाता रहा, “हे भगवान्! विष्णु मुझे बचाइए।” भगवान् विष्णु प्रकट हुए और झील के किनारे आ गये। वहाँ उन्होंने गज की रक्षा के लिए अपने चक्र को भेज दिया। चक्र ने मगरमच्छ ग्राह के मुँह पर आक्रमण किया, जिससे ग्राह का मुँह खुल गया और गज झील से बाहर आ गया। अगले ही पल, ग्राह अपने वास्तविक गंधर्व रूप में आ गया। गज भी अपने वास्तविक रूप अर्थात् राजा इन्द्र दमन के रूप में प्रकट हो गया। इस प्रकार ग्राह को दिया हुआ ऋषि देवल का श्राप विष्णु भगवान् के चक्र द्वारा मगरमच्छ ग्राह को छूने, तथा इन्द्र दमन को महर्षि अगस्त्य द्वारा दिया गया श्राप संकट के समय भगवान् विष्णु का नाम लेने से ही समाप्त हो गया।
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