Earth’s End Emotional Story in Hindi : “माँ, क्या आपने कभी फूल देखा है?”
“क्यों, हाँ, मैंने देखा हैं। अचानक क्यूँ पूछ रही हो?”
“हमने आज उनके बारे में स्कूल में पढ़ा। क्या यह सच है कि वे वास्तव में वो जमीन से बाहर की और बढ़ते थे और ज़िन्दगीभर एक ही जगह पर रहते थे? ”
“हाँ यह सच है। और वो इतने सुंदर दिखते थे की पूछो मत। वे जीवित और रंगीन हुआ करते थे। और यहाँ तक की इतनी प्यारी भीनी भीनी सी खुशबू से भरे होते थे जैसे, जैसे… जीवन…. जीवन की तरह। ”
“पेड़ों के बारे में क्या माँ? क्या आपने कभी पेड़ों को देखा है? ”
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“बेशक! वे हर जगह थे जब मैं एक छोटी बच्ची हुआ करती थी बिलकुल तुम्हारी तरह तो गर्म दिनों में, अपने दोस्तों के साथ खुले मैदान में खेलते खेलते जब थक जाती थी तो मैं सूरज की रोशनी से बचने के लिए उनके नीचे बैठ जाया करती थी। ”
Earth’s End Emotional Story in Hindi
“आपने सूरज भी देखा है ?!”
“उम्म्म्म , उन दिनों सूरज को देखे बिना बाहर जाना मुमकिन ही नहीं था क्यूंकि आकाश में, वह हमेशा सर के ऊपर ही रहता था चमकता हुआ वो इतना बड़ा था की पूरी पृथ्वी के आधे भाग को रौशनी दिया करता था, इतना बड़ा की तुम कल्पना भी नही कर सकती और उसके चमकने का तेज़ इतना ज्यादा होता था की तुम थोड़ी देर से ज्यादा उसको देख ही नहीं सकती थी इतना खूबसूरत करिश्मा यकीं नहीं होता की अब कभी नहीं देख पाएंगे ! वो ही एक कारण था जिससे हम सबकुछ देख पाते थे ! ”
Earth’s End Emotional Story in Hindi
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“वाह सच में कितना खूबसूरत होगा वो क्या वो भी बिलकुल हमारी इन छोटी छोटी चमकती हुई लाईटो की तरह था जो कमरे में आने पर जल जाती हैं।
“नहीं बेटा” उसकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती.
अच्छा….. और माँ तरबूज, तरबूज के बारे में क्या? क्या आपके पास कभी असली तरबूज खाया है? ”
“हाँ, तरबूज मेरे पसंदीदा हुआ करते थे, स्वाद ऐसा की ये सभी आर्टिफीसियल खाना फीका पड जाए!”
“क्या इस तरबूज का स्वाद उस तरबूज वाली टॉफ़ी की तरह होता हैं जो हमें कभी कभी मिठाई में मिलता है?”
“हाँ, उसी तरह का होता हैं। लेकिन वो कुछ अलग था जिनकी जगह ये तरबूज वाली टोफ्फीयां कभी नहीं ले सकती। यह बाहर से बिलकुल सख्त होता था जब तक की वो तुम्हारे मुह में ना जाए, एक बार मुह में जाने के बाद अपने आप घुल सा जाता था, वो पिघल सा जाता, उसका स्वाद मेरे लिए एक जादू की तरह था”
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“लेकिन माँ ये तो मुमकिन ही नहीं है की बाहर से सख्त हो मुह में जाने पर पिघल जाए!”
“मैं जानती हूँ, मैं जानती हूँ। लेकिन ऐसा ही लगता है! ”
“यह अब तक की मुझे सबसे अच्छी चीज लगी आपको लगता है कि मैं कभी सचमुच के तरबूज का स्वाद ले पाउंगी ?”
माँ की आँखों में आंसू भर गए लेकिन वो अपनी बच्ची से झूठ नहीं बोलना चाहती थी इसलिए उसने सच ही कहा
“मुझे नहीं पता। हम इसे यहां नहीं उगा सकते। इसे सूरज की रोशनी चाहिए बढ़ने के लिए, उगने के लिए, जिसके लिए हमारे पास सही जमीन नहीं हैं। वह केवल सतह पर है। ”
“ठीक है, क्या आपको लगता है कि हम कभी वहां जा सकते हैं?”
“बेटा वहां अभी भी बहुत रेडिएशन हैं, अगर हम गए, तो हम एक घंटे में मर जाएंगे। ”
“माँ रेडिएशन क्या होता है?”
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“यह वास्तव में बहुत भयानक बुरा और खतरनाक है और ये तब पैदा होते हैं जब नीयुकीलीयर बम फोड़ा जाता हैं। और अंतिम युद्ध में इन बमों को इतनी बार फोड़ा गया की इससे निकली रेडिएशन हर जगह फैल गयी। यही कारण है कि हममें से जब कुछ बच गए थे तो अपनी जान बचाने के लिए हमे धरती के नीचे अंडरग्राउंड रहना पद रहा हैं। ”
“माँ कभी क्या आगे भविष्य में ऐसा समय आएगा जब मैं कभी ऊपर जा पाउंगी, खुली हवा में सांस ले पाऊँगी, सूरज की किरणों को छू पाउंगी, खेलते खेलते थक के किसी पेड़ के नीचे आराम करते करते तरबूज खा पाउंगी, कभी ऐसा दिन आ पाएगा क्या”?
“मुझे नहीं पता, बेटा मुझे नहीं पता।” और माँ रोने लग गयी
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