द्रोणाचार्य का प्रिय शिष्य अर्जुन : युधिष्ठिर के बाद द्रोणाचार्य ने एक-एक करके कुरु वंश के सभी राजकुमारों को चिड़िया की आंख का संधान करने के लिए बुलाया। राजकुमार आए तो द्रोणाचार्य ने उनसे वही प्रश्न पूछा, जो युधिष्ठिर से पूछा था। और आश्चर्य कि सभी राजकुमारों ने वही उत्तर दिया, जो युधिष्ठिर ने दिया था।
अंतत: द्रोणाचार्य ने राजकुमार अर्जुन को लक्ष्य संधान के लिए कहा। अर्जुन आया तो द्रोणाचार्य ने उससे भी वही प्रश्न किया, किंतु उसका उत्तर अन्य राजकुमारों से भिन्न था। उसने कहा, ” आचार्य प्रवर! मुझे चिड़िया की आंख के अलावा और कुछ दिखाई नहीं दे रहा।” | द्रोणाचार्य अर्जुन का उत्तर सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और उसे लक्ष्य संधान करने को कहा। बाण चला और लक्ष्य को बेध गया।
द्रोणाचार्य ने अर्जुन की पीठ थपथपाई और स्नेह से सिर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद दिया, “प्रिय अर्जुन ! मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि सम्पूर्ण भरतखंड में तुम्हारे जैसा वीर धनुर्धर दूसरा न होगा।”
आचार्य के इस आशीर्वाद से मानो अर्जुन की साध पूरी हो गई थी।
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