दयालु – अम्बरीश | Dayalu – Ambrish

दयालु – अम्बरीश | Dayalu – Ambrish : एक बार राजा अंबरीश भगवान् विष्णु की प्रार्थना में ध्यान मग्न थे। इन तीन दिनों में उन्होंने न तो चावल का एक भी दाना खाया और न ही पानी की एक बूंद भी ग्रहण की। तीन दिन के पश्चात् उन्होंने सभी ज्ञानी पंडितों को बुलाया। शीघ्र ही सभी एक साथ एकत्रित हो गए और राजा अबरीश उनके आदर-सत्कार में व्यस्त हो गए। उन्होंने सभी को गाय तथा उपहार आदि दान में दिए। तभी ऋषि दुर्वासा वहाँ पहुँचे। राजा ने महान् तपस्वी का आदर-सत्कार किया। “आपकी उपस्थिति मेरा सौभाग्य है। कृपया आप भी भोजन ग्रहण कर मुझे आशीर्वाद दें।” “मैं ऐसा ही करूगा राजा अबरीश पर उससे पहले मैं नदी में स्नान करूंगा तत्पश्चात् ही भोजन ग्रहण करूंगा।”

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दयालु – अम्बरीश | Dayalu – Ambrish : ऋषि दुर्वासा बोले। ऋषि दुर्वासा स्नान के लिये नदी की ओर चल दिए। सभी उनकी वापसी का इन्तजार कर रहे थे। इस प्रकार कई घण्टे बीत गए, लगभग दोपहर होने को आ गई। तब एक पण्डित बोले, “राजा अंबरीश, दोपहर होने की है, यदि दोपहर से पहले तुमने अपना व्रत नहीं खोला, तो यह बहुत बड़ा पाप होगा।” “पर ऋषि दुर्वासा तो अभी वापस नहीं आए। वे मेरे.अतिथि हैं और आप सभी उनके क्रोध से परिचित हैं। यदि मैंने उनके आने से पहले भोजन कर लिया, तो निश्चित ही वे क्रोधित हो जायेंगे।” राजा अंबरीश बोले। “दोपहर से पहले तुम थोडा जल ग्रहण करके अपना व्रत खोल सकते हो।

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फिर ऋषि दुर्वासा के आने पर थोड़ा भोजन खा लेना। इस प्रकार तुम्हें पाप भी नहीं लगेगा और ऋषि दुर्वासा का अपमान भी नहीं होगा।” पण्डित ने कहा। राजा अंबरीश मान गए और उन्होंने थोड़ा पानी पीने के लिये ले लिया। जैसे ही वे पानी पीने लगे तभी ऋषि दुर्वासा वहाँ आ गए। राजा के हाथ में पानी देख ऋषि दुर्वासा का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। ‘अंबरीश, मुझे भोजन खिलाने से पहले तुम्हारी भोजन करने की हिम्मत कैसे हुई? ” ऋषि ने क्रोधित होकर कहा। “मैंने अपना व्रत नहीं खोला हम एक साथ भोजन करेंगे उन्होंने समझाते हुए कहा। “तुम इतना भी नहीं जानते कि अतिथि के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? तुम्हें इसके लिए सजा मिलेगी।”

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दयालु – अम्बरीश | Dayalu – Ambrish : यह कहते हुए ऋषि दुर्वासा ने अपने सिर से कुछ बाल तोड़े, उनसे एक चक्र बनाया और चक्र को राजा अंबरीश की गर्दन काटने के लिए भेज दिया। अपनी जान बचाने के लिए राजा अंबरीश भगवान् विष्णु से प्रार्थना करने लगे. अपने भक्त की चीख – पुकार सुनते ही भगवान् विष्णु ने बचाव के लिए अपना चक्र भेज दिया। भगवान् विष्णु के चक्र ने ऋषि दुर्वासा के चक्र को काट दिया और उल्टा ऋषि दुर्वासा के पीछे पड़ गया।

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वे अपनी जान बचाने के लिए तेजी से भागने लगे। उन्होंने कई नदी व तालाब पार किए, परन्तु चक्र अभी भी उनके पीछे-पीछे था। ऋषि दुर्वासा भगवान् ब्रह्मा, के पास पहुँचे और बोले, “भगवान् ब्रह्मा, मेरी रक्षा कीजिए, विष्णु के चक्र से मेरी रक्षा कीजिए।” “चले जाओ यहाँ से, तुमने भगवान् विष्णु के भक्त का अपमान किया है, इसीलिए भगवान् तुमसे क्रोधित हैं। मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।” बह्या जी ने उत्तर दिया। असहाय ऋषि दुर्वासा भगवान् शिव के पास पहुँचे। भगवान् शिव ने कहा, “ये भगवान् विष्णु का चक्र है। सहायता के लिए तुम उन्हीं के पास जाओ,

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दयालु – अम्बरीश | Dayalu – Ambrish : मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता।” थके हारे दुर्वासा अब भगवान् विष्णु के पास गए और झुककर धीरे से बोले, “हे भगवान्, अपने चक्र से मेरी रक्षा कीजिए।” “तुमने मेरे भक्त का अपमान किया है। तुम्हारा अपने क्रोध पर नियन्त्रण नहीं है। इसलिए मुझसे माफी माँगने की बजाय राजा अंबरीश के पास जाओ, तुमने उनका अपमान किया है और केवल उनकी माफी ही तुम्हें मेरे चक्र से बचा सकती है?” अन्त में ऋषि दुर्वासा राजा अंबरीश के पास पहुँचे और बोले, “अंबरीश मुझे क्षमा करो, मैंने तुम्हारा अपमान किया। मेरा जीवन अब तुम्हारे हाथों में है।

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कृपया भगवान् विष्णु के चक्र को रोकने के लिए कुछ करो।” राजा अंबरीश ने भगवान् विष्णु से प्रार्थना की कि वे अपना चक्र रोक दे. तुरंत ही भगवान् विष्णु का चक्र गायब हो गया. ऋषि दुर्वासा ने राहत की सांस ली और राजा अम्बरीश से बोले, “मैं भगवन ब्रह्मा विष्णु तथा शिव सभी के पास गया, परन्तु इस चक्र को कोई ना रोक सका. तुम्हारे पास ऐसी क्या शक्ति हैं, जिससे वह चक्र रुक गया.”

“मेरे पास भगवान् विष्णु के प्यार की शक्ति है, जिसकी वजह से मैंने आपके पीछे लगे हुए चक्र को रोका।” अंबरीश का यह तर्क सुनते ही सभी ने भगवान् विष्णु की जय-जयकार की।

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