Birbal Burma mei | Akbar Birbal Stories in Hindi : बीरबल बादशाह अकबर के दरबारियों में सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति था। अपनी योग्यता के कारण वह बादशाह का बड़ा प्रिय रत्न था। बादशाह की उस पर विशेष कृपा रहती थी। बादशाह अकबर के नौ रत्नों में वह सबसे अधिक बुद्धिमान और हाजिर-जवाब था, इसलिए बादशाह को उस पर बड़ा गर्व था। उसको इतना सम्मान मिलने के कारण अन्य दरबारी उससे बडी ईष्या करने लगे थे और हमेशा इसी ताक में रहते थे कि कब बीरबल का पद हथिया लिया जाए। बादशाह के साले हुसैन खाँ ने कई बार प्रयत्न किया पर हर बार नाकामयाब रहा। बीरबल के पद को हथियाने में नाकाम होने पर हुसैन खाँ दरबारियों को प्रसन्न करने में लग गया। उसने सोचा कि वे उसकी मदद अवश्य करेंगे। एक दिन एक दरबारी ने बादशाह अकबर से कहा “महाराज, बहुत समय से इस पद के लिए एक हिन्दु मंत्री है।
थोड़े बदलाव के लिए अब एक मुस्लिम मंत्री को मौका मिलना चाहिए। हम सब आपके साले हुसैन खाँ के नाम का प्रस्ताव रखते हैं” बादशाह अकबर, जो सभी धर्मों को समान समझते थे, इस बात से क्रोधित हो गए, परंतु अपने क्रोध पर नियंत्रण रखते हुए वह बोले “पद देने से पहले मैं चाहता हूँ कि उसे कुछ अनुभव भी हो। हुसैन खाँ को बीरबल के साथ वर्मा(वर्तमानं म्यंमार) जाकिर वहाँ के राजा के पास हमारा यह सीलबंद पत्र शीघ्र-से-शीघ्र पहुँचाना है।” अगली सुबह हुसैन खाँ और बीरबल बर्मा के लिए रवाना हो गए। शीघ्र ही वे बर्मा के राज-दरबार में पहुँच गए। बीरबल ने पत्र बर्मा के राजा को दे दिया। पत्र पढ़कर बर्मा के राजा हैरत में पड़ गए। उन्होंने अपने सुरक्षा-कर्मियों से कहा कि भारत से आए दोनों अतिथियों को अतिथि-गृह में कड़ी सुरक्षा के बीच रखा जाए। बीरबल और हुसैन खाँ अतिथि-गृह के आस-पास इतने सारे सुरक्षा-कर्मियों को पहरा देते देखकर चकित थे। बर्मा के मंत्री भी यह देखकर दुखी थे। उन्होंने अपने राजा से पूछा ‘महाराज, आपने इन अतिथियों को इतनी अधिक सुरक्षा-व्यवस्था में क्यों रखा हुआ है?” इस पर बर्मा के राजा ने कहा, “हिन्दुस्तान के बादशाह अकबर ने यह संदेश दिया है कि इन दोनों संदेशवाहकों को पूर्णिमा की रात को फाँसी पर चढ़ा दिया जाए।
मैं यह सोचकर हैरान हूँकि इन लोगों को भारत में मृत्युदंड क्यों नहीं दिया गया। शायद यह महत्वपूर्ण (प्रभावी) व्यक्ति होंगे और उनकी मृत्यु से लोगों में रोष फैलने का डर होगा। कहीं ऐसा न हो कि यदि मैं इन्हें मार दूँ तों बादशाह अकबर की उत्तराधिकारी इनकी मृत्यु का वहाना लेकर हमारे राज्य पर आक्रमण कर दें।” बर्मा के मंत्री बीरबल के पास अतिथि-गृह पहुँचे और बोले “मित्रों, तुम्हारे बादशाह ने तुम दोनों को पूर्णिमा की रात फाँसी देने का आदेश दिया है।” बीरबल को पहले से ही गड़बड़ होने की आशंका थी इसलिए उसने हुसैन खाँ के साथ मिलकर पहले से ही योजना बना रखी थी कि कैसे व्यवहार करना है? इसलिए जब बर्मा के मंत्री ने यह सब कहा तो बीरबल बोला “कृपया पत्र में लिखे हमारे बादशाह के आदेश का पालन कीजिए।” “हाँ, हमें आदेश के अनुसार ही फाँसी पर लटकाया जाए। “हुसैन खाँ ने बीरबल की बात का समर्थन करते हुए कहा। मंत्री चले गए और जाकर बीरबल तथा हुसैन खाँ की सभी बातें बर्मा के राजा को कहीं अतिथि-गृह में बीरबल ने हुसैन खाँ से कहा “यदि तुम हम दोनों के जीवन की रक्षा करना चाहते हो तो जैसा मैं कहता हूँवैसा करना। पूर्णिमा के दिन जब वे हम दोनों को फाँसी देने के लिए ले जाने लगें तो तुम मुझसे पहले फाँसी पर चढ़ने की जिद करना, उसके बाद मैं सब कुछ संभाल लुंगा, वरना हम दोनों ही मौत के घाट उतार दिए जाएँगे।” तीन दिन बाद बीरबल और हुसैन खाँ को फाँसी पर चढ़ाने के लिए ले जाया गया। चाँद पूरा चमक रहा था। बीरबल बोला “महाराज, मेरी अंतिम इच्छा है कि पहले मुझे फाँसी दी जाए।
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क्योंकि मैंने पहले आपको पत्र दिया था, इसलिए कृष्क्ला मुझे ही पहले फाँसी दें।” हेत्रों ने जिदो नहीं महाराज, पहले मुझे फाँसी दीजिए क्योंकि मैं हिन्दुस्तान के बादशाह अकबर का साला हूँ।” यह सब देखकर बर्मा के राजा ने बीरबल से पूछा, “तुम पहले क्यों मरना चाहते हो?” बीरबल ने जवाब दिया ‘महाराज, आज रात जो सबसे पहले फाँसी पर चढ़ेगा वह अगले जन्म में बर्मा का राजा होगा। इसलिए तो हिन्दुस्तान के बादशाह ने हमें हिन्दुस्तान में फाँसी पर नहीं चढ़ाया बल्कि बर्मा भेज दिया।” बर्मा का राजा सोचने लगा “मेरे पुत्र के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति बर्मा का नया राजा नहीं हो सकता। मैं इन लोगों को अपने पुत्र का अधिकार नहीं लेने दूँगा।” यह सोचकर बर्मा के राजा ने अपने आदमियों से बीरबल और हुसैन खाँ को अपने राज्य की सीमा से बाहर छोड़ने को कहा। उन्होंने हिन्दुस्तान के बादशाह के लिए बहुत से उपहार भी दिए। उनकी वापसी पर बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा “बीरबल, तुम्हारी बर्मा की यात्रा कैसी रही?” बीरबल ने वहाँ घटी प्रत्येक घटना बादशाह को बता दी। बादशाह अकबर अब हुसैन खाँ की तरफ मुड़े और बोले, “अब कही हुसैन खाँ क्या तुम बीरबल का पद ले सकते हो?” “नहीं महाराज! मैं इस पद के योग्य नहीं हूँ। बीरबल जैसा बुद्धिमान व्यक्ति ही इस जिम्मेदारी को सँभाल सकता है।” हुसैन खाँ ने कहा। इस प्रकार बीरबल को शत्रु समझने वाले दरबारियों की सूची में से एक नाम कम हो गया।
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