भारत के सम्मान की रक्षा : मदर टेरेसा में अहंकार का लेशमात्र नहीं था, किंतु अपने स्वाभिमान की रक्षा करना वे जानती थीं।
एक बार स्विट्जरलैंड का एक बड़ा व्यापारी मदर के पास आया। वह कई कंपनियों और बैंकों का मालिक था। उसकी बातों से अहंकार की गंध आती थी। मदर से मिलकर वह बोला, “मदर! आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया। मैं मानव-सेवा के लिए भारत के गरीबों पर कुछ धन खर्च करना चाहता हूं,
ताकि वे मुझे याद कर सकें। मेरे पास बहुत धन है। मैंने गरीबों की कई बार मदद की है। आज मैं आपके | माध्यम से इस धन को खर्च करना चाहता हूं। आप मेरे पैसे से कितने ही ‘मदर होम्स’ बनवा सकती हैं।” | मदर ने सदैव प्रेम का दान स्वीकार किया था। अहंकार का दान स्वीकार करना उनके सिद्धांतों के खिलाफ था। उन्होंने उसे जवाब दिया, “यदि आपके पास इतना अधिक धन है तो आप अपने देश जाकर गरीबों के लिए ‘होम्स’ खोलिए। हमारे देश भारत में स्वेच्छा से दान करने वालों की कमी नहीं है। भारत गरीब देश जरूर है, परंतु यहां के गरीबों के दान की मदद से दुनिया के तमाम गरीबों को बसाया जा सकता है। यहां के गरीब इतने दयालु हैं। कि वे स्वयं भूखे रहकर अपना भोजन दूसरों को खिला देते हैं।”
मदर का जवाब सुनकर वह व्यापारी शर्मिंदा हो गया। मदर ने उससे धन न लेकर भारत के स्वाभिमान की रक्षा की।