बैरिस्टर मोहनदास गांधी : बैरिस्टर बनने के कुछ दिन बाद तक गांधी जी राजकोट में ही रहे। फिर वे अपने एक मित्र की सलाह पर बंबई चले गए। वहां उनकी वकालत ठीक से नहीं चल पाई। निराश होकर वे फिर राजकोट चले आए। उन्होंने अपना एक ऑफिस खोल लिया। यहां उनका काम चलने लगा। उन्हीं दिनों अचानक पोरबंदर के एक बहुत बड़े व्यापारी दादा अब्दुल्ला का एक संदेश उनके भाई के पास आया। दादा अब्दुल्ला उन दिनों नेटाल में थे। दादा अब्दुल्ला ने अपने एक मुकदमे के सिलसिले में गांधी जी को बुलाया था।
बड़े भाई ने गांधी जी से कहा, “मोहन! अगर तुम नेटाल (साउथ अफ्रीका) जाना चाहो तो सेठ अब्दुल्ला तुम्हें आने-जाने का फर्स्ट क्लास का किराया और भोजन खर्चे के अलावा 105 पौण्ड प्रति सप्ताह देंगे।”
गांधी जी को प्रस्ताव अच्छा लगा। उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और वे सन् 1893 को दक्षिण अफ्रीका चले गए।