अंत – बकासुर का | Ant – Bakasur ka : अपनी युवास्था में कृष्ण अपने मित्रों के साथ पशुओं को चराने जंगल में जाते थे। बलराम भी उनके साथ जाते थे। एक दिन पशुओं को चराते हुए कुछ ही समय बीता था, तो कृष्ण और बलराम ने सोचा कि पशु शायद प्यासे होंगे। सो उनकी प्यास बुझाने के उद्देश्य से वे पशुओं को जगल में नदी किनारे ले गए। वहाँ – सभी पशुओं ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। अचानक सभी बालक हैरान हो गए, उन्होंने नदी किनारे एक विशाल बगुले को देखा। वह बहुत ही बड़ा था और उसकी चोंच भी बहुत लम्बी थी। नदी के दूसरे किनारे से वह बगुला कृष्ण के पास पहुँचा और उन्हें अपनी लम्बी चोंच से पकड लिया। वह कृष्ण को तुरन्त निगल गया। यह देख सब बालक घबराकर इधर-उधर भागने लगे और हडबडी में गिर पडे।
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अंत – बकासुर का | Ant – Bakasur ka : जिस पल कृष्ण उस विशाल बगुले के गले में थे, ठीक तभी बगुले के गले में बहुत तेज जलन होने लगी। जलन से परेशान होकर विशाल बगुले ने उन्हें अपनी चोंच द्वारा गले से बाहर निकाल दिया। गले से बाहर आने पर कृष्ण ने उसके गले को फाड़ दिया। शीघ्र ही विशाल बगुला मृत्यु को प्राप्त हो गया। वास्तव में, वो विशाल बगुला बकासुर नाम का राक्षस था जो बगुले के रूप में कृष्ण को मारने के लिए आया था। थोड़ी ही देर में सभी बालको को होश आ गया. घर आने पर उन्होंने यह घटना सभी को सुनाई। इस पर कृष्ण के पिता नन्द बाबा बोले “अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि कृष्ण कोई साधारण मानव नहीं है। वह स्वयं भगवान् का ही रूप है।” प्रत्येक व्यक्ति उनके इस विचार से सहमत था।
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