आँखे मुंदकर विश्वास करना मुर्खता की चोटी हैं | Ankhe Mundkar Vishwas Karna Murkhta Ki Choti Hain
आँखे मुंदकर विश्वास करना मुर्खता की चोटी हैं | Ankhe Mundkar Vishwas Karna Murkhta Ki Choti Hain : किसी झील के किनारे एक बगुला रहता था। वह इतना बूढ़ा और कमजोर हो चुका था कि अपना आहार भी नहीं खोज पाता था। मछलियां उसके समीप से गुजर जाती थीं, लेकिन जल में गर्दन डालकर उन्हें पकड़ने की शक्ति भी उसमें नहीं थी। इसी कारण कई – कई दिन उसे भूखा ही रह जाना पड़ता था।
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एक दिन झील के किनारे खड़ा होकर वह बुरी तरह से रोने लगा। उसकी आंखों से आंसू बह – बहकर जमीन पर गिरने लगे। उसे इस प्रकार रोता हुआ देखकर एक केकड़ा उसके पास पहुंचा और सहानुभूतिपूर्वक उससे पूछा – ‘बगुला भाई! तुम रो क्यों रहे हो?’ बगुला बोला – ‘मित्र! मैंने जीवन में अनेक पाप किए हैं। अब जब इस बात का ज्ञान हुआ है, तो मैंने निश्चय किया है कि अपने प्राणों की आहुति दे ढूं। इसीलिए मैं समीप आई मछलियों को भी नहीं पकड़ रहा हूं। इसके अतिरिक्त एक और भी चिंताजनक बात है?’
‘वह कौन – सी, मित्र?’ केकड़े ने पूछा।
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आँखे मुंदकर विश्वास करना मुर्खता की चोटी हैं | Ankhe Mundkar Vishwas Karna Murkhta Ki Choti Hain : बगुला बोला – ‘मुझे एक ज्योतिषी ने बताया है कि इस बार बारह वर्ष तक वर्षा का योग नहीं है। जल के बिना हमारा जीवन कैसे बचेगा? यह झील तो कुछ समय के बाद सूखने लगेगी। ऐसे में जल में रहने वाले जो प्राणी भूमि पर चलने में भी सक्षम हैं, वे तो यहां से कुछ दूर एक बहुत बड़े सरोवर में चले जाएंगे, पर तुम्हारे जैसे छोटे जीव और मछलियों का क्या होगा? वे बेचारी तो सारी की सारी मर जाएंगी। बस, मैं इसी चिंता में घुला जा रहा हूं, इसीलिए मैंने खाना-पीना भी छोड़ दिया है।’
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बगुले की बात सुनकर केकड़ा भी चिंता में पड़ गया। उसे अपने जीवन की चिंता सताने लगी। केकड़े ने जब यह बात अन्य जलचरों को बताई, तो वे सभी चिंतित हो उठे। सारे जलचर बगुले के पास पहुंचे और उससे पूछा – ‘बगुले भाई! क्या किसी उपाय से हमारे प्राणों की रक्षा हो सकती है?’ बगुला बोला – ‘यहां से कुछ दूर एक बहुत बड़ा सरोवर है। उसका पानी कभी सूखता नहीं। अगर चौबीस वर्ष भी वर्षा न हो, तब भी उस सरोवर का जल समाप्त नहीं होने वाला। वह बहुत गहरा सरोवर है। यदि सारे जलचर उसमें चले जाएं, तो उनका जीवन बच जाएगा, अन्यथा सभी तड़प – तड़प कर मर जाएंगे।’
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आँखे मुंदकर विश्वास करना मुर्खता की चोटी हैं | Ankhe Mundkar Vishwas Karna Murkhta Ki Choti Hain : यह सुनकर मछलियां उदास हो गई और बोलीं – ‘तब तो हमारी मृत्यु निश्चित है। हमारे तो पांव ही नहीं हैं, जिनसे चलकर वहां तक पहुंच सकें।’ केकड़े ने पूछा – ‘बगुले भाई, क्या कोई ऐसा उपाय है, जिससे हम सबका जीवन बच जाए?’ ‘उपाय तो है।’ बगुला बोला-‘ और वह उपाय यह है कि तुममें से एक जलचर प्रतिदिन मेरी पीठ पर बैठ जाए, मैं उसे ले जाकर उस सरोवर में छोड़ आऊंगा।
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इस तरह से एक-एक करके सारे जलचर दूसरे सरोवर में पहुंच जाएंगे।” ‘तब मेहरबानी करके आप हमें उस दूसरे सरोवर में छोड़ आइए। हम आपका बहुत आभार मानेंगी।’ मछलियों ने आग्रह किया। उस दिन से वह बगुला रोज एक मछली अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाता। कुछ दूर जाने पर वह एक शिलाखंड पर जा कर बैठ जाता। मछली को शिलाखंड पर पटक-पटक कर मारता और उसे गड़प जाता। मछलियां खा-खाकर बगुला खूब हृष्ट-पुष्ट हो गया। एक दिन केकड़े ने उस बगुले से कहा – ‘मित्र बगुला! सबसे पहले मैं ही तुमसे मिला था। तुम अन्य जीवों को तो उस दूसरे सरोवर में ले जा रहे हो, किंतु मेरी उपेक्षा कर रहे हो। कृपा करके आज मुझे उस सरोवर में छोड़ आओ।”
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आँखे मुंदकर विश्वास करना मुर्खता की चोटी हैं | Ankhe Mundkar Vishwas Karna Murkhta Ki Choti Hain : बगुला मछलियां खा – खाकर ऊब चुका था। उसने सोचा कि स्वाद बदलने के लिए आज यह केकड़ा ही ठीक रहेगा। ऐसा सोचकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बैठा लिया और उस काल्पनिक सरोवर की ओर उड़ चला। नित्य की भांति वह केकड़े को लेकर शिलाखंड पर जाकर बैठ गया। यह देखकर केकड़ा आशंकित हो उठा। उसने बगुले से पूछा – ‘मित्र बगुला! और कितनी दूर है, वह सरोवर?’
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बगुले ने सोचा कि अब इसे सच्चाई से अवगत करा ही देना चाहिए, क्योंकि थोड़ी देर बाद तो यह मर ही जाएगा। केकड़े की बात सुनकर वह हंस पड़ा। बोला – ‘कैसा सरोवर? अरे मूर्ख! यहां कोई भी सरोवर नहीं है। यह तो तुम लोगों को लाने के लिए मेरी एक चाल थी?”
बगुले की बात सुनकर केकड़ा सन्न रह गया। उसने नीचे झांका तो उसे बगुले द्वारा खाई गई मछलियों के अवशेष भूमि पर पड़े दिखाई दे गए। वह केकड़ा अब अपनी जान बचाने के लिए उद्यत हो गया। बगुला ने केकड़ा से कहा – ‘केकड़े! अपने इष्ट देवता को याद कर ले, क्योंकि मैं तेरा जीवन छीनने जा रहा हूं।’
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आँखे मुंदकर विश्वास करना मुर्खता की चोटी हैं | Ankhe Mundkar Vishwas Karna Murkhta Ki Choti Hain : बगुले का इतना कहना था कि केकड़ा उसकी गर्दन से चिपट गया। उसने अपने तीक्ष्ण दांत और पंजे बगुले की नरम गर्दन में गड़ा दिए और तब तक बगुले की गर्दन दबाता रहा, जब तक कि बगुले का प्राणांत न हो गया। फिर वह केकड़ा किसी प्रकार सरकता हुआ अपने सरोवर में जा पहुंचा। उसे वापस आया देख मछलियों ने उससे पूछा – ‘केकड़ा भाई! तुम तो आज नए सरोवर के लिए गए थे, वापस क्यों लौट आए?’ ‘कैसा सरोवर और कैसा जल?’ केकड़ा बोला – ‘यह तो उस धूर्त बगुले की एक चाल थी।’ यह कहकर उसने मछलियों को सारी बातें बता दीं। साथ ही यह भी बता दिया कि मैंने उस बगुले को मार डाला है। सारे जलचर यह सुनकर बहुत प्रसन्न हो उठे और केकड़े को धन्यवाद देने लगे, जिसकी बुद्धिमत्ता के कारण वह अकाल – मृत्यु का शिकार से बच गए थे। ‘अच्छा हुआ उस धूर्त बगुले को दंड मिल गया।’ मछलियां बोलीं – अब हम सब निश्चित होकर आनंद- पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करेंगी।’ इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि हमें आंख मूंद कर किसी की बात पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए, क्योंकि कभी – कभी भेड़ की खाल में भेड़िए भी छुपे रहते हैं।
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