अमृत कलश : शिव द्वारा कालकूट विष पान कर लेने से भू-मण्डल पर जो त्राहि-त्राहि मच गई थी, शांत हो गई। देव-दानव फिर से समुद्र-मंथन में जुट गए। इस बार उन्होंने और भी तीव्र गति से समुद्र को मथना शुरू किया। सारा समुद्र क्षुब्ध हो उठा। तब दिव्य शरीरधारी धन्वंतरि देव अमृत से भरा श्वेत पात्र लेकर प्रकट हुए। अमृत-कलश को देखकर देव-दानव, दोनों ही उसे प्राप्त करने के लिए दौड़ पड़े। दोनों ही आपस में लड़ने लगे और एक-दूसरे को पीछे खींचने और धकेलनेलगे।।
ब्रह्मा और विष्णु चुपचाप कुछ पल उन्हें देखते रहे। उनका झगड़ा खत्म न होते देख ब्रह्मा ने विष्णु से कहा, “ भगवन! इस प्रकार तो ये आपस में ही लड़ मरेंगे। यदि यह अमृत-कलश इन असुरों के हाथों में पड़ गया तो अनर्थ हो जाएगा। आप ही कोई उपाय कीजिए।”
“हे ब्रह्मदेव! उचित समय आने पर उपाय भी हो जाएगा।” विष्णु ने कहा, “इस समय इन्हें रोकना उचित नहीं होगा। धन्वंतरि देव इन्हें तब तक अमृत-कलश देने वाले नहीं हैं, जब तक ये लड़ना बंद नहीं करेंगे। आप देखिए, वे चाहकर भी उनके पास तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।”
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