ऐतरेय ब्राह्मण’ के जनक ऐतरेय मुनि : एक दिन भ्रमण करते हुए वे कोटितीर्थ नामक स्थान पर जा पहुंचे। वहां अनेक विद्वानों के सान्निध्य में हरिमेधा नामक ऋषि यज्ञ कर रहे थे। ऐतरेय ने अपनी माता के साथ भगवान विष्णु से संबंधित प्रार्थना को मंत्रों द्वारा वहां गाया। उसे सुनकर तथा उनके तेज और विद्वत्ता को देखकर वहां उपस्थित सभी विद्वान अत्यंत प्रभावित हुए। उन्होंने उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाया और उनका परिचय प्राप्त कर उनकी खूब आवभगत की।
ऐतरेय ने यहीं पर वेद के नवीन चालीस अध्यायों का पाठ किया। ये पाठ अभी तक पूरी तरह अज्ञात थे। बाद में ये पाठ ‘ऐतरेय ब्राह्मण’ के नाम से विख्यात हुए। हरिमेधा ने ऐतरेय से अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। ऐतरेय की माता को भी यहां भूरि-भूरि प्रशंसा और सम्मान प्राप्त हुआ। | ऐतरेय की माता ने अपने पुत्र से जो कामना की थी, वह उसे प्राप्त हो गई थी। भगवान विष्णु की कृपा से ऐतरेय का नाम महर्षि ऐतरेय के रूप में सदा-सदा के लिए अमर हो गया।
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