ललकार – बंदर की | Lalkaar – Bandar Ki
ललकार – बंदर की | Lalkaar – Bandar Ki : एक बार अर्जुन, भारत के सभी तीर्थ-स्थलों की यात्रा पर निकले। उनके साथ एक ब्राह्मण भी थे। जब वह रामेश्वरम् पहुँचे तो ब्राह्मण बोला, “यह वह स्थान है, जहाँ से भगवान् राम और बन्दरों की सेना ने श्रीलंका जाने के लिए तीरों से पुल बनाया था।” ” पर भगवान् राम को बन्दरों की सेना की आवश्यकता क्यों पड़ी? भगवान् राम तो स्वयं ही इस प्रकार का पुल बनाने में सक्षम रहे होंगे,” अर्जुन ने पूछा। ब्राह्मण ने कोई उत्तर न दिया और वे दोनों वहाँ से चल पड़े। एक बन्दर, जो कि अर्जुन के साथ-साथ चल रहा था,
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हँसते हुए बोला, “क्योंकि बन्दरों के इस पर अर्जुन बोले “जब एक साधारण व्यक्ति द्वारा बनाया गया पुल नहीं टूट सकता, फिर भगवान् राम का पुल कैसे टूट सकता है?” “ठीक है,” बन्दर बोला। “मैं तुम्हें ललकारता हूँ कि तुम्हारे द्वारा बनाया गया तीरों का पुल मुझ जैसे छोटे बन्दर का भार सह नहीं पाएगा। यदि पुल नहीं टूटा, तो मैं जीवनभर तुम्हारा गुलाम बनकर रहूँगा।” “यदि मैं हारा तो मैं आग में जलकर भस्म हो जाऊँगा।” अर्जुन बोले।
तब अर्जुन समद्र के किनारे गए और अपना तीरों से भरा तरकश उठाया. वह तरकश अर्जुन को अग्नि देव से प्राप्त हुआ था. तरकश में अनगिनत तीर थे.
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ललकार – बंदर की | Lalkaar – Bandar Ki : शीघ्र ही तीरों से बना — पुल तैयार हो गया। अर्जुन ने बन्दर से उस पर चलने को कहा। जैसे ही बन्दर ने पुल पर पैर रखा, पुल टूट गया। अर्जुन ने एक बार फिर दोबारा पुल बनाया, परन्तु वह फिर टूट गया। अपनी हार हो जाने पर अर्जुन ने आग जलाई और उसमें भस्म होने को जाने ही लगे थे कि तभी एक बालक वहाँ आया और बोला, “श्रीमान्, आप ये क्या कर रहे हैं?” अर्जुन ने उसे बन्दर की ललकार के विषय में बताया। बालक ने प्रत्यक्षदर्शी तो है नहीं कि यहाँ क्या हुआ था। मेरे विचार से तुम्हें एक बार फिर पुल बनाना चाहिए, मैं देखता हूँ कि बंदर उसे कैसे तोड़ पाता है?”
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ललकार – बंदर की | Lalkaar – Bandar Ki : अर्जुन ने पुन: तीरों का पुल बनाया। बन्दर उस पर चढ़ा, परन्तु इस बार पुल नहीं टूटा। तब बन्दर जोर से उछलने-कूदने लगा, परन्तु फिर भी पुल नहीं टूटा। “मेरे साथ यह क्या हो रहा है? मेरे विचार से मेरी पूरी शक्ति अब कम हो। गई है, मुझे पुन: वही रूप धारण करना चाहिए, जो मैंने माता-सीता की खोज के समय धारण किया था।” बन्दर ने सोचा। इसलिए बन्दर ने और भी ऊँचा तथा विशाल रूप धारण कर लिया। शीघ्र ही वह पर्वत के समान विशाल बन गया। अब हैं –
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ललकार – बंदर की | Lalkaar – Bandar Ki : वह पुन: पुल पर कूदने लगा, परन्तु पुल अब भी नहीं टूटा। अर्जुन यह सब — देख रहे थे, वह सोचने लगे, “यह बालक काई साधारण बालक नहीं हैं। इसकी उपस्थिति से पुल एक बार भी नहीं टूटा। अवश्य ही यह स्वयं भगवान् कृष्ण है।” तभी बन्दर ने सोचा, “मेरी सारी शक्ति व्यर्थ हो रही है, मैं इस पुल को तोड़ नहीं पा रहा। अवश्य ही बालक स्वयं भगवान् राम हैं, जिनके सामने मेरी शक्ति कुछ भी नहीं है।”
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ललकार – बंदर की | Lalkaar – Bandar Ki : इसी सोच के साथ बन्दर, जो कि भगवान् हनुमान थे और अर्जुन, उस के चरणों में गिर पड़े। अब बालक भी अपने वास्तविक रूप में आ गया। वह स्वयं भगवान् विष्णु थे। वह बोले, “अर्जुन, दरअसल तुम नम्रता भूल चुके थे। तुम्हें अपनी क्षमता तथा कला पर इतना ज्यादा घमण्ड हो गया था कि तुम फूले नहीं समा रहे थे और रहे हनुमान तुम तो, तुम अपनी शक्ति को कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे थे। तुमने अपनी शक्ति का प्रयोग एक अनुचित कार्य करने में किया। इस अनुचित कार्य को करने के लिए दण्ड के रूप में तुम्हें अर्जुन के साथ हर समय रहना पड़ेगा।” इस प्रकार अर्जुन को हमेशा के लिए अपने रथ के ऊपर रथ चिन्ह के तौर पर हनुमान मिले।
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