मेरी बूढी माँ और उनकी बिल्ली | Weirdly Strange Story in Hindi
मेरी बूढी माँ और उनकी बिल्ली | Weirdly Strange Story in Hindi : मेरी मां का ये ख्याल था की मरने के बाद कब्र में दफन होना कैसा होता होगा इसी वजह से वो मरने के बाद जमीन में दफ़न होने से बहुत डरती थी। वह अंततः अपनी उम्र के हिसाब से बीमार हो ही गई थी और 80 साल की उम्र में उन्हें नर्सिंग होम में जाना पड़ा था, जहाँ वो कोमा में भर्ती हो गयी थी और पूरे एक हफ्ते बाद कोमा से बाहर आई थी, कोमा से बाहर आने के बावजूद उनकी बार बार हो रही खराब तबीयत की वजह से उन्हें हमे हॉस्पिटल में ही रखना पड़ रहा था. वो एक पशु प्रेमी थी और उस समय उन्होंने एक पालतू बिल्ली पाली हुई थी।
मेरी बूढी माँ और उनकी बिल्ली | Weirdly Strange Story in Hindi : जब माँ बीमार थी तो मेरी दो बहने भी घर आ गयी थी उनकी देखभाल करने के लिए. उनके आने के ठीक दो हफ्ते बाद माँ हमारे बीच में नहीं रही, घर में मातम सा छा गया था. भले ही आज के दिन हम भाई बहन सब अपने पाँव पर खड़े थे लेकिन फिर भी ऐसा लग रहा था मानो अब ज़िन्दगी खत्म हो चुकी हैं माँ के बिना. वो बुरा एह्सास मुझे ये महसूस करा रहा था जैसे की ये बुरा साया अब कभी नहीं जाएगा और सब ऐसा ही रहेगा अधुरा सा, माँ का प्यार और दुलार अब खो गया था माँ के साथ ही, कई सारे लोग घर आये थे जहाँ माँ काम किया करती थी वहां के लोग माँ को एक भली सच्ची औरत के भाव से जानते थे, सभी की आँखों में आंसू थे और शायद दिल में दर्द भी लेकिन जितना बुरा हम भाई बहन महसूस कर पा रहे थे वहां तक वो लोग पहुँच भी नहीं सकते हैं, सब थोड़े थोड़े समय में आकर सान्तवना देकर चले जा रहे थे,
मेरी बूढी माँ और उनकी बिल्ली | Weirdly Strange Story in Hindi : और उसके दो हफ्ते बाद ही मेरी बहनों ने भी अपने अपने घर जाने का फैसला किया. अब केवल एक मैं ही बचा था घर में अकेला, जब वो घर जा रही थी तो उन्होंने रास्ते में एक टूटता तारा देखा और उन्हें लगा जैसे ये माँ उनसे कह रही हैं की वो सही सलामत हैं जहाँ भी हैं क्यूंकि अक्सर माँ टूटते तारो की कहानियाँ मेरी बहनों को सुनाया करती थी जब मैं पैदा भी नहीं हुआ था, उनकी बात सुनकर मुझे ख़ुशी हुई लेकिन कही ना कही दुःख भी क्यूंकि मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा था या फिर अगर देख भी पाता तो उसे माँ का इशारा नहीं समझ पाता.
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मेरी बूढी माँ और उनकी बिल्ली | Weirdly Strange Story in Hindi : लेकिन फिर भी मुझे कुछ समय तक उनकी रूह एहसास हुआ की ये मेरी माँ का साइन हैं मेरे लिए मुझे ये दिखाने के लिए की वो जहा भी हैं सही से हैं क्यूंकि हमने उनका अंतिम संस्कार जमीन में दफना के नहीं बल्कि आग में जला कर किया था और उसकी राख मैंने एक छोटे से सफ़ेद और काली कडाही के मटके में डाल कर रख दी थी एक बंद कमरे में जहाँ मैं कभी कभी ही जाता था, वहां मुझे किसी अजीब सी चीज़ की आवाज़ सुने दी जब मैं वहां गया और राख आधी जमीन पर पड़ी थी जिसमे बिल्ली के पंजो के चलने के निशाँ थे, पहले तो दिमाग में आया की बिल्ली कही से आ गयी होगी और उसने मटका गिरा दिया होगा लकिन फिर याद आया की इस दरवाज़े के अलावा कही और जाने का रास्ता ही नहीं हैं. मैं भले ही वो टूटता तारा ना देख पाया हूँ लेकिन मेरी माँ जानती थी की मैं बिल्ली के पाँव के निशाँ नज़रंदाज़ नहीं करूंगा.