सप्तऋषियों की शरण में डाकू रत्नाकर : डाकू रत्नाकर वापस सप्तऋषियों के पास आया और अपने शस्त्र फेंककर उनके चरणों में गिर पड़ा। आंखों में अश्रु भरकर वह बोला, “हे ऋषिवर ! मुझे क्षमा करें। मेरे मन में संसार की इस मोह-माया और समस्त बंधनों के प्रति विरक्ति भाव उत्पन्न हुआ है। मेरा उद्धार करें।” | सप्तऋषियों में से एक ने कहा, “हे भद्र पुरुष! तू मन को एकाग्र करके श्रीराम नाम का उच्चारण कर। मां भगवती ने चाहा तो वे तेरा अवश्य कल्याण करेंगी।”
डाकू बोला, “हे ऋषिवर! मैंने तो अपने जीवन में लोगों को मारने और लूटने के सिवाय कुछ नहीं किया। मैं जाप कैसे कर पाऊंगा?”
| सप्तऋषि बोले, “हे वत्स! तू इसी स्थान पर मन को एकाग्र करके मां सरस्वती का आह्वान करके’मरा | मरा’ ही जप । तेरा कल्याण अवश्य होगा।”