सन्देश – गुरु नानक देव का | Sandesh – Guru Nanak Dev ka : गुरु नानक देव भाईचारे, शांति तथा एकता के प्रचार के लिए जगह – जगह घूमते थे। सत्तर वर्ष की उम्र तक उन्होंने लोगों को सच्चाई का मार्ग बताया। उनके अनेक शिष्य और भक्त थे, जिनमें हिन्दू, मुस्लिम तथा सभी जातियों के लोग थे। संसार को छोडते समय उन्होंने अपने शिष्य, भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्होंने लहना को गुरु अंगद का नाम दिया और उसे गले गलाकर उनकी शिक्षा की ज्योति को आगे बढ़ाने के लिए कहा। जब गुरु नानक ने संसार को छोड़ा, तो हिन्दू व मुस्लिम शिष्यों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर मतभेद हो गया। हिन्दू लोग उनका अन्तिम संस्कार अपनी रीतियों के अनुसार करना चाहते थे।
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सन्देश – गुरु नानक देव का | Sandesh – Guru Nanak Dev ka : दूसरी तरफ मुस्लिम उनके शरीर को दफनाना चाहते थे। इसी बहस में एक दिन निकल गया। दूसरे दिन, उनके भक्त और शिष्य उस स्थान पर पहुँचे जहाँ गुरु नानक देव का मृत शरीर रखा था। उन्होंने उनके शरीर के ऊपर रखे कपड़ों को जब हटाया, तो सभी लोग हैरान हो गये। उन्होंने देखा गुरुदेव का शरीर वहाँ पर नहीं था। पर उनके शरीर के स्थान पर केवल कुछ फूल अवश्य पड़े हुए थे।
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इस प्रकार उनके भक्तों ने अपने गुरु से अन्तिम संदेश प्राप्त किया कि सभी लोग एक समान हैं। ठीक गुरु नानक देव जी की ही तरह हिन्दू-मुस्लिम कुछ नहीं होता। इस शिक्षा को ग्रहण करने के पश्चात् गुरु नानक देव के पुष्प सभी भक्तों में समान रूप से वितरित कर दिये गये। और सबने उन फूलों को इज्जत व आदर के साथ स्वीकार किया।
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