सही समय की घडी | Sahi Samay Ki Ghadi
सही समय की घडी | Sahi Samay Ki Ghadi : किसी नगर में यज्ञदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहा करता था। उसकी पत्नी बहुत व्यभिचारिणी थी। उसने अपना एक प्रेमी बनाया हुआ था। प्रतिदिन वह ब्राह्मण से छिपाकर उसके लिए नए-नए पकवान तैयार करती और अपने प्रेमी को ले जाकर खिलाती थी। एक दिन ब्राह्मण ने उसे पकवान बनाते हुए देख लिया।
उसने अपनी पत्नी से पूछा-प्रिय ! प्रतिदिन तुम ऐसे नए-नए पकवान बनाकर कहां ले जाया करती ही ?? इस पर उसकी चालाक पली ने उत्तर दिया-‘‘मैंने देवी का व्रत रखा हुआ है। यहां से कुछ दूर एक देवी का मंदिर है। मैं यह पकवान बनाकर देवी मां के मंदिर जाती हूं और उन्हें भोग लगाने के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करती हूं।’ पकवान बन जाने पर वह अपने पति के सामने ही उनको लेकर मंदिर के लिए चल पड़ी। मंदिर पहुंचकर उसने पकवान की थाली देवी की मूर्ति के सम्मुख रखी और स्वयं पास की एक नदी में स्नान करने चली गई।
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सही समय की घडी | Sahi Samay Ki Ghadi : तब तक उसका पति भी किसी अन्य मार्ग से आकर वहां पहुंच गया और देवी की प्रतिमा के पीछे जाकर छिप गया | कुछ देर उपरांत उसकी पली लौट आई। उसने देवी की पूजा-अर्चना की और फिर प्रार्थना करती हुई बोली-‘हे मां भगवती ! कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे मेरा पति अंधा हो जाए।’ पीछे छिपा उसका पति स्वर बदलकर बोला-‘यदि तुम नित्य प्रति घेवर बनाकर अपने पति को खिलाया करो तो वह शीघ्र ही अंधा हो जाएगा।’ यह सुनकर उस दिन से उसने नित्यप्रति घेवर बनाकर अपने पति को खिलाना आरंभ कर दिया। कुछ दिन बाद उसके पति ने उससे कहा-‘प्रिये ! कुछ समझ में नहीं आता। न जाने क्यों अब मेरी आंखों की ज्योति मंद पड़ने लगी है। मुझे अब उतना साफ दिखाई नहीं देता जितना पहले दिखाई देता था|
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सही समय की घडी | Sahi Samay Ki Ghadi : यह सुनकर उसकी व्यभिचारिणी पत्नी मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुई। दो-चार दिन बाद ब्राह्मण ने फिर अपनी पत्नी से कहा कि अब तो वह निपट अंधा हो चुका है। उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता। इस पर उस कुलटा ने यही सोचा ‘अवश्य देवी मां ने मेरी प्रार्थना स्वीकार कर ली है। अब यह तो देख पाएगा नहीं, क्यों न अब से अपने प्रेमी तो यहीं बुला लिया करूं।’ यह सोचकर वह अपने प्रेमी को अपने घर में ही प्रेमालाप करने के लिए बुलाने लगी। एक दिन अवसर पाकर उस ब्राह्मण ने उसके प्रेमी को पकड़ लिया और उसको इतना पीटा कि वह वहीं मर गया। उसने अपनी कुलटा पली के भी नाक-कान काट डाले और उसे बड़ी निर्दयतापूर्वक घर से बाहर निकाल दिया। यह कथा सुनाकर मंदविष उस नवागंतुक सर्प से बोला-‘इसी प्रकार मैं भी उचित असवर की प्रतीक्षा में हूं मित्र।’ नवागंतुक सर्प उसके उत्तर से संतुष्ट होकर वहां से चला गया। इस प्रकार मंदविष नित्य मेढकों को अपनी पीठ पर चढ़ाकर उन्हें घुमाने ले जाता रहा और उनका भक्षण करता रहा।
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सही समय की घडी | Sahi Samay Ki Ghadi : एक-एक करके वह सभी मेढकों को खा गया। उस सरोवर में एक भी मेढ़क शेष न रहा। यह कथा सुनाकर स्थिरजीवी ने मेघवर्ण से कहा-‘महाराज ! जिस प्रकार मंदविष नामक उस सर्प ने उन मेढकों का विनाश किया था, उसी प्रकार मैंने भी बुद्धि से ही आपके शत्रुओं का समूल नाश किया है। ‘शत्रु को नष्ट करने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करना आवश्यक होता है स्वामी। अत्यंत उग्र होते हुए भी दावानल वन को जलाते समय वृक्षों के मूल को नहीं जला पाता। किंतु मृदु एवं शीतल पवन उनको समूल नष्ट कर देती है। बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो अपने शत्रु को समूल नष्ट कर देता है। क्योंकि कहा भी गया है कि जो व्यक्ति ऋण, अग्नि, शत्रु तथा व्याधि (रोग) को शेष नहीं छोड़ता, वह कभी भी दुखी नहीं होता।
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सही समय की घडी | Sahi Samay Ki Ghadi : शत्रुओं को जीतने के बाद आज हमारे सारे काक समाज को सुख की नींद आएगी। अब आप सुखपूर्वक राज्य कीजिए किंतु यह ध्यान में रखिए कि राज करते समय किसी प्रकार का मद नहीं होना चाहिए। इस संसार में स्थायी कुछ भी नहीं है। इतने बड़े-बड़े राजा-महाराजा इस धरती पर पैदा हुए, किंतु आज कहीं उनमें से किसी का भी नामो-निशान तक दिखाई नहीं पड़ता। ” मेघवर्ण बोला-‘तात ! आपका कथन सत्य है। आप जैसे धीरपुरुष के बल पर ही यह राज्य अब तक स्थिर है। चंचल राजलक्ष्मी को पाकर जो राजा अहंकार छोड़कर कर्तव्यनिष्ठ भाव से राज्य का उपभोग करता है, वही सुखी होता है।’ उसके पश्चात स्थिरजीवी की सहायता से मेघवर्ण ने बहुत वर्षों तक सुखपूर्वक राज्य किया लेकिन अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूला.
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