रहस्य को रहस्य रहने दो | Rehsy Ko Rehsy Rehne Do
रहस्य को रहस्य रहने दो | Rehsy Ko Rehsy Rehne Do : राजा के एक ही बेटा था। राजा के उस बेटे के पेट में सर्प ने अपना बसेरा बना लिया था। सर्प के विष के प्रभाव से राजकुमार दिनोंदिन सूखता ही जा रहा था। राजवैद्यों की कोई भी दवा उस पर काम नहीं कर रही थी। राजवैद्यों के अलावा राजा ने अनेक तांत्रिकों से भी उसका उपचार कराया, किंतु हालत में तनिक भी सुधार न हुआ। राजकुमार सूखकर हड़ियों का ढ़ाचा बन गया। अपनी इस हालत से तंग आकर राजकुमार ने घर छोड़ने का निश्चय कर लिया।
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एक दिन वह चुपके से महल से निकला, और दूर किसी अन्य देश में रहने के लिए चल दिया। किसी प्रकार गिरता – पड़ता वह एक अन्य देश में पहुंच गया। वहां उसने एक मंदिर देखा और निर्णय किया कि इसी मंदिर में रहकर जीवन के शेष दिन काट दूंगा। यहां भगवान के दर्शन करने जितने भक्त आया करेंगे, उनसे भिक्षा मांगकर अपना पेट भर लूगा। तब से वह राजकुमार उसी मंदिर में रहने लगा और साधारण भिखारियों की तरह रहता हुआ अपनी आयु के दिन पूरे करने लगा।
उस राज्य के राजा की दो पुत्रियां थीं, जो प्रतिदिन सुबह अपने पिता को प्रणाम करने के लिए राजदरबार में आती थीं। उनमें से बड़ी पुत्री राजा को प्रणाम करके कहती – ‘महाराज की जय हो! आपकी कृपा से हमें संसार के सर्वसुख उपलब्ध हैं।’
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रहस्य को रहस्य रहने दो | Rehsy Ko Rehsy Rehne Do : छोटी पुत्री कहती – ‘महाराज! ईश्वर आपके कर्मों का फल आपको दे।’ राजा इसी कारण से अपनी छोटी बेटी से नाराज रहता था। एक दिन जब नित्य की भांति दोनों बेटियां उसे प्रणाम करने आई, तो वह छोटी बेटी पर गुस्से से बरस पड़ा। । उसने अपने मंत्री को बुलाया और उसे आदेश दिया -‘ले जाओ इस कटुभाषिणी को और इसका विवाह किसी दीन – हीन व्यक्ति के साथ कर दो, ताकि इसे अपनी बदजुबानी की सजा मिले।’
राजा के आदेशानुसार मंत्री किसी दीन – हीन आदमी की खोज में निकल पड़ा। वह उसी मंदिर में पहुंचा, जहां शोक – संतप्त राजकुमार अपने जीवन के शेष दिन भिक्षा मांगकर गुजार रहा था। मंत्री ने राजकुमारी का विवाह उसी के साथ कर दिया।
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राजकुमारी अपने पति को परमेश्वर का स्वरूप मानकर उसकी हर प्रकार से सेवा करने लगी। उसने नगर से बाहर एक छोटी-सी कुटिया बना ली। दोनों पति – पत्नी उसी कुटिया में रहने लगे। एक दिन राजकुमारी अपने पति को खिला – पिलाकर नगर में कुछ सामान खरीदने गई। लौटी तो उसने देखा कि उसका पति एक शिलाखंड से सिर टिकाए सोया पड़ा है। राजकुमार के मुंह से एक सर्प आधा बाहर निकलकर वायुसेवन कर रहा था। उसके समीप ही एक झाड़ी से निकलकर दूसरा विषधर भी अपना फन फैलाए खड़ा था।
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रहस्य को रहस्य रहने दो | Rehsy Ko Rehsy Rehne Do : यह दृश्य देखकर राजकुमारी भयभीत हो गई। वह एक वृक्ष की आड़ में छुप गई और कान खड़े कर उन दोनों सपों की बातें सुनने लगी। झाड़ी में रहने वाला सर्प राजकुमार के पेट में निवास करने वाले सर्प से क्रोधित स्वर में कह रहा था – ‘अरे दुष्ट! तू इतने सर्वाग सुंदर राजकुमार का जीवन क्यों नष्ट कर रहा है। इसने तेरा क्या बिगाड़ा है जो तू इस तरह से इसको मारने पर उतारू हो रहा है? तू इसे छोड़कर कहीं दूसरी जगह क्यों नहीं चला जाता?”
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यह सुनकर पेट में रहने वाला सर्प भी क्रोध से भर उठा। बोला – ‘मुझे उपदेश करने वाले कालिया, तू ही कौन – सा दूध का धुला है। वर्षों से इस झाड़ी के नीचे भूमि में दबे दो स्वर्ण – कलशों पर, जिनमें हीरे, जवाहरात, सोना, रत्न जैसा न जाने कितना कीमती खजाना भरा हुआ है, उन पर तू कुंडली मारे बैठा रहता है। तू आने – जाने वालों को आतंकित करता रहता है और यहां के वातावरण को दूषित कर रहा है।’ इस प्रकार दोनों सर्प परस्पर एक – दूसरे के रहस्य खोलने लगे।
कुछ देर बाद झाड़ी में रहने वाले सर्प ने कहा – ‘अरे पापी! राजकुमार का जीवन नष्ट करने वाले कृतघ्न, क्या तुम्हारी यह औषधि कोई नहीं जानता कि पुरानी कांजी और काली सरसों को पीसकर गर्म जल के साथ यदि इस राजकुमार को पिला दी जाए, तो कुछ ही देर में तुम मर जाओगे?’
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रहस्य को रहस्य रहने दो | Rehsy Ko Rehsy Rehne Do : इस पर पेट में रहने वाले सर्प ने उत्तर दिया – “तुम्हारी भी इस औषधि को क्या कोई नहीं जानता कि गर्म जल या गर्म तेल तुम्हारी बांबी में डालने से तुम मर सकते हो?’
राजकुमारी ने दोनों सर्षों का वार्तालाप सुना। उसने तत्काल दोनों सपों को मारने की योजना बना डाली। झाड़ी में रहने वाले सर्प को मारने के लिए उसने एक पात्र में जल को खूब गर्म किया और उस खौलते हुए जल को सर्प की बांबी में डाल दिया। फिर उसने काली सरसों और कांजी का पेय बनाया और अपने पति को पिला दिया। इस प्रकार सर्पो के द्वारा ही बताए उपाय से उसने दोनों सपों का खात्मा कर दिया। फिर उसने सर्प की बांबी खोदकर दोनों स्वर्ण कलश निकाल लिए। विष का प्रभाव खत्म हो गया तो उसका पति भी कुछ दिनों बाद रोगमुक्त हो गया। धनी होकर राजकुमारी जब अपने पति के साथ अपने पिता के महल में पहुंची, तो उसके माता – पिता ने दोनों का खूब स्वागत – सत्कार किया। उनके दिन आनंदपूर्वक बीतने लगे। पूर्व संचित कर्मों का फल पाकर दोनों सुखी और समृद्ध हो गए।
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