Rani ki Jeet रानी की जीत
Rani ki Jeet रानी की जीत : एक दिन बादशाह अकबर अपने हरम में अपनी पत्नी के साथ विश्राम कर रहे थे। कुछ इधर-उधर की बातें चल रही थीं। बात चलते-चलते बीरबल के ऊपर टिक गई। बादशाह बोले “मैं हैरान हूँ कि बीरबल का दिमाग किस चीज का बना है। व्यंग्यपूर्ण उत्तर देता है। हमें उस पर बड़ा गर्व है। वह हमारे दरबार की शान है और अब तो मेरे दिलो-दिमाग पर वह इतनी बुरी तरह से छा गया है कि उसके बगैर दरबार बड़ा सूना-सूना सा लगता है। वह वास्तव में दरबार के नवरत्नों के लिए उपयुक्त है। यहाँ तक कि वह तो हमारे दरबार में सर्वोत्तम रत्न है।” यह सुनकर रानी हँस पड़ी। रानी बीरबल से ईष्या करती थी, इसलिए बादशाह द्वारा इतने स्पष्ट शब्दों में की गई बीरबल की प्रशंसा उससे सहन न हो सकी। उसी ईष्र्यावश वह हँस पड़ी थी। “तुम इस तरह क्यों हँस रही हो, बेगम?” बादशाह ने पूछा। “मैं चाहूं तो बीरबल को बुद्धिमानी में हरा सकती हूँ।” उसने दावा किया। “यदि ऐसा है, तो मैं बीरबल को यहाँ बुलाता हूँ। तुम्हें यह साबित करना होगा।” बादशाह ने कहा और रानी ने भी इसे मान लिया।
शीघ्र ही बीरबल को बादशाह अकबर के समक्ष हरम में बुलाया गया। उसके आने पर रानी ने अपनी एक सेविका को बीरबल के लिए शरबत, फल और मिठाई लाने को कहा। सेविका के जाने के एक-दो मिनट बाद रुककर रानी बोली ” अब शरबत बन चुका है। और उसे चाँदी के कप में डाल दिया गया है। फल बर्तन में सजा दिए गए हैं और मिठाईयाँ चाँदी की प्लेट में रख दी गई हैं। और अब, एक.दो.तीन. चार. पाँच.छ:. . सात. आठ.नो. दस और बीरबल, यह है तुम्हारे लिए जल-पान।” जैसे ही रानी ने अपना वाक्य पूरा किया, वैसे ही सेविका ने जल-पान के साथ कक्ष में प्रवेश किया। फिर रानी, बीरबल की तरफ देखते हुए बोली”तुमने देखा, बीरबल! किस प्रकार मैंने शुरू से अंत तक एक-एक मिनट का हिसाब रखा। अब मुझे बताओ कि महाराज और मैं कल कब तुम्हारे भवन पर भोजन के लिए आयें?” “आपका स्वागत् है, महारानी जी! आप कल ही आ जाएँ। इससे बढ़कर हमारा सौभाग्य और क्या हो सकता है?” बीरबल ने कहा और हरम सं चला गया। तब बादशाह ने रानी से पूछा, “तुम तो यह साबित करना चाहती थीं कि तुम बीरबल को हरा दोगी, परंतु तुमने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया। ” ‘महाराज, वास्तविक परीक्षा तो कल भोजन को समय होगी।” रानी ने कहा। अगले दिन बादशाह अकबर और रानी निश्चित समय पर बीरबल को भवन पर पहुँच गए।
उनका भव्य स्वागत हुआ। शीघ्र ही वे भोजन के लिए बैठ गए। रानी ने कहा ” बीरबल, मुझे यकीन है कि तुमने हमारे लिए उत्तम भोजन की व्यवस्था की होगी। अब तुम मुझे गिनकर समय बताओ कि पकवान कब यहाँ पहुँचेगा जैसा कल मैंने किया था।” बीरबल धीरे-से मुस्कुराया और नम्रता से बोला, “महारानी, मेरी इतनी गुस्ताखी कि मैं आपके सामने बोल्यूँ? मेरा निवेदन है कि आप गिनना शुरू करें और जिस क्षण आप गिनना बंद करेंगी, भोजन आपके सामने आ जाएगा।” रानी मान गई। उसने गिनना शुरू किया “एक. दो.नो. दस. जैसे ही रानी दस पर रुकी, बीरबल के पाँच सेवकों ने हाथों में पकवानों के थाल लिये हुए कक्ष में प्रवेश किया।
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इस पर बादशाह ने पूछा, “बेगम, अब तुम क्या कहती हो?” रानी ने जवाब दिया, “मैं समझती हूँ कि बीरबल ही अधिक बुद्धिमान है, क्योंकि उसने पहले से ही मेरी चुनौती का अनुमान लगा लिया था।” “ओह, हाँ पर इसका अर्थ यह हुआ कि उसको चुनौती देकर तुम शर्त हार गई हो।” “हाँ, मैं मानती हूँ कि बीरबल बहुत चालाक है।” अपनी हार स्वीकार करते हुए रानी ने कहा। परंतु बीरबल ने कहा “महाराज, वास्तव में जीत महारानी की ही हुई है, क्योंकि उन्होंने तभी और सेवक भोजन लेकर कक्ष में आ गए।” “तुम वास्तव में दुनियाँ में अद्वितीय हो! तुमने जीत जाने पर भी मुझे जिता दिया।” और इस पर बादशाह अकबर जोर-जोर से हँसने लगे।
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