राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand
राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : किसी नगर में एक बढ़ई और एक जुलाहा रहते थे, जो परस्पर घनिष्ट मित्र थे. उनकी मित्रता बाल्यकाल से चली आ रही थी. एक बार नगर के एक मंदिर में देव-दर्शन के लिए मिला लगा. उस मेले में देश-देशांतर से दर्शनार्थी आए, और उनके साथ जीविका के लिए धन कमाने के लिए नट, नर्तक, गायक आदि भी आए. जुलाहा और बढ़ई मेले में भ्रमण कर रहे थे कि उन्होंने एक हथिनी पर सवार सर्वागसुनदरी राजकन्या को देखा. राजकन्या का रूप देखकर जुलाहा मंत्र-मुग्ध-सा हो गया। वह उसकी ओर एकटक निहारता रहा और कामाग्नि से पीड़ित हो मूच्छित होकर भूमि पर गिर पड़ा। उसका मित्र यह देखकर बहुत दुखी हुआ। वह किसी प्रकार उसको वहां से उठाकर अपने घर ले आया | घर लाकर उसने उसका उपचार करवाया, जिसके कारण वह किसी प्रकार स्वस्थ हो गया। तब बढ़ई ने उससे पूछ-तुम्हें सहसा क्या हो गया था मित्र, जो तुम मूर्चिठत हो गए थे?’
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : बढ़ई के प्रश्न के उत्तर में जुलाहे ने अपनी मनोव्यथा बता दी। किंतु साथ ही उसने यह भी बता दिया कि क्योंकि राजकन्या उसकी पहुंच से बाहर है और वह उसके बिना जीवित नहीं रह सकता, अत: शीघ्र ही उसकी अन्तिम क्रिया का उपाय भी करना होगा | यह सुनकर बढ़ई ने उसे आश्वस्त किया और कहा-मित्र ! तुम चिन्ता मत करो। मैं आज रात्रि को ही उसके साथ तुम्हारा संगम करा सकता हूं।’ बढ़ई ने उसी समय काठ का एक गरुड़ तैयार किया और मंत्र द्वारा उसके संचालन की व्यवस्था भी कर दी। फिर उसने जुलाहे को विष्णु की भांति सजाया और बोला-मित्र ! रात्रि के समय इस गरुड़ पर बैठकर, विष्णु का वेश धारण कर तुम राजकन्या के शयन-कक्ष में पहुंच जाना। वहां पहुंचकर वाक्चातुर्य से राजकन्या को प्रभावित कर अपना अभीष्ट सिद्ध कर लेना|” जुलाहे ने वैसा ही किया। राजकन्या के शयनकक्ष में पहुंचकर जब उसने कहा कि वह साक्षात विष्णु है और अपनी पत्नी लक्ष्मी को क्षीरसागर में छोड़कर उसके साथ रमण करने के लिए आया है तो राजकन्या ने कहा-‘पर मैं तो एक मानुषी हूं देव ! मैं भगवान के साथ कैसे रमण कर सकती हूं?’
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : बात बिगड़ती देखकर जुलाहे ने कहा-‘रूपवती ! तुम नहीं जानती कि तुम राधा नाम की मेरी उस समय की प्रेमिका हो जब मैंने कृष्ण का अवतार लिया था। अब तुमने इस राजकुल में जन्म लिया है तो मैं तुमको प्राप्त करने के लिए यहीं चला आया हूं।’ राजकन्या का संशय दूर हो गया। उसने कहा-‘भगवन ! यदि यह सत्य है तो मुझे बड़ी प्रसन्नता है। फिर भी, आप मेरे पिता से निवेदन कीजिए, उनको भी बड़ी प्रसन्नता होगी और वे सहर्ष मेरा हाथ आपके हाथ में दे देंगे। ” विष्णुरूपी जुलाहा बोला-‘राजकन्या ! मैं साधारण मनुष्य की दृष्टि में नहीं आ सकता। तुम मेरे साथ गंधर्व विवाह करो और मेरे साथ रमण करो। अन्यथा मैं तुम्हारे समस्त राजकुल को अपने शाप से भस्म कर दूंगा।’ इतना कहकर जुलाहा गरुड़ से उतरा और उसका हाथ पकड़कर उसे पलंग पर ले गया। इस प्रकार रात्रि-भर जुलाहा वहां रहा और सुबह दूसरों की दृष्टि में आने से पहले ही अपने घर को लौट गया | उस दिन से वह नित्यप्रति उस राजकन्या के साथ आनंद का समय व्यतीत करता रहा
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : राजकन्या के व्यवहार में इससे परिवर्तन आने लगा। राजभवन के अंत:पुरस्थ कर्मचारियों को इससे कुछ संदेह होने लगा। कुछ और समय बीत जाने पर जब उनको अपने संदेह की पुष्टि होती दिखाई दी तो उन्होंने महाराज को जाकर इस विषय में बताया-‘महाराज ! यद्यपि हम लोगों को किसी प्रकार भी पता नहीं लग पाता, तथापि इतना निश्चित है कि रात्रि के समय राजकुमारी के कक्ष में कोई पुरुष अवश्य प्रवेश करता है।’ यह सुनकर राजा को चिंता होने लगी। उसने रानी को इस विषय में बताया तो उसको भी चिंता होने लगी। वह तुरंत राजकुमारी के पास गई और जब देखा कि पुत्री की मुखाकृति महाराज के कथन की पुष्टि करती है तो वह क्रोधित होकर अपनी पुत्री से कहने लगी-‘अरी कुलक्षिणी ! तुमने यह क्या करना आरंभ कर दिया है ? कौन है वह, किसकी मौत आई है, जो रात के अंधकार में तेरे कक्ष में प्रवेश करता है ? क्रोधित माता को लज्जित मुख से राजकन्या ने बताया कि रात को साक्षात विष्णु भगवान उसके शयनकक्ष में आते हैं। यदि उसको विश्वास न हो तो वह खिड़की से रात्रि के समय उनको देख सकती है।
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : किंतु उसे भगवान के सम्मुख प्रकट नहीं होना होगा, अन्यथा वे कुद्ध होकर शाप दे देंगे और स्वयं अंतर्धान हो जाएंगे। रानी को अपनी कन्या की बात पर विश्वास हो गया और वह संतुष्ट होकर राजा के पास लौट गई। राजा ने जब यह सुना तो उसको वह एक दिन बिताना सौ वर्ष के समान लगने लगा। रात्रि में साक्षात विष्णु भगवान के दर्शन की उत्सुकता में राजा-रानी बहुत बेचैन हो गए। जैसे-तैसे करके रात आई तो भोजन आदि से निवृत होकर राजा-रानी अपनी बेटी के शयन-कक्ष की खिड़की के निकट आकर बैठ गए। अर्द्ध-रात्रि के पूर्व ही उन्होंने देखा कि आकाश से गरुड़ पर सवार भगवान विष्णु उनकी बेटी के शयनकक्ष के द्वार पर उतर रहे हैं | यह देखकर उनकी प्रसन्नता का पारावार न रहा|
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : राजा सोचने लगा कि जिसकी कन्या के साथ साक्षात भगवान ने गंधर्व विवाह कर लिया हो उससे बढ़कर इस कलिकाल में और कौन भाग्यशाली हो सकता है। इतना विचार करते ही राजा की घमंड होने लगा और उसने निरंकुश रूप से शासन चलाना आरंभ कर दिया। सीमावर्ती राजाओं ने जब देखा कि राजा की मनमानी बढ़ती जा रही है और समय-समय पर सचेत करने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है तो उन्होंने मिलकर उस पर आक्रमण कर दिया। शत्रुओं द्वारा आक्रमण की बात जब राजा ने सुनी तो उसे कोई विशेष चिंता न हुई। उसने रानी से कहा-‘अपनी पुत्री को कहो कि भगवान विष्णु से कहे कि इस युद्ध में हमारी सहायता करें।’ रानी अपनी पुत्री के पास पहुंची और उससे कहा-‘बेटी ! तुम्हारी जैसी कन्या और भगवान नारायण जैसे जामाता के होते हुए हम पर पड़ोसी राज्यों के राजा
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : आक्रमण कर रहे हैं। तुम आज रात को भगवान से इस विषय में बात करना और कहना कि वे तुरंत अपनी शक्ति से हमारे शत्रुओं का विनाश कर दें।’ उस रात्रि को जब विष्णु रूपी जुलाहा आया तो राजकुमारी ने उसको उसी प्रकार कह दिया जैसा उसकी माता ने समझाया था | तब विष्णु रूपधारी वह जुलाहा कहने लगा-‘सुनो ! तुम निश्चिंत रहो। तुम्हारे पिता के शत्रुओं की संख्या चाहे कितनी ही क्यों न हो, मैं जिस दिन चाहूंगा, अपने सुदर्शन चक्र से उन सबका शिरच्छेद कर दूंगा।’ उसका परिणाम यह हुआ कि कुछ ही दिनों में शत्रु राजाओं ने न केवल सारे राज्य पर ही अधिकार कर लिया, अपितु वे उसके दुर्ग तक चले आए। तब भी राजा आश्वस्त रहा कि भगवान विष्णु उसकी रक्षा करेंगे और शत्रुओं का सर्वनाश कर उनका भी राज्य उसको दिलवा देंगे। जब राजा ने देखा कि अब तो दुर्ग का द्वार टूटने ही वाला है तो उसने पुनः रानी के माध्यम से अपनी पुत्री को कहलवाया।
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : जुलाहे ने जब यह सुना तो कि दुर्ग भी ढहने वाला है तो उसको भी चिंता होने लगी कि यदि दुर्ग ही न रहा तो राजकुमारी कहां मिलेगी ! अतः उसने निश्चय किया कि वह युद्ध के समय आकाश में अपने गरूड़ पर सवार होकर शत्रु सेना के सम्मुख उपस्थित होगा। संभव है उसको विष्णु जानकर वे प्रभावित होकर पलायन करें और इधर राजा की सेना उत्साहित होकर शत्रु का पीछा कर उनकी सीमा पार खदेड़ दे। कहा भी गया है कि विषरहित सर्षों को भी अपने फनों को फैलाते रहना चाहिए। विष हो या न हो, किंतु फनों की भीषणता तो भयावह होती ही है। यदि दैवयोग से दुर्ग की रक्षा करते समय मेरी मृत्यु हो गई तो भी अच्छा ही होगा, क्योंकि कहा गया है कि गौ, ब्राह्मण, स्वामी, स्त्री तथा दुर्ग की रक्षा करने में जो व्यक्ति अपने प्राणों का परित्याग करता है, वह स्वर्गलोग का अधिकारी होता है।
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : ऐसा निश्चय कर जुलाहे ने राजकन्या से कहा-‘सुभगे ! शत्रुओं को सम्पूर्ण रूप से नष्ट करने के बाद ही अब मैं अन्न-जल ग्रहण करूंगा। तुम जाकर अपने पिता से कह दो कि वे प्रात:काल होते ही अपनी विशाल सेना के साथ शत्रु से जाकर युद्ध करें। मैं आकाश में रहकर उनके समस्त शत्रुओं को निस्तेज कर दूंगा।’ जुलाहे के ऐसे वचन सुनकर राजपुत्री ने जाकर सारा वृतांत अपने पिता को सुना दिया। पुत्री की बात सुन राजा बहुत प्रभावित हुआ और प्रात: होते ही अपनी विशाल सेना को लेकर शत्रुओं से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा। उधर जुलाहा भी अपने मरने का निश्चय करके अपना चक्र लेकर गरुड़ पर चढ़कर आकाश मार्ग से युद्ध करने के लिए चल दिया। त्रिकालदर्शी भगवान से यह सब कब तक छिपा रहता ? उन्होंने अपने वाहन गरुड़ से कहा-“पक्षीराज ! क्या तुम्हें मालूम है कि जुलाहा हमारा रूप धारण कर किस प्रकार राजकन्य को ठग रहा हैं.
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : ‘जानता हूं प्रभु। पर, क्या किया जा सकता है ?’ ‘जुलाहा मरने के लिए प्रतिबद्ध होकर आज युद्धभूमि में गया है। यह तो निश्चित है कि शत्रुओं के बाणों द्वारा आज उसका प्राणांत हो जाएगा। तब सारी प्रजा यही कहेगी कि क्षत्रिय सेना के बाणों से गरुड़ और भगवान दोनों ही पराजित हो गए हैं। इस अपवाद के प्रसारित होते ही लोग हमारी पूजा करना बंद कर देंगे। अत: उचित यही रहेगा कि हम दोनों जुलाहे और उसके गरुड़ के शरीर में प्रविष्ट होकर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए राजा के शत्रुओं का विनाश करें। और वही हुआ। राजा के शत्रुओं को पराजय का मुंह देखना पड़ा। उधर, जुलाहे ने जब यह देखा कि राजा की विजय हो गई है तो वह आकाश मार्ग से नीचे उतरकर राजा के पास आया । जुलाहे ने आरंभ से लेकर अंत तक का सारा वृतान्त राजा की यथावत् सुना दिया। जुलाहे का साहस देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सभी प्रजाजनों के सामने राजकन्या का विवाह उस जुलाहे के साथ कर दिया।
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राजकुमारी से प्रेम प्रचंड | Rajkumari Se Prem Prachand : पुरस्कारस्वरूप कई ग्राम भी राजा ने उसे दे दिए। तबसे वह जुलाहा उस राजकन्या के साथ जीवन का आनंद लेकर सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगा। यह कथा सुनाने के बाद दमनक ने कहा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि षड्यंत्र भी सोच-समझकर किया जाए तो उसका रहस्य ब्रह्मा को भी ज्ञात नहीं होता है।’ दमनक की बात सुनकर करटक ने कहा-मित्र ! यद्यपि तुम्हारा कहना ठीक है, फिर भी मैं विश्वस्त नहीं हूं क्योंकि संजीवक अत्यंत बुद्धिमान है और सिंह का स्वभाव अत्यंत क्रोधी है। यद्यपि तुम भी प्रतिभासम्पन्न हो, फिर भी पिंगलक के पास से संजीवक को हटाने में तुम समर्थ हो सकोगे, इसमें मुझे संदेह है। दमनक ने कहा-मित्र ! असमर्थ होते हुए भी तुम मुझे समर्थ समझो। कहा भी गया है कि उपाय के द्वारा जिस कार्य को किया जा सकता है, उसे पराक्रम से नहीं किया जा सकता। एक मादा काग ने सोने के कठहार के आधार पर एक विषधर काले नाग को भी मरवा डाला था | ‘वह किस प्रकार ?’ ‘सुनाता हूं, सुनो।’
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