प्रकृति दिवस पर कुछ ख़ास | Prakriti Diwas Par Kuch Khas

प्रकृति दिवस पर कुछ ख़ास | Prakriti Diwas Par Kuch Khas : गहने, जेवर, मुख दर्पण सभी स्वार्थी अंधे हुवे जा रहे हैं, खुदा जाने हम कहाँ जा रहे. आज हम सिर्फ भौतिक, आर्थिक, अभियांत्रिक विकास के पीछे भाग रहे हैं इसीलिए पर्यावरण को बचाने के लिए आन्दोलन करने पड़ रहे हैं. पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ, पानी बचाओ, जीवन बचाओ, प्लास्टिक का उपयोग मत करो ये नारे सुनने आम हैं. नदियाँ सूखने लगी, धरती फटने लगी, अधिक वृक्ष लगाये जाते हैं ये सत्य हैं पर क्या वे जीवित रह पाते हैं? उनका संरक्षण हो पाता हैं? हमारा कर्तव्य समझने के लिए हमे ऋषियों के विचार अपनाने पड़ेंगे. हर एक प्यारी हैं हरियाली, अब सुनो मेरी बात निराली.

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प्रकृति दिवस पर कुछ ख़ास | Prakriti Diwas Par Kuch Khas : कोई भोग की दृष्टि से तो कोई सौन्दर्य की दृष्टि से पेड़ लगाने की बात करता हैं अगर यही सोच रही तो क्या हम स्वार्थी नहीं कहलाएंगे? अरे प्रेम से सृष्टि को तोल ऐ मुर्ख अब तो अपनी आँखे तू खोल. ऋषियों की दृष्टि से अब उनके विचार उच्च ओर दैवीय थे, समुद्र किनारे से नाले में मीठा पानी कैसे पहुँचता हैं? लोग कहते हैं केशाकरण से लेकिन ऋषियों ने कहा केश्वाकराषण से. हमारा कर्तव्य हैं की हम भोग की दृष्टि से नहीं बल्कि उपासना की दृष्टि से पेड़ का संवर्धन ओर संरक्षण करे.

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प्रकृति दिवस पर कुछ ख़ास | Prakriti Diwas Par Kuch Khas : गीता में कहा गया हैं अश्वधा सर्व वृक्षानाम” अर्थात जब हम हर पेड़ में ईश्वर देखेंगे तभी तो ये पेड़ काटने बंद होंगे, हमारी वैदिक प्रार्थना में मांग हैं “निकामी निकामी नापर्जनोसचते” क्षास्त्रकारो ने जल को देव माना हैं. आज के पढ़े लिखे लोग कहते हैं जल में कहाँ से देव आ गए, जल क्या हैं हाइड्रोजन ओर ऑक्सीजन का. अगर ये बात हैं तो हाइड्रोजन अग्नि के साथ जलता हैं ओर ऑक्सीजन को बढ़ावा देता हैं तो पानी डालने से आग बुझ क्यूँ जाती हैं? क्यूंकि पानी में देव यानी चेतन्य हैं.

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प्रकृति दिवस पर कुछ ख़ास | Prakriti Diwas Par Kuch Khas : किसी भी पानी से स्नान करने के बाद हमे चेतन्य आता हैं यही सोच कर हम पानी का दुर्व्यह नहीं करेंगे ओर हम नदियों को भी दूषित नहीं करेंगे. धरती माँ के कितने उपकार हैं हम पर, हमे जो चाहिए तेल, पानी, खनिज को उनमे खून की तरह खीच लेते हैं लेकिन देते क्या हैं बदले में? शरीर का मैल, केश, नाख़ून अथवा वह सबकुछ जो हमे नहीं चाहिए बदले में हम कृतज्ञता से समुद्र को देवी कहकर हाथ भी नहीं जोड़ते. हमारे शास्त्रों में कहा गया हैं “कृतज्ञ नास्ति निस्ग्राके” अकृतज्ञता के लिए कोई प्रायश्चित नहीं हैं.

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प्रकृति दिवस पर कुछ ख़ास | Prakriti Diwas Par Kuch Khas : एक अकृतज्ञ व्यक्ति खुद के लिए और समाज के लिए सिर्फ एक बोझ होता हैं इसीलिए कृतज्ञ बनना सीखो. हमारे ऋषियों की भावना थी वासुदेव कुतुम्बकुम! हमारा कर्तव्य हैं की हम लोगो को सुसंगत बनाए ओर हमारे जीवन में नैतिक मूल्यों का संग्रांत करे और तभी हम इस पर्यावरण को बचा पाएंगे और तभी हमे इस पर्यावरण की जल से, जीव – जंतु से, प्राणी से, पेड़ो से, आदर बढेगा. सारा जहाँ स्नेह से हम दृष्टि सजाए, क्यूँ ना हम स्नेह से ये सृष्टि बचाए.

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