स्वदेश वापसी : 11 जून, 1891 को बार-एट-लॉ की डिग्री लेकर गांधी जी स्वदेश लौट आए। इन तीन वर्षों के प्रवास में गांधी जी ने
बैरिस्टर मोहनदास गांधी : बैरिस्टर बनने के कुछ दिन बाद तक गांधी जी राजकोट में ही रहे। फिर वे अपने एक मित्र की सलाह पर
कोर्ट में अपमान : दो-तीन दिन बाद सेठ अब्दुल्ला गांधी जी को डरबन की अदालत दिखाने ले गए। जब वे उन्हें कोर्ट में अपने वकील
दक्षिण अफ्रीका में : मोहनदास फ्रॉक कोट और काठियावाड़ी पगड़ी पहने हुए डरबन बंदरगाह पर उतरे। सेठ अब्दुल्ला उन्हें लेने आए हुए थे। उनको वहां
ट्रेन से नीचे धकेलना : एक सप्ताह बाद बैरिस्टर गांधी डरबन से प्रिटोरिया के लिए रवाना हुए, जहां सेठ अब्दुल्ला का । मुकदमा चल रहा
बैरिस्टर गांधी का विरोध : उस रात बैरिस्टर गांधी प्लेटफार्म पर ही ठंड में ठिठुरते हुए बैठे रहे। किया गया अपमान उनके | हृदय को
नेटाल इंडियन कांग्रेस : प्रिटोरिया में चल रहा मुकदमा सेठ अब्दुल्ला जीत गए थे। वहां से गांधी जी डरबन लौट आए। | उन्होंने वापस भारत
तूफान में फंसा गांधी परिवार : दक्षिण अफ्रीका में तीन वर्ष के प्रवास में बैरिस्टर गांधी की वकालत चल निकली थी। रंगभेदी सरकार के विरुद्ध
गांधी जी का क्षमादान : उसी समय पुलिस सुपरिंटेंडेंट एलजेंडर और उनकी पत्नी उधर से आ निकले। उन्होंने गांधी जी । और मिस्टर लाटन को
गांधी पर पथराव और मारपीट : दक्षिण अफ्रीका के गोरे नहीं चाहते थे कि गांधी जी दुबारा अफ्रीका में प्रवेश करें। इसलिए उन्होंने दोनों स्टीमरों
क्रांतिकारी परिवर्तन : बैरिस्टर गांधी के क्षमादान का आक्रमणकारी लड़कों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। वे अपनी हरकत पर बेहद शर्मिंदा हुए। उधर इंग्लैंड के
गांधी जी की स्वदेश वापसी : अब दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी का कोई काम नहीं रह गया था। वे भारत लौटना चाहते थे। लेकिन
गांधी जी शांति-निकेतन में : गांधी जी बंबई में रहने लगे। बीच-बीच में वे भारत-भ्रमण पर भी जाते रहे। परंतु इसी बीच उन्हें फिर से
साबरमती आश्रम की स्थापना : बर्मा उन दिनों भारत का ही एक हिस्सा था। उसकी राजधानी रंगून थी। गुरुदेव से मिलकर गांधी । जी रंगून
गांधी जी चंपारन में : सन् 1916 में लखनऊ में हुए कांग्रेस अधिवेशन में चंपारन को लेकर एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें वहां के