द्रोणाचार्य ने मांगी गुरु-दक्षिणा : एकलव्य आचार्य द्रोण के दर्शनों से स्वयं को तृप्त कर रहा था। आचार्य ने फिर प्रश्न किया, “कौन है। तुम्हारा
द्रोणाचार्य की प्रशंसा : एक दिन पितामह ने राजकुमारों की योग्यता परखने के लिए हस्तिनापुर के राजकीय क्रीड़ास्थल पर एक विशेष प्रतियोगिता आयोजित की। इस
दुविधाग्रस्त द्रोणाचार्य : प्रतियोगिता का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया था। पितामह भीष्म और अन्य सभी राजपरिवारीगण तथा दर्शकगण इस आयोजन में द्रोणाचार्य के शिष्यों
शिष्यों की कृतज्ञता : शिष्यों की कृतज्ञता ज्ञापन द्रोणाचार्य के शिष्य उन्हें घेरे हुए बैठे थे। सफलतापूर्वक शिक्षण कार्य पूर्ण होने की प्रसन्नता उनके मुखमंडल पर
द्रोण शिष्यों का द्रुपद से सामना : हस्तिनापुर के राजकुमारों की सेना और पांचालराज द्रुपद की सेना आमने-सामने थी। दोनों ओर से तीव्र वेग के
द्रोणाचार्य की आज्ञा : युधिष्ठिर और अन्य शिष्यों ने द्रोणाचार्य से बारम्बार गुरु-दक्षिणा के लिए आग्रह किया तो वे बोले, ‘प्रिय शिष्यो! यदि तुम्हारी यही
पराजित द्रुपद का अर्जुन से वार्तालाप : बंदी होने के बाद भी पांचालराज के मुख पर मलिनता का कोई चिह्न न था। बल्कि वे तो
बंदी द्रुपद का द्रोणाचार्य से सामना : द्रुपद को बंदी अवस्था में ले जाकर आचार्य द्रोण के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया। “पांचालराज महाराज द्रुपद!”
द्रोण और द्रुपद का मैत्री-वैर : “द्रुपद! आज तुम मेरे बंदी हो। सम्पूर्ण पांचाल राज्य पर तुम्हारा नहीं मेरा अधिकार है,” द्रोणाचार्य ने व्यंग्यभरे स्वर
द्रोणाचार्य से प्रतिशोध का निश्चय : पांचालराज द्रुपद को उनका राज्य लौटाकर द्रोणाचार्य समझ रहे थे कि उन्होंने वैर का अंत कर दिया, किंतु यह
द्रुपद की पुष्टि यज्ञ की इच्छा : पांचालराज द्रुपद ने अपने हितैषियों की सलाह को यथेष्ट सम्मान दिया और पुत्रेष्टि यज्ञ के आयोजन की तैयारी
द्रुपद की याज से विनती : उपयाज की बात सुनकर द्रुपद को जहां गहरी निराशा हुई, वहीं यह जानकर प्रसन्नता भी हुई कि उनके ज्येष्ठ
धृष्टद्युम्न का जन्म : याज्ञिक याज के मंत्रोच्चारण के साथ पुत्रेष्टि यज्ञ आरम्भ हुआ। ज्यों-ज्यों मंत्रोच्चारण के साथ हवनकुंड में आहुतियां डाली जाने लगीं, यजमान
महाभारत का युद्ध : हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र के पुत्र-मोह और ज्येष्ठ कौरव युवराज दुर्योधन की अनीति का परिणाम महाभारत के युद्ध के रूप में सामने
कौरवों के सेनापति द्रोणाचार्य : पितामह भीष्म के नेतृत्व में दस दिन तक भीषण युद्ध चलता रहा। पांडवों के अनेक वीरों और उनकी सेना की