नवरत्नों में एक विशिष्ट रत्न : फिर विद्योत्तमा के पास कालिदास रहे या नहीं इसका पूर्ण विवरण तो ग्रंथों में नहीं मिलता। लेकिन विद्वानों द्वारा
मां सरस्वती से क्षमा याचना : एक कथा के अनुसार एक बार महाकवि दंडी को राजकवि घोषित किया गया। इसमें मां सरस्वती की साक्षात स्वीकृति
धन्ना भक्त की कथा : उपासना की नींव है ‘ श्रद्धा’ । जहां श्रद्धा होती है, वहीं सिद्धि होती है। निरंतर साधना से सिद्धि प्राप्त
भोला धन्ना और धूर्त ब्राह्मण : ब्राह्मण की बात सुनकर भोला-भाला धन्ना सकपका गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे।
दुष्ट ब्राह्मण और धन्ना की जिज्ञासा : ब्राह्मण ने धन्ना से कहा, ” धन्ना ! देवी सरस्वती ज्ञान-विज्ञान को देने वाली देवी हैं। उन्हीं की
देवी सरस्वती और धन्ना भक्त : ब्राह्मण द्वारा दुत्कारे जाने पर धन्ना ने अपने खेत की मिट्टी से देवी सरस्वती की मूर्ति बनाई और प्रार्थना
धन्ना को लोगों की प्रताड़ना : सरस्वती का वरदान प्राप्त करके धन्ना ने मिट्टी से विष्णु की मूर्ति बनाई और उसे अपने खेतों में स्थापित
पंडित ने अपनी गलती मानी : घर लौटकर पंडितजी को नींद नहीं आई। वह चारपाई पर पड़े-पड़े सोचते रहे। यह आदमी पढ़ालिखा नहीं है। विद्वान
महर्षि भरद्वाज और अप्सरा घृताची : महर्षि भरद्वाज हरिद्वार के निकट स्थित एक आश्रम में निवास करते थे। वे बड़े विद्वान और तत्वज्ञानी थे। एक
द्रोण का जन्म : समय आने पर एक दिन द्रोण से एक दिव्य शिशु का जन्म हुआ। महर्षि भरद्वाज ने इसका नामकरण किया’ द्रोण’। शिशु
द्रोण और द्रुपद की मित्रता : आश्रम में विद्याध्ययन करते समय द्रोण का व्यवहार अपने सहपाठी विद्यार्थियों के प्रति प्रायः मित्रवत ही रहता था, किंतु
द्रोण की महर्षि परशुराम से भेंट : आचार्य अग्निवेश के आश्रम में शिक्षण कार्य पूर्ण करने के पश्चात द्रोण ब्राह्म-कर्म (अध्यापन) करते हुए जीवन व्यतीत
द्रोण को धनुर्विद्या का दान : “वत्स द्रोण!” महर्षि परशुराम गंभीरता से बोले, ‘जिस उद्देश्य से तुम मेरे पास आए हो, उसे अब मैं पूर्ण
द्रोण की अभावग्रस्त गृहस्थी : द्रोण का विवाह हस्तिनापुर के राजगुरु कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। कृपाचार्य और कृपी के । पिता महर्षि
बालक अश्वत्थामा का रोष : बालक अश्वत्थामा का रोष ‘माताश्री !” अश्वत्थामा रोष-भरे स्वर में बोला, “यदि उनका कथन अनुचित है और मेरे भाग्य में