सुहासिनी बनी पहली सदस्या : जब मदर लोरेटे सेंट मैरी कॉन्वेन्ट हाई स्कूल, कलकत्ता में शिक्षिका और प्राचार्या थी, उस समय वहां सुहासिनी नाम की

महिला कुष्ठ रोगियों का आवास : सन् 1950 में, संपन्न घराने की जानकी नाम की एक महिला ‘मदरहोम’ में आई। उसे कुष्ठ रोग था। उसके

कुष्ठ रोगियों का मदर के खिलाफ विद्रोह : कुष्ठ रोगियों में से जो रोगी ठीक हो जाते थे, मदर उनके लिए हथकरघा मंगातीं और उन्हें

रोगियों ने क्षमा मांगी : दूसरे दिन मदर ने सभी रोगियों को बुलाया और उनसे कह दिया कि जब तक विद्रोही रोगी अपने व्यवहार के

मदर का सत्याग्रह : एक बार मदर ने फुटपाथ पर एक गरीब औरत को बेहोश पड़े देखा। उस औरत के कपड़े फटे हुए थे और

मृत्यु से जूझते रोगियों की सेवा का संकल्प : उस औरत की मृत्यु के बाद मदर ने संकल्प किया कि वह मृत्यु से जूझते हुए

जब नास्तिक बना ईश्वर भक्त : मदर के सेवा कार्य की चमत्कार भरी रिपोर्टिंग, देश-विदेश के अखबारों की सुर्खियां बन गई थी। प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में

निर्मल हृदय’ की स्थापना : डॉक्टर अहमद ने मदर को उस धर्मशाला के दो बड़े हॉल दिलवा दिए। मदर ने उस जगह का नाम निर्मल

वह गरीब लड़की : गरीबों की सेवा से बढ़कर मदर के लिए और कोई भी कार्य महत्वपूर्ण नहीं था। वे सभी को समान दृष्टि से

मदर से मिलना भगवान से मिलना जैसा था : इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। मदर के प्रति उनका बड़ा प्रेम भाव था। वे कहा

सबसे शुद्ध : बंगला देश’ बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान के सेनाध्यक्षों ने हिंदू बंगालियों को भारत की ओर खदेड़ दिया था। हजारों की संख्या

पहले विदेशी होम की स्थापना : मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की सेवा की खुशबू भारत के साथ-साथ विदेशों में भी खूब फैल रही। थी। परंतु मदर

भूखे को रोटी व प्यासे को पानी दो : फिलीपीन्स के इस होम में कमजोर नजर वालों को होम की ओर से जांच करके नजर

विकलांग भाई के लिए शिफौंग का त्याग : एक बार मदर टेरेसा को सिंगापुर जाने का अवसर मिला। तब शिफौंग नाम की एक सोलह साल

टैक्स न देने का पक्का इरादा : मदर के होम के लिए फ्रांस, जर्मनी और विश्व के कई अन्य देशों से रोगियों के लिए दवाएं