निर्देश – ब्रह्मा का | Nirdesh – Brhma ka
निर्देश – ब्रह्मा का | Nirdesh – Brhma ka : ऐसा कहा जाता हैं की संसार के रचयिता अर्थात् ब्रह्मा के तीन संताने थी देवता, मनुष्य तथा दैत्य। इन तीनों ने ही सृष्टि पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए सदैव अपनी सीमाओं को पार किया। अत: देवताओं तथा दैत्यों के बीच युद्ध व लड़ाइयाँ बहुत साधारण बात थीं। हर बार, जब भी देवता जीतते तो मनुष्यों के निवास–स्थान अर्थात् पृथ्वी पर सदैव शान्ति, समृद्धि फैलती तथा धार्मिक यज्ञ होते थे।
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परन्तु जब कभी दैत्य युद्ध जीतते, तब पृथ्वी पर घृणा, अकाल, सूखा रहता। अशांति रहती, अज्ञानता का वास रहता और मनुष्य कोई अच्छा काम करने की बजाय अपना सारा धन व्यर्थ के भोग-विलासों में बर्बाद करता. इस प्रकार, तीनो संसारो यानी स्वर्ग जहाँ भगवान रहते हैं, धरती जहा मनुष्य रहता तथा पाताल जहाँ दैत्य लोग निवास करते थे, सभी जगहों पर अक्सर अव्यवस्था फैली रहती थी।
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निर्देश – ब्रह्मा का | Nirdesh – Brhma ka : इस अव्यवस्था का कोई हल न देखकर, ब्रह्मा ने उन्हें निर्देश देने का निर्णय लिया। अत: एक दिन ब्रह्मालोक से एक ऊँची आवाज आई। वह आवाज बहुत ही गूँजने वाली तथा तेज थी तथा इस आवाज ने जो कहा वह शब्द था ‘दा’। देवताओं, मनुष्यों तथा दैत्यों सभी ने यह आवाज सुनी तथा उसका अर्थ जानने के लिए ब्रह्मा जी के पास जाने के लिए सोचा। सर्वप्रथम तीनों वर्गों ने शिष्टता के नियमानुसार तपस्या की। तब वे ब्रह्मा जी के पास कारण जानने के लिए पहुंचे.
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निर्देश – ब्रह्मा का | Nirdesh – Brhma ka : भगवान् ब्रह्मा ने देवताओं से कहा, “क्या तुम बता ‘दा’ से मैं तुम्हें क्या कहना चाहता हूँ।” देवताओं ने कहा, “दा का अर्थ है- ‘दम्यता’ अर्थात् ‘प्रतिबन्ध”। हम सदैव स्वर्ग के सुख को भोगने में ही लगे रहते हैं और दैत्यों के आक्रमण से अनभिज्ञ रहते हैं। अत: ‘दा’ का अर्थ है कि हमें अपने ऐन्द्रिय सुख पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।”
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निर्देश – ब्रह्मा का | Nirdesh – Brhma ka : “हाँ, तुम भली प्रकार समझ गए हो।” भगवान ब्रह्मा ने कहा, “मनुष्य, क्या तुम जानते हो की ‘दा’ का क्या अर्थ है?” मनुष्य बोले, “हे भगवन! हमारे लिए ‘दा’ का अर्थ है दाना, जिसे दान दिया जाता है। आपने हमसे अपने लालची स्वभाव को दूर रखने के लिए कहा था. आगे से हमे संपत्ति तथा भोजन को लोभवश संगृहीत करने की प्रवृति को रोकना होगा और जो वस्तु हमसे सम्बंधित नहीं है, उसे दान में दे देना होगा।”
“पुत्रो, तुमने मेरे दिए गए निर्देश ठीक प्रकार समझ लिए हैं. अब तुम जा सकते हो,” ब्रह्मा जी ने कहा। अब दैत्य ब्रह्या जी के आगे आए। “तुम्हारे लिए ‘दा’ का क्या अर्थ है?” भगवान् ब्रह्मा ने पूछा।
दैत्यों ने कहा, “दा का अर्थ हैं – दयाध्वम” अर्थात केवल दया.”
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निर्देश – ब्रह्मा का | Nirdesh – Brhma ka : अब से तुम्हारे मार्ग में जो कोई भी तुम्हारे आगे आएगा, उसे तुम लोग न तो मारोगे, न ही नष्ट या समाप्त करोगे।” लेकिन जब ब्रह्मा जी उन्हें निर्देश दे रहे थे, तो बुरी आत्मा वाले दैत्यगण ब्रह्मा जी के पूरे निर्देश सुने बिना ही वहाँ से चले गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दैत्य, देवताओं के साथ अपनी लड़ाई को समाप्त नहीं करना चाहते थे।
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आज भी ब्रह्मा जी के ‘दा’ के रूप में दिये गये निर्देश बादलों की गड़गड़ाहट के रूप में सुने जाते हैं। यह आवाज सदैव हमें हमारे कर्तव्यों की याद दिलाती है, कि हमें सदा त्यागशील तथा दयावान रहना चाहिए। जो व्यक्ति इन निर्देशों को नहीं समझते, वे अज्ञानता के कारण नष्ट हो जाते हैं।
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