मित्रता का फल | Mitrta Ka Fal

मित्रता का फल | Mitrta Ka Fal : किसी जंगल में कबूतरों का एक समूह रहता था। उस समूह का मुखिया एक बुद्धिमान कबूतर था। एक दिन जब कबूतरों का वह दल भोजन की तलाश में उड़ रहा था, तो एक बरगद के पेड़ के नीचे कबूतरों ने चावल के दाने बिखरे हुए देखे। बस, फिर क्या था, सारा दल नीचे उतर आया और जल्दी – जल्दी चावलों को खाने लगा, लेकिन कुछ ही देर बाद उन्हें पता चल गया कि वे तो एक बहेलिए के बिछाए जाल में फंस चुके हैं। कबूतरों ने पंख फड़फड़ा कर जाल से इतने सारे कबूतरों को जाल में फंसा देख बहेलिया खुश होकर जाल की ओर बढ़ा, तभी कबूतरों के दल के मुखिया ने कहा – ‘साथियो! कुछ ही क्षणों में बहेलिया यहां पहुंचने वाला है। इससे पहले कि वह यहां पहुंचे, सब एक साथ मिलकर जोर लगाओ और इस जाल को ही उड़ा ले चलो। संगठन में बहुत शक्ति होती है। सारे मिलकर प्रयास करोगे, तो जाल को उड़ा ले चलना कोई मुश्किल कार्य नहीं होगा।’

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मित्रता का फल | Mitrta Ka Fal : सारे कबूतरों ने मिलकर जोर लगाया और जाल को लेकर ऊपर उठ गए। यह देखकर बहेलिया बदहवास हो उठा। उसने जोर से अपना डंडा कबूतरों की ओर फेंका, लेकिन तब तक कबूतर बहुत ऊंचे उठ चुके थे। बहेलिया पीछे-पीछे दौड़ा, लेकिन जब कबूतर आगे ही आगे बढ़ते गए, तो वह निराश होकर भूमि पर बैठ गया। उधर कबूतरों का मुखिया कबूतरों को ऐसे स्थान पर लेकर गया, जहां उसका एक मित्र चूहा रहता था। सारे कबूतर पंख फड़फड़ाते हुए उसके बिल के सामने उतरे, तो वह भयभीत हो गया और भागकर अपने बिल में छिप गया। कबूतरों के मुखिया ने जब उसे नाम लेकर पुकारा, तो उसने धीरे से अपने बिल से बाहर झांका और पूछा-‘अभी कौन मेरा नाम लेकर मुझे पुकार रहा था?’ ‘यहां मैं हूं तुम्हारा घनिष्ठ मित्र! कबूतरों के मुखिया ने कहा।

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मित्रता का फल | Mitrta Ka Fal : अपने मित्र को पहचान कर चूहा बाहर आया। उन्हें इस हालत में देखकर वह बोला-‘मित्र, तुम तो इतने बुद्धिमान हो, फिर इस जाल में कैसे फंस गए?’ ‘चावल खाने के लालच में हम फंस गए। मित्र! जो हो गया, सो हो गया। अब तुम अपने दांतों से इस जाल को काटकर हमें मुक्त कर दो।’ कबूतरों के मुखिया ने कहा। ‘ठीक है, मैं अभी तुम सबको मुक्त करता हूं, लेकिन मैं सबसे पहले तुम्हें जाल से मुक्त करूंगा।’ ‘नहीं मित्र, पहले मुझे नहीं, मेरे दूसरे साथियों को मुक्त करो। इन लोगों ने मुझ पर विश्वास करके ही मुझे इस दल का मुखिया बनाया है। फिर मैं पहले मुक्त क्यों हो जाऊँ? तुम
सबसे बाद में ही मुझे जाल से मुक्त करना।’ दल के मुखिया ने कहा। चूहा अपने बुद्धिमान से ऐसी ज्ञान की बात सुनकर खुश हो उठा। उसने अपने पैने दांतों से जल्दी ही जाल को काट डाला। जाल कटते ही सभी कबूतर बंधन – मुक्त हो गए। दल का मुखिया अपने मित्र चूहे को धन्यवाद देकर अपने साथियों के साथ उड़ गया इसीलिए तो कहा गया हैं कि मिलकर कार्य करने से संभव समझे जाने वाले कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं. हम सबको मिल – जुल कर ही कार्य करने चाहिए.

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