महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein
महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein : रूद्रकेतु अंग नामक राज्य में पुजारी थे। वह और उनकी पत्नी शारदा, भगवान् गणेश के परम भक्त थे। कुछ वर्षों के पश्चात् शारदा ने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया। उनका नाम देवान्तक और नरान्तक रखा गया। दोनों बच्चे स्वस्थ, सुन्दर, सुसभ्य व ज्ञानी थे। रूद्रकेतु के घर पर आने वाले अतिथि अक्सर उन्हें उनके महान् पुत्रों के लिए बधाई देते थे। जैसे-जैसे दोनों बच्चे बड़े हुए व नौजवान बने, उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गयी।
एक दिन महर्षि नारद रूद्रकेतु के घर पर आये और बोले, “रूद्रकेतु, इन्द्रलोक के देवताओं ने भी तुम्हारे पुत्रों के विषय में सुना है। मैं यहाँ उनसे मिलने आया हूँ, वे कहाँ हैं?”
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महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein : दोनों नवयुवक नारद का आशीर्वाद लेने वहाँ आए, तब नारद बोले, “मैं इन दोनों की जन्मकुण्डलियाँ देखना चाहता हूँ।” रूद्रकेतु ने तुरन्त ही अपने “तुम्हारे पुत्रों का भविष्य बहुत उज्वल है। वे एक दिन पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करेंगे, परन्तु उनकी कुण्डलियों में कुछ कमियाँ भी हैं। मेरे पास उन कमियों को दूर करने का उपाय है।” ‘महर्षि, मुझे इसका उपाय बताइये, ” रूद्रकेतु बोले। “तुम्हारे दोनों पुत्रों देवान्तक और नरान्तक को भगवान् शिव के नाम का जाप व तप करना पडेगा। उनसे प्रसन्न होकर भगवान् शिव उन्हें दर्शन देंगे। भगवान् शिव को प्रसन्न करके ही उनकी कुण्डलियों की कमियाँ उनके जीवन से दूर हो पाएंगी.”
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दोनों ही नवयुवक भगवान् शिव की तपस्या करने के लिये मान गये, इसलिये वह जगलों में गये और कई वर्षों तक निरंतर तपस्या करते रहे। तत्पश्चात् भगवान् शिव ने उन्हें साक्षात् दर्शन दिये और वरदान माँगने को कहा। नरान्तक बोले, “हे भगवान्, हमें आशीर्वाद दो कि हम तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करें।”
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महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein : “ऐसा ही होगा।” भगवान् शिव ने कहा। अब देवान्तक की वरदान मांगने की बारी थी, “हमें ऐसा वरदान दो कि हमें कोई देवता, कोई राक्षस, कोई असुर न मार सके।” “जैसा तुम चाहो, वैसा ही होगा।” इन शब्दों के साथ ही भगवान शिव अदृश्य हो गये। अपना मनचाहा वरदान पाकर देवान्तक और नरान्तक बहुत प्रसन्न हुए। तब देवान्तक ने अमरावती पहुँचकर इन्द्रदेव को ललकारा। एक लम्बे और भयंकर युद्ध के बाद देवान्तक ने इन्द्र को अमरावती से भगा दिया।
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शीघ्र ही देवान्तक ने अमरावती पर राज करना प्रारम्भ कर दिया। उनकी सहायता से असुरों की तो जैसे मौज ही आ गई उन्होंने ऋषियों और देवताओं को परेशान करना आरम्भ कर दिया और सारा वातावरण अशांत कर दिया। नरान्तक ने उधर पूरी पृथ्वी पर
विजय प्राप्त कर ली और असुरों की सहायता से धीरे-धीरे धरती के राजपाट पर भी अपना अधिकार जमा लिया. अब उन्होंने पानी के नीचे की दुनिया अर्थात् पाताललोक को भी जीतने का निर्णय किया। उन्होंने असुरों की सेना को पाताललोक भेजा।
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महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein : वहाँ असुरों ने पाताललोक के राजा शेषनाग को पकड़ लिया। और फिर उसे पकडकर नरान्तक को भेंट किया। नरान्तक शेषनाग से बोले, “यदि तुम्हें अपना जीवन प्यारा है, तो तुम्हें हमें वार्षिक कर देना पड़ेगा।” मरते क्या न करते, शेषनाग इसके लिए मान गये। इस समझौते के बाद तीनों लोकों में अपराध, खून-खराबा व अशांति का वास हो गया।
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महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति इन्द्र देव तथा अन्य देवताओं की माता थीं। वह इस बात से बहुत दुखी थी कि देवान्तक और नरान्तक अकारण ही देवताओं और ऋषियों की हत्या किये जा रहे थे। इसी समस्या के हल के लिए ऋषि कश्यप के साथ विचार किया। ऋषि कश्यप बोले, ” भगवान् गणेश से प्रार्थना करो, और उन्हें प्रसन्न करो।
जब वह तुम्हारे सामने आ जाएं, तो उनसे सहायता माँगना. केवल वे ही नरान्तक और देवांतक को मार सकते हैं.”
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महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein : अत: अदिति ने व्रत रखकर भगवान् गणेश से प्रार्थना की. शीघ्र ही भगवान् गणेश उसके सामने प्रकट हुवे और अदिति से वरदान मांगने को कहा.
“भगवान् गणेश, मैं चाहती हूँ कि आप मेरे पुत्र के रूप में जन्म लें और सभी निर्बल तथा संकट में पड़े लोगों की सहायता करें” अदिति ने कहा।
भगवान् गणेश मान गये। कुछ समय पश्चात् अदिति ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह और ऋषि कश्यप जानते थे कि भगवान् गणेश के कहे वचन सत्य हो रहे हैं। अदिति ने उसका नाम महोत्कट रखा।
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महोत्कट अवतार में | Mahotkat Avtaar mein : महोत्कट के जन्म की सूचना तीनों लोकों में फैल गयी। एक मंत्री ने देवान्तक और नरान्तक को इसकी सूचना दी तो देवान्तक बोले, “अच्छा तो भगवान् गणेश अब अदिति के पुत्र हैं और वह हमें समाप्त करने के लिए आए हैं। हम उन्हें अभी उनके बचपन में ही मार देंगे।” इसलिए नरान्तक ने राक्षसी ब्रिजा को ऋषि कश्यप के आश्रम में जाने का आदेश दिया और उसे उस बच्चे को जान से मारने के लिए कहा। पर जब ब्रिजा आश्रम में पहुँची तो कुछ न कर पाई क्योंकि उसके कुछ कह पाने से पहले ही बालक महोत्कट ने उसे राख के ढेर में बदल दिया। तब देवान्तक ने दो असुरों को महोत्कट को मारने के लिए आश्रम भेजा। उन असुरों ने दो तोतों का रूप धारण किया उन्हें देखकर बालक महोत्कट का मन हुआ कि वह उन तोतों से खेले। वह तोतों के पास गया और उन्हें गर्दन से पकड लिया। तभी अचानक भूकम्प के समान हलचल हुई। लोग आश्रम से बाहर आ गए। सभी ने देखा कि दो असुर, बालक महोत्कट के सामने मृत पड़े हैं। यह देख कर सभी समझ गये कि बालक महोत्कट अवश्य भगवान् गणेश का ही स्वरुप हैं, जो तीनो लोको में फैली बुराई को समाप्त करने के लिए आये हैं. कुछ समय पश्चात् महोत्कट ने देवान्तक और नरान्तक को मार दिया। यह देखकर आश्रम में रहने वाले सभी ऋषि एवं लोग समवेत स्वर में एक साथ गा उठे। “महोत्कट की जय।”
‘विध्न विनायक की जय।”
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