ॐ त्र्यं॑बकं यजामहे सु॒गन्धिं॑ पुष्टि॒वर्ध॑नम् ।
उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान् मृ॒त्योर् मुक्षीय॒ माऽमृता॑त्
Mahamrityunjaya Mantra: समस्त संसार के पालनहार , तीन नेत्रों वाले शिव की हम आराधना करते हैं ! विश्व में सुरभि फ़ैलाने वाले भगवान् शिव मृत्यु न की मोक्ष से हमे मुक्ति दिलाये
मृत्युंजय चालीसा यह जो है गुणों की खान।
अल्प मृत्यु ग्रह दोष सब तन के कष्ट महान।
छल व कपट छोड़ कर जो करे नित्य ध्यान।
सहजानंद है कह रहे मिटे सभी अज्ञान।
मृत्युंजय चालीसा इस घोर कलयुग में पूर्ण रूपेण गुणों की खान है। किसी की जन्म कुण्डली में अल्प आयु हो, और किसी भी तरह का शरीर को कष्ट हो, कैसी भी आधि-व्याधि हो, ग्रहों के द्वारा महान दोष हो; तब अगर मनुष्य छल, कपट और बुरी भावना का त्याग करके नित्य इस चालीसा का पाठ करता है तो स्वामी सहजानंद नाथ कहते हैं कि उसकी सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है, ज्ञान का प्रकाश उदय होता है और अज्ञानता खत्म होती है तथा परिवार में सौहार्द का वातावरण बनता है।
जय मृत्युंजय जग पालन कर्ता।
अकाल मृत्यु दुख सबके हर्ता।
मृत्युंजय भगवान ही इस संसार के पालनकर्ता हैं और
अकाल मृत्युसे तथा दु:खों से सबको निजात दिलाते हैं।
अष्ट भुजा तन प्यारी ।
देख छवि जग मति बिसारी।
आपकी आठों भुजाएं आपके शरीर में इतनी प्यारी
लगती हैं कि आपके रूप को देखकर सारा संसार मोह माया से दूर हो जाता है
और अपने आपको भूल जाता है।
चार भुजा अभिषेक कराये। |
दो से सबको सुधा पिलाये।
आप चार हाथों से अमृत से स्वयं का अभिषेक कर रहे हैं |
और दो हाथों से ज्ञान और अमृत रूपी सुधा पिलाने को तत्पर हैं।
सप्तम भुजा मृग मुद्रिका सोहे।
अष्टम भुजा माला मन पोवे।
आपकी सातवीं भुजा मन की चंचलता की सूजनता बन जाए
भुजा मन की माला को पोती है।
सर्पो के आभूषण प्यारे
बाघम्बर वस्त्र तने धारे।
अपने शरीर पर सर्प रूपी धारण कर रखे हैं और
बाघ रूपी चर्म को अपने तन पर कपड़े के समान लपेटा हुआ है।
कमलासन को शोभा न्यारी
है आसीन भोले भण्डारी।
और कमल के आसन पर विराजमान भोले बाबा!
आपकी शोभा देखते ही बनती है।
माथे चन्द्रमा चम-चम सोहे।
बरस-बरस अमृत तन धोऐ।
आपके माथे पर विराजमान चन्द्रमा अमृत को बरसा कर
अपने शरीर को स्नान करवा रहा है।
त्रिलोचन मन मोहक स्वामी
घर-घर जानो अन्तर्यामी
हे तीन नेत्रों वाले, मन को मोहने वाले, हर एक
जीव को जानने वाले शिव।
वाम अंग गिरीराज कुमारी।
छवि देख जाऐ बलिहारी।
आपके बाएं हाथ की तरफ मां पावर्ती विराजमान |
हैं जो आपके सौंदर्य को देखकर हर्षा रही हैं।
मृत्युंजय ऐसा रूप तिहरा
शब्दों में ना आये विचारा ।
हे भगवान मृत्युंजय ! तुम्हारे ऐसे आलौकिक रूप को मैं
सहजानन्द नाथ भी शब्दों में बखान करने में समर्थ नहीं हूँ।
आशुतोष तुम औघड दानी
सन्त ग्रन्थ यह बात बखानी
इस प्रथ्वी के सभी संतों ने और सभी से सभी ग्रंथों में यह
कहा है की तुमसे बड़ा कोई दानी नहीं, मदमस्त नहीं और शीघ्र प्रसन्न होने वाला नहीं
राक्षस गुरु शुक्र ने ध्याया
मृत संजीवनी आप से पाया
राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने अपना मंत्र जपकर दूसरों को जीवन प्रदान करने वाली
शक्ति रूपी विद्या आपसे प्राप्त की।
मृत संजीवनी रुपी विद्या प्राप्त की ।
यही विद्या गुरु ब्रहस्पती पाये ।
माक्रण्डेय को अमर बनाये ।
देवताओं के गुरु ब्रहस्पती ने भी अपना ध्यान कर मृत संजीवनी विद्या को पाया और
मुकुंण ऋषि के पुत्र माक्रण्डेय ने जब आप को ध्याया तो आपने
उनको अमर करके अष्ट चिरंजीवी में स्थान दिया।
उपमन्यु अराधना किनी।
अनुकम्पा प्रभु आप की लीनी।
बालक उपमन्युने जब आपकी प्रार्थना की तो आपने उन
पर अपनी सारी कृपा बरसा दी।
अन्धक युद्ध किया अतिभारी।
फिर भी कृपा करि त्रिपुरारी।
राक्षस अंधक ने आपसे भयानक युद्ध किया और आपने उसको त्रिशूल में पिरो दिया लेकिन उसने जब आपकी स्तुति की तो आपने उसे जीवनदान दिया और पूर्ण कृपा की।
देव असुर सबने तुम्हें ध्याया।
मन वांछित फल सबने पाया।
चाहे देवता हों या फिर राक्षस हों जो भी आपकी
आराधना करते हैं वो आपसे मन की इच्छा के अनुरूप फल प्राप्त कर लेते हैं।
असुरों ने जब जगत सताया।
देवों ने तुम्हें आन मनाया।
जब राक्षसों ने इस जग को सताया और देवताओं ने
तुम्हें आकर मनाया तो आपने देवताओं का साथ दिया।
त्रिपुरों ने जब की मनमानी।
दग्ध किये सारे अभिमानी।
तारकाक्ष, विद्युन्माली तथा कमलाक्ष राक्षसों ने अपनी मनमानी की तो
आपने इन सबको जलाकर भस्म कर दिया और राक्षसों के अभिमान को चूर किया।
देवों ने जब दुन्दुभी बजायी।
त्रिलोकी सारी हरसाई।
देवताओं ने अपना वाद्य यंत्र दुन्दुभी बजाई तो तीनों लोक हर्षित हो गये और आनन्द छा गया।
ई शक्ति का रूप है प्यारे।
शव बन जाये शिव से निकारे।
शिव अर्थात शांति, शिव में से शक्ति और ज्ञान रूपी ‘इ’ हट जाए तो सभी मनुष्य शव के समान हैं।
इसलिए हमें शक्ति, ज्ञान और शांति का सामंजस्य स्थापित करना चाहिये।
नाम अनेक स्वरूप बताये।
सब मार्ग आप तक जाये।
हे महामृत्युंजय भगवान! आपके अनेक नाम हैं और विभिन्न स्वरुप हैं
इसलिए किसी भी नाम और किसी भी स्वरुप का ध्यान किया जाए वो रास्ता आप तक जाता है।
सबसे प्यारा सबसे न्यारा।
तैतीस अक्षर का मंत्र तुम्हारा।
तुम्हारा तैतीस अक्षरो का मृत्युंजय मंत्र (ओ३म् त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय | मामृतात्॥) जोकि सबसे शक्तिशाली और पूर्ण रूपेण प्रत्येक !
जीव में जीवन शक्ति का संचार करता है और मृत्यु के बंधन सेमुक्त करके मोक्ष की ओर अग्रसर करता है, सबसे प्यारा हैं
तैतीस सीढ़ी चढ़ कर जाये
सहस्त्र कमल में खुद को पाये।
हमारी रीढ़ के 33 जी कोण हैं, तुम्हारे इस मंत्र को बोलने
से मूलाधार से शक्ति शवाधिस्ठान में, फिर मणिपुर में, फिर
अनाहत में, फिर विशुद्धि में और फिर आज्ञा चक्र में होते हुए
सहस्त्रार में प्रवेश कर जाती है। अर्थात् इस मंत्र को बोलने से
स्थूल शरीर निरोग हो जाता है और सूक्ष्म शरीर का आपमें विलय का रास्ता बन जाता है।
आसुरी शक्ति नष्ट हो जाये।
सात्विक शक्ति गोद उठाये।
और जब ऐसा हो जाता है तब मन में और विचारों में जो पैशाचिक उर्जा होती है वह नष्ट हो जाती है और सतो गुणों का स्वयं शरीर में उदय होने वाला लगता है तथा सात्विक शक्तियाँ
स्वयं हमें संभाल कर लेती हैं।
श्रद्धा से जो ध्यान लगाये ।
रोग दोष वाके निकट न आये।
सच्चे हृदय से जो आपका ध्यान करता है कैसा भी रोग हैं।
हो, शोक हो तथा कोई भी पितृ दोष हो वह उसके समीप नहीं |
आता और उसे सांसारिक संसाधनों में कमी नहीं होती।
आप ही नाथ सभी की धूरी।
तुम बिन कैसे साधना पूरी।
हे नाथों के नाथ जगन्नाथ! आप ही सभी के केन्द्र हो और मृत्युंजय भगवान
आपको जपे बिना किसी की कोई साधना पूर्ण नहीं हो सकती।
यम पीड़ा ना उसे सताये।
मृत्युंजय तेरी शरण जो आये।
मृत्युंजय भगवान तेरी शरण में आने के बाद मृत्यु का भय कहाँ? यम के दूत
तो क्या स्वयं यमराज भी तेरी शरण में आए हुए भक्तों को सता नहीं सकता।
सब पर कृपा करो हे दयालु।
भव सागर से तारो कृपालु।
हे मृत्युंजय! आपसे बड़ा कोई दयालु नहीं और आप सब पर कृपा करें तथा संसार रुपी सागर में हमें पार कीजिए।
महामृत्युंजय जग के अधारा
जपे नाम सो उतरे पारा
महामृत्युंजय भगवान! आप ही जगत के आधार हैं। आपका जो नाम जपता है
वही इस संसार सागर से पार हो जाता है।
चार पदार्थ नाम से पाये।
धर्म अर्थ काम मोक्ष मिल जाये।
आपके नाम का गुणगान करने से धर्म, अर्थ, काम और
मोक्ष सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
जपे नाम जो तेरा प्राणी ।
उन पर कृपा करो हे दानी ।
हे भगवन! जो भी प्राणी आपका नाम जपे उन पर अपनी कृपा हमेशा बरसाते रहना।
कालसर्प का दुःख मिटावे ।
जीवन भर नहीं कभी सतावे ।
आपका ध्यान करने व जपने से काल रूपी सर्प ने जो जन्म कुण्डली में
पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण दोष उत्पन्न कर | दिए हैं वो पूर्णतया जीवन में कभी भी नहीं सताते।
नव ग्रह आ जहां शीश निवावे।
भक्तों को वो नहीं सतावे।
और आपके द्वारे नौ ग्रह भी आपकी वंदना करते हैं तथा
वो भी आपके भक्तों को नहीं सताते
जो श्रद्धा विश्वास से धयाये
उस पे कभी ना संकट आये।
जो सच्चे हृदय और पूर्ण विश्वास से आपका ध्यान करता
है उसके जीवन में कभी कोई दुर्घटना और संकट नहीं आता।
जो जन आपका नाम उचारे
नव ग्रह उनका कुछ ना बिगाड़े।
जो भी व्यक्ति आपका नाम मात्र का उच्चारण करता है।
उसका नौ ग्रह भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते।
तेंतीस पाठ करे जो कोई
अकाल मृत्यु उसकी ना होई।
और इस चालीसा का नित्य कोई भी व्यक्ति 33 बार पाठ करेगा तो उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी।
मृत्युंजय जिन के मन वासा ।
तीनों तापों का होवे नासा।
दैहिक (शरीर में), दैविक (देवता द्वारा) और भौतिक
(सांसारिक कष्ट) जिनके मन में मृत्युंजय देव आप वास करते हैं
उन्हें ये कष्ट कभी भी नहीं होते।
नित पाठ उठ कर मन लाई।
सतो गुणी सुख सम्पत्ति पाई।
प्रतिदिन मन से इस चालीसा का पाठ जो भी मनुष्य करता है
वह सतोगुणी हो जाता है तथा हर प्रकार की सुख सम्पति को प्राप्त कर लेता है।
मन निर्मल गंगा सा होऐ।
ज्ञान बड़े अज्ञान को खोये॥
और उसका मन गंगा के समान पवित्र हो जाता है और
उसका ज्ञान प्रतिदिन बढ़ने लगता है तथा अज्ञान नष्ट होने लगता है।
तेरी दया उस पर हो जाए।
जो यह चालीसा सुने सुनाये।।
हे मृत्युंजय देव! जो भी प्राणी यह चालीसा सुने व सुनाएं
अथवा सुनाने की व्यवस्था करे उस पर तेरी क्रपा हो जाए।
मन चित एक कर जो मृत्युंजय ध्याये।
सहज आनंद मिले उसे सहजानंद नाथ बताये।।
स्वामी सहजानन्द नाथ कहते हैं कि मन को, बुद्धि को तथा चित्त को एकाग्र करके
जो भी प्राणी मृत्युंजय भगवान का ध्यान करता है,
स्मरण करता है उसे निश्चित रूप से सहज आनंद की प्राप्ति होती है।
निराकार ज्ञान गम्य, न स्थूल,न सूक्ष्म। निर्विकार निर्मल, भक्तवत्सल मृत्युंजय॥
प्रकृति और पुरुष, जिनके शरीर से प्रकट हुए। चरणों से देव, दिशा, सूर्य-चन्द्रमा हुए।
आप ही विद्या, पर ब्रह्म तुम ही हो। आपकी जय हो, मृत्युंजय की जय हो।
मृत्युंजय महादेव की जय हो॥
आकाश, पृथ्वी दिशा, जल, तेज तथा काल। मृत्युंजय तुम ही हो, साकार-निराकार।
परमेश्वर, सद्ब्रह्मा, परब्रह्मा, महेश्वर। ऐसे गणाध्यक्ष, उमापति,त्रिनेत्र, विश्वेश्वर।
महामृत्युंजय रुद्र ईश्वा॥
आपको ध्याऊ तो पाप हर जाए। छल कपट लोभ ईष्यां मोह मिट जाए।
तू ही साकार-निराकाएं: तू है। जग का आधार तू ही तू है।
तेरी बदना मैं किस मुहूं करूं । तेरे दर्शन की चाह मैं करूं ॥
मृत्युंजय तेी जय हो | महादेव तेरी जय हो॥
स्थिति उत्पति लय सबके तुम कारण। सब कष्टों का तुम हो निवारण।
मृत्युंजय नाम का अमृत पिलाओ। लक्ष्यहीन जीवन, मार्ग दिखाओ।
नश्वर संसार से मुक्ति दिलाओ सहजानन्द नाथ कहें, व्याधि से छुड़ाओ॥
मृत्युंजय तेी जय हो | महादेव तेरी जय हो॥
इसे भी पढ़े: Shiv Chalisa
Mahamrityunjaya Mantra
मृत्युंजय महादेव नमः, शिव शंकर महादेव नमः तेरी शरण जो आए, तेरी महिमा गाए, किरपा करो देवा।
तैंतीस अक्षर का मंत्र, जो कोई जाप करें, स्वामी जी कोई जाए करें।
आदि-व्याधि मिटे सब, दुःख दुविधाएं मिटे सब, उनके भाग जगें। 1॥ महामृत्युंजय
तेरा ध्यान निराला, जो कोई कर पावे, स्वामी जो कोई कर पावे,
काल भी उसका को क्या, ग्रह दोष भी उसका को क्या, भव से तर जावे॥2॥ मृत्युंजय …
तेरा मंत्र जो गावे, दुःख मिटे तन का, भोले रोग मिटे तन का।
तेरी कृपा से देवा, तेरी दृष्टि से देवा, संताप मिटे मन का | 3 || मृत्युंजय .
शक्र मार्कण्डेय ने जो ध्याया, अमरता को पाया, शंकर अमरता को पाया।
उन पर दया हो तेरी, अनुकंपा हो तेरी, शरण में जो आया। 4॥ मृत्युंजय…
पशुपति नाथ कहें सब, आशुतोष कहें, शिव आशुतोष कहें।
औघड दानी गिरिषा, वामदेव त्रिपुरारी, सब में तू ही रहे ॥ 5॥ मृत्युंजय ,
सब के दु:ख तू मिटाए, शांति समृद्धि लायें, शिव शांति समृद्धि लाये।
भटके हुओं को दाता, भटके हुओं को दाता, विमुख हुओं को दाता, राह पे ले आये। 6| मृत्युंजय
भूतप्रेत पैशाचिक उर्जा, सब ही दूर रहें, स्वामी सब ही दूर हैं।
आपदा विपदा निवारे, दुष्टों को भी संहारे, जो कोई मन से जपे।। मृत्युंजय
हम मूरख अज्ञानी, राह दिखा स्वामी, हमें राह दिखा स्वामी।
दूर हों सब अंधियारे, मन में न पाप विचारें, पार लगा स्वामी।। मृत्युंजय
मृत्युंजय देव की आरती सब मिल कर गाएं, आओ सब मिल कर गाएं।।
कहत जोगी जी हम सब, सहजानंद नाथ कहें सब, आत्मज्ञान पाएं,
मोक्ष को सब पाएं, ।। मृत्युंजय
Go2Win - भारतीय दर्शकों के लिए स्पोर्ट्सबुक और कैसीनो का नया विकल्प आज के दौर…
Ole777 समीक्षा Ole777 एक क्रिप्टो वेबसाइट (crypto gambling website) है जिसे 2009 में लॉन्च किया…
मोटापे से छुटकारा किसे नहीं चाहिए? हर कोई अपने पेट की चर्बी से छुटकारा पाना…
दशहरा पर निबंध | Essay On Dussehra in Hindi Essay On Dussehra in Hindi : हमारे…
दिवाली पर निबंध Hindi Essay On Diwali Diwali Essay in Hindi : हमारा समाज तयोहारों…
VBET एक ऑनलाइन कैसीनो और बैटिंग वेबसाइट है। यह वेबसाइट हाल में ही भारत में लांच…