खामंखा की शत्रुता पालना | Khamakha Ki Shatruta Palna
खामंखा की शत्रुता पालना | Khamakha Ki Shatruta Palna : एक बार हंस, कोयल, तोता, चातक, बगुला, कबूतर, मुर्गा इत्यादि प्रमुख पक्षियों की एक विराट सभा आयोजित की गई। उसमें विचार किया गया कि उनका राजा वैनतेय (गरुड़) अधिकांश समय भगवान विष्णु की सेवा में ही लगा रहता है। शिकारियों से उनकी रक्षा का कोई उपाय नहीं करता, अत: सब पक्षियों को मिलकर किसी नए राजा का चुनाव कर लेना चाहिए। कई दिनों की बैठक के बाद सबने यही निश्चय किया कि सर्वाग सुंदर उल्लू को ही राजा बनाया जाए। अभिषेक की तैयारियां होने लगीं, विविध तीर्थों से पवित्र जल मंगाया गया। सिंहासन पर रत्न जड़े गए, स्वर्णघट। भरे गए। ब्राह्मणों ने वेद पाठ आरंभ कर दिया, नर्तकियों ने नृत्य की तैयारी कर ली। उल्लूराज सिंहासन पर बैठने ही वाले थे कि कहीं से एक कौआ आ गया। कौए ने सोचा-‘‘यह समारोह कैसा ? यह उत्सव किसलिए ?’ पक्षियों ने भी जब कौए को देखा तो आश्चर्य में पड़ गए।
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खामंखा की शत्रुता पालना | Khamakha Ki Shatruta Palna : उसे तो किसी ने बुलाया भी नहीं था। फिर भी जिन्होंने सुन रखा था कि साधुओं में जैन भिक्षु, जंतुओं में गीदड़, मनुष्यों में नाई और पक्षियों में कौआ सबसे ज्यादा चतुर होता है; वे सब पक्षी जिज्ञासावश उसके इर्द-गिर्द एकत्रित हो गए। उल्लू के राज्यभिषेक की बात सुनकर कौए ने हंसते हुए कहा-‘‘यह चुनाव ठीक नहीं हुआ। मोर, हंस, कोयल, सारस और तोते जैसे सुंदर पक्षियों के होते हुए इस दिन के अंधे और टेढ़ी नाक वाले मनहूस पक्षी को राजा बनाना उचित नहीं है। यह तो स्वभाव से ही कटुभाषी और रौद्र है। फिर अभी तो हमारा राजा गरुड़ बैठा है। एक राजा के रहते दूसरे को राजसिंहासन पर बैठाना विनाश की निशानी है। ‘ कौए ने कहना जारी रखा-‘राजा एक ही होता है। उसका नाम लेने पर ही कई असाध्य कार्य बन जाते हैं। चंद्रमा के नाम से ही खरगोशों ने हाथियों से छुटकारा पाया था। पक्षियों ने पूछा-‘वह कैसे ?’ तब कौए ने उन्हें खरगोश और हाथी की यह कथा सुनाई।
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