कछुवे का पतन | Kachhuve Ka Patan
कछुवे का पतन | Kachhuve Ka Patan : किसी जलाशय में कम्बुग्रीव नाम का एक कछुआ रहता था। उसके साथ संकट और विकट नाम के दो हंस अत्यधिक स्नेह रखते थे। वे नित्य जलाशय के किनारे बैठकर उस कछुए के साथ गोष्ठी किया करते थे और अनेक ऋषि, महर्षियों की कथाएं सुनाकर सूर्यास्त के समय अपने निवास स्थान को लौट जाया करते थे।
कुछ दिनों के बाद वहां सूखा पड़ने के कारण वह तालाब धीरे-धीरे सूखने लगा। इस कारण कछुआ चिंतित रहने लगा। कछुए के दुख से दुखित होकर हंसों ने उससे कहा-मित्र ! यह तालाब तो सूख चुका है। अब तो इसमें कीचड़ मात्र ही रह गया है। जल के बिना आप जीवित कैसे रहेंगे ?’
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कछुवे का पतन | Kachhuve Ka Patan : कछुए ने आंखों में आंसू भरकर कहा-मित्र ! अब यह जीवन अधिक दिन का नहीं है। पानी के बिना इस तालाब में मेरा अंत निश्चित है। तुमसे कोई उपाय बन पड़े तो करो। विपत्ति में धैर्य ही काम आता है। यत्न से सब काम सिद्ध हो जाते हैं। ‘ बहुत विचार के बाद यह निश्चय किया गया कि दोनों हंस जंगल से बांस की एक छड़ी लाएंगे। कछुआ उस छड़ी के मध्य भाग को मुख से पकड़ लेगा। हंसों का यह काम होगा कि वे दोनों ओर से छड़ी को मजबूती से पकड़कर दूसरे तालाब तक उड़ते हुए पहुंचेंगे। यह निश्चय होने के बाद दोनों हंसों ने कछुए से कहा-मित्र! हम तुम्हें इस प्रकार उड़ते हुए दूसरे तालाब तक ले जाएंगे, किंतु एक बात का ध्यान रखना। कहीं बीच में लकड़ी को छोड़ मत देना। पूरे रास्ते मुंह से कुछ बोलने की कोशिश मत करना।
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कछुवे का पतन | Kachhuve Ka Patan : और कौतूहल अथवा किसी लालचवश नीचे झांकने को भी कोशिश न करना, अन्यथा नीचे गिरकर तुम्हारा शरीर खंड-खंड हो जाएगा। समझ लो यह तुम्हारी एक कठिन परीक्षा है।’ तत्पश्चात हंसों ने लकड़ी को उठा लिया। कछुए ने मुख द्वारा उसे मध्य भाग से पकड़ लिया। हंस उसे उड़ाकर ले चले। उड़कर जाते समय उन्होंने नीचे बसे नगर में लोगों को अपनी ओर देखकर आश्चर्य करते हुए पाया। कछुआ बड़ा चंचल था। यद्यपि दोनों हंसों ने चलने से पूर्व ही उसे समझा दिया था, तथापि उससे रहा नहीं गया। यह पूछने के लिए कि यह किस प्रकार का कोलाहल है, ज्योंही उसने मुख खोला कि लकड़ी की पकड़ छूट गई। वह ऊंचाई से नीचे गिरा और नागरिकों ने उसको काटकर खंड-खंड कर दिया|
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कछुवे का पतन | Kachhuve Ka Patan : यह कथा सुनाकर टिट्टिमी ने कहा-‘इसलिए मैं कहती हूं कि भविष्य का उपाय करना चाहिए। जो व्यक्ति भविष्य के बारे में सोचकर उसका उपाय करता है, वह हमेशा सुखी रहता है और जो व्यक्ति यह सोचता है कि जो कुछ भाग्य में लिखा है वही होना है, अथवा ‘जो होगा, देखा जाएगा।’ वाली कहावत चरितार्थ करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। यद्भविष्य नामक मत्स्य और उसका परिवार इसी कारण विनष्ट हुआ था।’ टिटिहरे ने पूछा-‘वह कैसे ?’ टिटिहरी ने कहा-‘सुनाती हूँ, सुनो।’
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