Indian Geography in Hindi
Indian Geography in Hindi : भारत विभिन्न स्थ्लाक्रितियो वाला एक विशाल देश हैं हमारे देश में हर प्रकार की भुँकृतियाँ पायी जाती हैं जैसे पर्वत, मैदान, मरुस्थल, पठार तथा द्वीप समूह. यहाँ विभिन्न प्रकार की शैले पायी जाती हैं जिन में से कुछ संगमरमर की तरह कठोर होती हैं जिनका प्रयोग ताजमहल के निर्माण में हुआ था एवं कुछ शेल्खडी की तरह मुलायम होती हैं जिसका प्रयोग टेलकम पाउडर बनाने में होता हैं. भारत एक विशाल भू भाग हैं इसका निर्माण विभिन्न भूगर्भीय तालो के दौरान हुआ हैं. जिसमे इसके उच्चावाचो की प्रभावित किया हैं.
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Indian Geography in Hindi : भूगर्भीय निर्माणों के अतिरिक्त, कई अन्य प्रक्रियाओं, जैसे – अपक्षय, अपरदन तथा निक्षेपण के द्वारा वर्तमान उच्चावचो का निर्माण तथा संशोधन हुआ हैं.
प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की ऊपरी परपटी सात बड़ी एवं कुछ छोटी प्लेटो से बनी हैं. प्लेटो के गति के कारण प्लेटो के अंदर और प्लेटो के ऊपर स्थित महाद्विप्य शैलो से दवाब उत्पन्न होता हैं. इसके परिणाम स्वरुप वलन, भ्रन्शिकरण तथा ज्वालामुखी क्रियाए होती हैं. सामान्य तौर पर इन प्लेटो की गतियो को तीन वर्गों में विभाजित किया गया हैं. कुछ प्लेट एक – दुसरे के करीब आती हैं और अविसारित परिसीमा का निर्माण करती हैं. कुछ प्लेट एक दुसरे से दूर जाती हैं और अव्सारित परिसीमा का निर्माण करती हैं. जब दो प्लेट एक – दुसरे के करीब आती हैं, तब या तो वे टकराकर टूट सकती हैं या एक प्लेट फिसल कर दूसरी प्लेट के निचे जा सकती हैं.
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Indian Geography in Hindi : कभी कभी वे एक – दुसरे के साथ क्षैतिज दिशा में भी गति कर सकती हैं और रूपान्तर परिसीमा का निर्माण करती हैं. इन प्लेटो लाखो वर्षो से हो रही गति के कारण महाद्वीपों की स्थिति तथा आकर में परिवर्तन आया हैं. भारत की वर्तमान स्थलाकृति उच्चावच इस प्रकार की गतियो से प्रभावित हुआ हैं. सबसे प्राचीन भूभाग अर्थात प्राय द्वीप भाग गोंडवाना भूमि का एक एक हिस्सा. गोंडवाना भू भाग के विशाल क्षेत्र में भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के क्षेत्र शामिल थे. सम्वारिय धाराओ ने भूपर्पटटी को अनेक टुकडो में विभाजित कर दिया और इस प्रकार भारत, ऑस्ट्रेलिया की प्लेट गोंडवाना भूमि से अलग होने के बाद उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होने लगी. उत्तर दिशा प्रवाह के परिणाम स्वरुप ये प्लेट अपने से अधिक यूरेनियम प्लेट से टकराई इस टकराव के कारण इन दोनों प्लेटो के बीच टेथिस भू अव्न्थी के अवसादी चट्टान वलित हो कर हिमालय तथा पश्चिम एशिया की पर्वतीय श्रृंखलाओं के रूप में विकसित हो गए.
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Indian Geography in Hindi : टेथिस के हिमालय के ऊपर उठने तथा प्राय द्वीपीय पठार के उत्तरी किनारे के निचे धसने के परिणाम स्वरुप एक बहुत बड़ी द्रोणी का निर्माण हुआ. समय के साथ ये बेसिन उत्तर के पर्वतो एवं दक्षिण के प्राय द्वीपीय पठारों उसमे बहने वाली नदियों के अवसादी निक्षेपो द्वारा धीरे धीरे भर गया इस प्रकार जलोड़निक्षेपो से निर्मित एक विरिस्तित समतल भू भाग भारत के उत्तरी मैदान के रूप में विकसित हो गया.
Indian Geography in Hindi : भूगर्भीय तौर पर प्राय द्वीपीय पठार पृथ्वी की सतह का प्राचीनतम भाग हैं. इसे भूमि का एक बहुत ही स्थिर भाग माना जाता था परन्तु हाल के भूकम्पो ने इसे गलत साबित किया हैं. हिमालय एवं उत्तरी मैदान हाल में बनी स्त्लाक्रितियाँ हैं. भुगार्ब वैज्ञानिको के अनुसार पर्वत एक अस्थिर भाग हैं. हिमालय की पूरी पर्वत श्रृंखला एक युवा स्थलाकृति को दर्शाती हैं. जिसमे ऊँचे शिखर, गहरी घाटियाँ तथा तेज़ बहने वाली नदियाँ हैं. उत्तरी मैदान जलोड़ निक्षेपो से बनी हैं. प्राय द्विप्य पठार आग्न्ये तथा रूपान्तर शैलो वाली कम ऊँची पहाडियों एवं चौड़ी घाटियों से बना हैं.
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मुख्य भुगौलिक वितरण :
हिमालय पर्वत श्रृंखला उत्तरी मैदान प्रायद्वीपीय पठार, भारतीय मरुस्थल, तटीय मैदान, द्वीप समूह, भारत की उत्तरी सीमा पर विस्तृत हिमालय भूगर्भीय रूप से युवा एवं बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत श्रृंखला हैं. ये पर्वत श्रृंखलाए पश्चिम – पूर्व दिशा में सिन्धु से ब्रह्मपुत्र तक फैली हैं. हिमालय विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी हैं और एक अत्यधिक असम अवरोधों में से एक हैं. ये चौबीस सौ किलोमीटर की लम्बाई में फैले एक अर्ध्विर्ट का निर्माण करते हैं. इसकी चौड़ाई कश्मीर में 400 किलोमीटर एवं अरुणांचल में 150 किलोमीटर हैं. पश्चिमी भाग की अपेक्षा में पूर्वी भाग की अधिक विवधिता पायी जाती हैं. अपनी पूरी देशांतर विस्तार के साथ हिमालय को तीन भागो में बाँट सकते हैं. इन में श्रृंखलाओं के बीच बहुत अधिक संख्या में घाटियाँ पायी जाती हैं. सबसे उत्तरार्ध में स्थित श्रृंखला को महान या आन्तरिक हिमालय या हिमाद्री कहते हैं.
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मुख्य भौगौलिक वितरण :
यह सबसे अधिक सतत श्रृंखला हैं, जिसमे 6,000 मीटर की औसत उंचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं. इसमें हिमालय के सबसे मुख्य शिखर हैं.
महान हिमालय की वलय की प्रकृति असीमित हैं, हिमालय के इस भाग का क्रोड़ ग्रेनाइट का होता हैं.
यह श्रृंखला हमेशा बर्फ से ढकी रहती हैं तथा इससे बहुत सी हिमानियो का प्रवाह होता हैं.
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हिमाचल या निम्न हिमालय :
हिमाद्री के दक्षिण में स्थित श्रृंखला सबसे अधिक असं हैं. एवं हिमालय या निम्न हिमालय के नाम से जानी जाती हैं. इन श्रृंखलाओं का निर्माण मुखत अत्याधिक संपीडित तथा परिवर्तित शैलो से हुआ हैं. सिकी उंचाई 3,700 मीटर से 4,500 मीटर के बीच तथा औसत चौड़ाई 50 मीटर हैं.
पीर पंजाल श्रृंखला सबसे लम्बी तथा सबसे महत्वपूर्ण श्रृंखला हैं, धौलाधर एवं महाभारत श्रृंखलाए भी महत्वपूर्ण हैं. इसे श्रृंखला में कश्मीर की घाटी तथा हिमाचल में कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियाँ स्थित हैं. इस क्षेत्र को पहाड़ी नगरो के लिए जाना जाता हैं. हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को शिवालिक कहा जाता हैं. इसकी चौड़ाई 10 से 50 मीटर तथा उंचाई 900 से 1,100 मीटर के बीच हैं. ये श्रृंखलाए उत्तर में स्थित मुख्य हिमालय के श्रृंखलाओं से नदियों द्वारा लायी गयी असंपीडित अवसादों से बनी हैं. ये घाटियाँ बजरी तथा जलोड़ की मोटी परतो से ढकी हुई हैं. निम्न हिमाचल तथा शिवालिक के बीच में स्थित लम्वाथ घटी को दून के नाम से जाना जाता हैं.
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कुछ प्रसिद्ध दून हैं:
देहरादून, कोटलीदून एवम पाटलीदून
इस उत्तर दक्षिण के अतरिक्त हिमालय को पश्ह्चिम से पूर्व तक स्थित क्षेत्रो के आधार पर भी विभाजित किया गया हैं. इन वर्गीकरणों को नदी घाटियों के सीमओं के आधार पर किया गया हैं – सतलुज एवं सिंध के बीच स्थित हिमालय के भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता हैं. लेकिन पश्चिम से पूर्व तक कर्मश इसे कश्मीर तथा हिमाचल हिमालय के नाम से भी जाना जाता हैं. सतलुज तथा काली नदियों के बीच स्थित हिमालय के भाग को कुमाऊ हिमालय के नाम से भी जाना जाता हैं. काली तथा तीस्ता नदियाँ नेपाल हिमालय का एवं तीस्ता तथा देहांग नदियाँ असम हिमालय का सीमांकन करती हैं. ब्रह्मपुत्र हिमालय की सबसे पूर्वी सीमा बनाती हैं. देहांग महा खाद यानी गरज के बाद हिमालय दक्षिण के बाद एक तीखो मोड़ बनाते हुवे भारत के पूर्वी सीमा के साथ फ़ैल जाता हैं. इन्हें पूर्वांचल या पूर्वी पहाड़ो या पर्वत श्रृंखलाओं के नाम से जाना जाता हैं. ये पहाड़ियां उत्तर पूर्वी राज्यों से हो कर गुज़रती हैं तथा बलवा पत्थरों जो अवसादी शैल से बनी हैं. ये घनी जंगलो से ढकी हैं तथा अधिकतर समांतर श्रृंखलाओं एवं घाटियों के रूप में फैली हैं. उत्तरांचल में पत्कोई नागा मिज़ो तथा मणिपुर पहाड़ियां शामिल हैं.
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उत्तरी मैदान :
उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों सिंध, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों से बना हैं. यह मैदान जलोड़ मृदा से बना हैं. लाखो वर्षो में हीमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन द्रोणी में जलोड़ो का निषेप हुआ जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ. इस विस्तार साथ लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र पर हैं. यह मैदान 2400 किलोमीटर लम्बा एवं 240 से 320 किलोमीटर चौड़ा हैं. यह सघन जनसँख्या वाला भौगौलिक क्षेत्र हैं. समृद्ध मृदा आवरण प्रयाप्त पानी की उपलभधता एवं अनुकूल जलवायु के कारन कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उत्पादित क्षेत्र हैं. उत्तरी पर्वतो से आनी वाली नदियाँ निष्पन कार्य में लगी हैं. नदी के निचले भागो में ढाल कम होने के कारन नदी की गति कम हो जाती हैं जिसके परिणाम स्वरुप नदियाँ द्वीपों का निर्माण होता हैं.
Indian Geography in Hindi : ये नदियाँ अपने निचले भाग में गाद एकत्र हो जाने के कारन बहुत सी धाराओ में बाँट जाति हैं. इन धाराओ को वितरिकाए कहा जाता हैं. उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया हैं. उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता हैं. संधू तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाए गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पकिस्तान में स्थित हैं. सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियाँ. झेलम, चेनाब, रावी, व्यास तथा सतलुज हिमालय से निकलती हैं. मैदान के इस भाग में दवाबो की संख्या बहुत अधिक हैं. गंगा के मैदान का विस्तार घाघर तथा तीस्ता नदियों के बीच हैं. यह उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है.
Indian Geography in Hindi : ब्रह्मपुत्र का मैदान इसके पश्चिम विशेषकर असं में स्थित हैं. आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भाग में विभाजित किया जा सकता हैं. नदियाँ पर्वतो से निचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किलोमीटर के चौड़ी पट्टियों में गुट्तियो का निक्षेपण करती हैं. इसे भाभर के नाम से जाना जाता हैं. सभी सरिताए इस भाभर पट्टी में विलुप्त हो जाति हैं. इस पट्टी के दक्षिण में ये सरिताए एवं नदियाँ पुन निकल आती हैं एवं नाम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती हैं जिसे तराई कहा जाता हैं.
Indian Geography in Hindi : यह वयं प्राणियों से भरा घना जंगलो का क्षेत्र था. बंटवारे के बाद पकिस्तान से आएं शर्णार्थियो को कृषि योग्य भूमि प्राप्त कराने के लिए इस जंगल को काटा जा चूका हैं. उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोड़ का बना हैं. वे नदियों के बाद वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वैदिक जी आकृति प्रदर्शित करती हैं. इस भाग को भंगार के नाम से जाना जाता हैं. इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा कंकड़ कहा जाता हैं, बाद वाले मैदानों के नए तथा युवा निक्षेपो को खादर कहा जाता हैं. इनका लगभग प्रत्येक वर्ष पुन निर्माण होता हैं इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आर्दश होते हैं.
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प्रायद्वीपीय पठार :
प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल हैं जो पुराने क्क्रिस्तालीय, आग्नीय, तथा रूपतरित शैलो से बना हैं. यह गोंडवाना भूमि के टूट एवं अपवाह के कारन बना था. तथा यही कारन हैं की यह प्राचीनतम भू भाग का एक हिस्सा हैं. इस पठारी भाग में चौड़ी तथा छ्चिली घाटियाँ एवं इस पठार दो मुख्य भाग हैं मध्य उच्च भूमि तथा दकन का पत्थर नर्मदा नदी के उत्तर में प्रायद्वीपीय पठार का वह भाग जो की मालवा के पठार के अधिक भागो तक फैला हैं इसे मध्य उच्च भूमि के नाम से जाना जाता हैं. मध्य उच्च भूमि दक्षिण में विन्ध्य श्रृंखला तथा उत्तर पश्चिम में अरावली से घिरी हैं.
Indian Geography in Hindi : पश्चिम में ये धीरे धीरे राजस्थान के बलवी तथा पथरीली मरुस्थल से मिल जाता हैं इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ चम्बल, सिन्धु, बेतवा तथा खेम दक्षिण पश्चिम से उत्तर पूर्व की तरफ बहती हैं इस प्रकार वे इस क्षेत्र के ढाल को दर्शाती हैं. मध्य उच्च भूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण हैं इस पठार के पूर्वी विस्तार को स्थानीय रूप से बुन्देल्खाद तथा भ्घेल खंड के नाम से जाना जाता हैं. इसके और पूर्व के विस्तार को दामोदर नदी अपवाहित छोटा नागपुर पठार दर्शाता हैं. दक्षिण का पठार एक त्रिभुजा कार भू भाग हैं. जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित हैं. उत्तर में इसके चौड़े आधार पर सत्पूर्ण की श्रृंखला हैं. जबकि महादेव कैमूर की पहड़ी तथा मेकाल श्रृंखला उसके पूर्वी विस्तार दक्षिण का पठार पश्चिम में ऊँचा तथा पूर्व की ओर कम ढाल वाला हैं इस पठार का एक भाग उत्तर पूर्व में हैं.
Indian Geography in Hindi : जिससे स्थानीय रूप में मेघालय तथा कार्बी एवं लॉन्ग पठार के नाम से जाना जाता हैं. यह एक भ्रंश के द्वारा छोटा नागपुर पठार से अलग हो गया हैं. पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्वपूर्ण श्रृंखलाए दारो, खासी तथा जयं किया हैं. दक्षिण पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर कृमश पूर्वी तथा पश्चिमी घात स्थित हैं पश्चिमी घाट पश्चिम तट के समांतर स्थित हैं वे सतत हैं तथा उन्हें केवल दरो के द्वारा ही पार किया जा सकता हैं. इसमें धल्घात, भोरघाट तथा पालघाट महत्वपूर्ण डरे हैं. पश्चिमी घात पूर्वी घात की अपेक्षा ऊँचे हैं. पूर्वी गात के 600 मीटर के औसत उंचाई की तुलन में पश्चिमी घात की उंचाई 900 से 1600 मेतेरे हैं.
Indian Geography in Hindi : पूर्वी घात का विस्तार महानदी घाटी से दक्षिण में नीलगिरी तक हैं. पूर्वी घात का विस्तार सतत ह्नाही हैं. ये अनियमित हैं. एवं बंगाल की कड़ी में गिरने वाली नदियों में इनको काट दिया हैं. पश्चिमी घात को विभिन्न स्थानीय नामो से जाना जाता हैं. पश्चीमी घात की उंचाई उत्तर से दक्षिण की ओर से बढती जाती हैं इस भाग के शिखर ऊँचे हैं जैसे अनाई मुड़े 2695 मीटर तथा दोदपेता 2633 मीटर हैं. पूर्वी घात का अबसे ऊँचा शिखर महेंद्र्गिरी हैं जो 1500 मीटर हैं पूर्वी घात के दक्षिण प्पश्चिम में शिव राय तथा जावेदी की पहाड़ियां स्थित हैं. उद्ग मगलम जिसे उटी के नाम से जाना जाता हैं.
Indian Geography in Hindi : तथा कोडाई कनाल जैसे प्रसिद्ध पहाड़ नगर इसी भाग में स्थित हैं. प्रायद्वीपीय पठार के एक विशेषता हैं यह पाई जाने वाली काली मृदा हैं जिसे दकन ट्रैप के नाम से भी जाना जाता हैं. इसकी उत्पत्ति ज्वालामुखी से निकले शैलो से हुई हैं इसलिए इसकी शैल आग्नेय हैं. इन शैलो का समय के साथ अपरदन होने से काली मृदा का निर्माण हुआ हैं. अरावली की पहाड़ियां प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिमी एवं उत्तर पश्चिमी किनारे पर स्थित हैं. यह बहुत अधिक अपरदित एवं खंडित पहाड़ियां हैं. ये गुजरात से लकर, दिल्ली तक दक्षिण पश्चिम एवं उत्तर पूर्व दिशा में फैली हैं.
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भारतीय मरूस्थ :
भारतीय पहादी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित हैं. यह बालू के तिम्मो से ढका एक तरंगित मैदान हैं. इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मिलीमीटर से भी कम वर्षा होती हैं. इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में वस्पति बहुत कम हैं. वर्ष ऋतू में ही कुछ सरिताए दिक्गी हैं और इसके बाद वे रेट में ही विलीन हो जाती हैं केवल लूनी ही इस क्षत्र की सबसे बड़ी नदी हैं. बरकान यानी अर्ध चंद्रकार बालू का टीला का विस्तार बहुत अधिक क्षेत्र पर होता हैं लेकिन लम्बवत टाइल भारत पकिस्तान सीमा के समय प्रमुखता से पाए जाते हैं.
Indian Geography in Hindi : तटीय मैद्दान प्रायद्वीपीय पठार के किनारों पर संकीर्ण तटीय पत्तियों का विस्तार हैं. यह पश्चिम में अरब सागर से लेकर पुर में बंगाल की कड़ी तक विस्तृत हैं. पश्चिमी तट पश्चिमी घात तथा अरब सागर के बीच एक संकीर्ण मैदान हैं इस मैदान के तीन भाग हैं. तट के ऊत्री भाग को कोंकर्ण यानी मुंबई तथा गोवा मध्य भाग कणाद मैदान एवं दक्षिण भाग को माल बार तट कहा जाता हैं. बंगाल की कड़ी के साथ विस्तृत मैदान चौड़ा एवं समतल हैं. उत्तरी भाग में इससे उत्तरी सरकार कहा जाता हैं. जबकि दक्षिणी भाग कोरोमंडल टाटा के नाम से जाना जाता हैं बड़ी नदियाँ जैसे महा नदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी इस तट पर विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं. चिल्का झील पूर्वी टाटा पर स्थित एक महत्वपूर्ण भू लक्षण हैं.
Indian Geography in Hindi : द्वीप समूह केरल के मालाबार तट के पास लक्ष्यद्वीप स्थित हैं. द्वीपों का ये समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना हैं. पहले इन्हें लका द्वीप मानिकाए तथा एमिन दीप के नाम से जाना जाता था 1973 इसका नाम लक्ष्यद्वीप रखा गया. यह 32 वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में फैला हैं कावरत्ती द्वीप लक्ष्यद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय हैं.
Indian Geography in Hindi : इस द्वीप समूह पर पादप तथा जंतु के बहुत से प्रकार पाए जाता हैं. पिटली द्वीप जहा मनुष्य का निवास नहीं हैं वहां एक पक्षी अभ्य्रण हैं. अब बंगाल की कड़ी में उत्तर से दक्षिण के तरफ फैले द्वीपों की श्रृंखला की ओर ध्यान दीजिये ये अंडमान एवं निकोवार द्वीपों हैं यह द्वीप समूह आकार में बड़े संख्य में बहुल तथा बिखरी हुवे हैं यह द्वीप समूह मुख्यता दो भागो में बंटा गया हैं उत्तर में अंडमान तथा दक्षिण में निकोबार यह द्वीप समूह निम्जित पर्वत शेरिन्यो के शिखर हैं यह द्वीप समूह देश की सुरख्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं. इन द्वीप समूहों में पाए जाने वाले पादप एवं जन्तुओ में बहुत अधक विवधता हैं ये द्वीप विश्वत वृत्त के समीप स्थित हैं. एवं यहाँ की जलवायु विषुवतीय हैं तथा यह घने जंगलो से अच्छादित हैं.
Indian Geography in Hindi : विभिन्न भू आकृतियों विभागों का विस्तिर्ट विवरण प्रत्येक विभाग की विशेषता स्पष्ट करता हैं. परन्तु यह स्पष्ट हैं की ये विभाग एक दुसरे के पूरक हैं और वे देश को परकृतिक संसाधनों में सम्रिध्ह बनाते हैं. उत्तरी पर्वत जल एवं वन के प्रमुख स्रोत हैं उत्तरी मैदान देश के अन्न भण्डार हैं इनसे प्राचीन सभ्यताओ के विका को आधार मिला. पठारी भाग खनिजो के भडार हैं जिसमे देश के औधिय्कीकारन में विशेष भूमिका निभायी हैं तटीय क्षेत्र ने मत्स्यं और पूत संभंधि भूमिका निभायी हैं. तटीय क्षत्र मत्स्यं और पूत सम्बन्धी किर्यकलापो के लिए उपयुक्त स्थान हैं इस प्रकार देश की विविश भौतिक आकृतियाँ भविष्य में विकास की अनेक संभावनाए प्रदान करती हैं.
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