Hindi Poems on Mother
Hindi Poems on Mother : रिमझिम बरसात के बाद वो गीली शाम में गलियारों को रोशन करते करते दीयो के उजाले से उसकी प्यारी सी सूरत भी खिल उठती हैं. उस गीली मिटटी की खुशबू और माँ की खुशबू एक सी लगती हैं. जब दूर होता हूँ उससे तो उस बरसात के खत्म होते ही बाहर निकल पड़ता हूँ फिर से कही उस मिटटी की खिली खिली खुशबू से माँ को कही आस पास ही पाता हूँ. प्यार बहुत ही करता हूँ लेकिन जितना बया करू. ना जाने कम ही क्यूँ लगता हैं. यहाँ माँ की कविताओ का संग्रह हैं. आशा करते हैं आपको पसंद आएगा. 🙂
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माँ जो बच्चों के लिए जीती है (Hindi Poems on Mother)
यह कविता माँ पे है
जो कितना ख़याल करती है
बच्चों के लिए जीती है
उन्हीं के लिए मरती है |माँ हमारे लिए खाना बनाती
माँ हमें सबकुछ सिखाती
गणित, पहाडा, ए बी सी डी
माँ बच्चों को खूब पढाती |माँ ही पहली टीचर है
स्कूल बाद में आता है
बच्चा माँ के हाथों ही
काफी कुछ सीख जाता है |माँ बच्चे का ख़याल रखती
उसका पूरा देखभाल करती
उसी के लिए जीती-मरती
सारे दुःख हंस के सहती |उसके लिए खाना पकाती
उसे प्यार से खाना खिलाती
उसके बटन टांक देती
उसके कपडे धो डालती |बच्चा माँ को तंग है करता
रोता है, नींद से जगाता है
इतनी सारी उलझनों पे भी
माँ को बस प्यार आता है |माँ बच्चे का पहला कंप्यूटर
माँ बच्चे की पहली किताब
हर बच्चे की गूगल, विकिपीडिया
लाये उसके हर सवाल का जवाब |बचपन के चंचल मन में
जब भी सवाल आता है |
तो हर शिशु के जेहन में
बस माँ का ख़याल आता है |बच्चा पूछे हजार सवाल
माँ सबका दे जवाब
बच्चे की हर बदमाशी सहती
कहती उसको ‘छोटे नवाब’ !माँ ही टीचर, माँ ही विद्यालय
माँ ही किताब, माँ ही पुस्तकालय,
माँ ही दोस्त, माँ ही ज्ञान
इतिहास, भूगोल, समाज शास्त्र, विज्ञान |माँ नखरे उठाये मानो हैं वो ‘बेटे हुजूर’
खिलाये उसे खाना प्यार से घूर-घूर
लोरी सुनाए वो है अंखियों का नूर —
‘चंदामामा दूर, पर पुए पकाए गुड़’ !‘मदर्स डे’ का इन्तेजार न करो
हर पल माँ का ख़याल करो |
उसका दूसरा बचपन जब आये
तो उसका जीवन खुशाहाल करो |माँ तो हर दिन ‘बाल दिवस’ मनाती है
पर उसकी याद हमें ‘मदर्स डे’ पे आती है !Also Check : Suicidal Thoughts Quotes
Ek Mna ka Dard (Hindi Poems on Mother)
स्वप्न आता है इक रात सोयी हुई मां को
पुत्री, स्वयं मां आदिशक्ति तेरे घर आयेगी
एक चिरकाल से स्वर्ग में विचरित अप्सरा
जल्द ही तेरी पावन कोख में स्थान पायेगीअचानक चौंककर घबरा उठती है वो अबला
अश्रु नींदों में भी, गालों पर ढलक आते हैं
हाथ जोङ, मांगती है पूत्रजन्म की भिक्षा
कहती है मां, दया करो ये मार डाली जायेगीरोते रोते वो चली जाती है, कहीं दूर अतीत में
जब पहली बार हूई थी, उसके गर्भ में हलचल
हर जगह बताते नहीं थकती थी वो ये बात
कि हमारे घर आने वाली है, खुशियों की बारातपति ने तो सुनते ही, बाहुपाश पूरा कस दिया था
सास भी तो थकती ना थी, सौ सौ लेते बलैईयां
ससुर जी ने परम्परा तोङ सूना दिया था फरमान
बहु का ख्याल हम ही रखेंगे, ये पीहर ना जायेगीतीन महिने मैंने जाना कि सास, मां से बङी क्यों है
हर काम पर झिङकी, कि सो जा, तूं खङी क्यों है
ननद का रोज फोन कर तबियत पूछना क्या कहूं
जिंदगी की वो खुशियाँ, कभी भूलाई ना जायेंगीहंसते खेलते, तीसरे महिने, जाँच का समय आया
घर आयेगी लक्ष्मी, डाक्टर ने देखभाल कर बताया
न जाने क्यूंकर खुशियों का आइना, कांच बन गया
पहली बार मैंने किसी को, लक्ष्मी सून मुरझाते पायावापसी में पूरे रास्ते, वो एक भी शब्द ना बोले थे
बनों चाहे मासूम, पर वो कभी भी इतने ना भोले थे
पहली बार अनजाने में, मेरी धङकनें बढ चली थी
मेरे दिल के तराजू ने, कुछ अनिष्ट से पल तोले थेघर पर तो जैसे पूरा कौतुक, मेरे ही इंतजार में था
समझ आ गया कितना जहर, सास के प्यार में था
जिस सास को, ननद लगती थी जान से भी प्यारी
उसका फैसला मेरी अजन्मी बेटी की चितकार में थाससुर जी को हर मिनट, बहत्तर अटैक आ रहे थे
खूद थे जिंदा, पर पोती के नाम को मिटा रहे थे
जो कहते थे कि, मेरी देखभाल पीहर ना कर पायेगा
अब ससुराल की चौखट से भी, धक्के मरवा रहे थेकैकयी मंथरा की परिकल्पना, नहीं है केवल कहानी
शब्द बा शब्द जिया ननद नें, मेरा जरा कहा ना मानी
कितने भी मंदिरों में माथा रगङ लेना तूं मेरी बहन
तुझे माफ ना करेगा, मेरी आंखों का सूखा हुआ पानीइन सब के बीच मुझे मेरे पति पर, अब भी अास था
मरती हुई उम्मीदों के बीच भी, कहीं इक विश्वास था
पर उस आलिंगन की कसमसाहट में बिखर गयी मैं
जब पता चला कि मेरा भगवान भी जिंदा लाश थाऐसे समय में भाई सदृश्य, देवर ने जब सम्भाला था
तो राम ने मेरे लक्ष्मण का चरित्र तक खंगाला था
मां सीता की अग्निपरीक्षा का दुख जाना था मैनें
रोने भी ना दिया मूझे, लक्ष्मण को दिया निकाला थामेरे स्वप्न में आने वाली, तुझे दया जरा ना आयी
जब उस कसाई ने मेरी जिंदगी पर आरी थी चलाई
मानती हूँ कि प्रेम से सूनना, बंद कर दिया है तूने
पर क्या मेरी बच्ची की चीखें भी तूझ तक ना आईमातारानी तूने भी लजाया है मेरे आंसुओं का नाम
तूझ पर भी है, मेरी बच्ची की मौत का इल्जाम
मेरे ससुराल के दुख, उन से पहले मूझ पर टूटें
पर फिर भी तूं, इन्हें देना जरूर इस पाप का परिणाम……….
माँ के लिए (Hindi Poems on Mother)
साल के बाद
आया है यह दिन
करने लगे हैं सब याद
पल छिन
तुम ना भूली एक भी चोट या खुशी
ना तुमने भुलाया
मेरा कोई जन्म दिन
और मैं
जो तुम्हारी परछाई हूँ
वक्त की चाल-
रोज़गार की ढाल
सब बना लिए मैंने औज़ार
पर माँ!
नासमझ जान कर
माफ़ करना
करती हूँ तुमको प्यार
मैं हर पल
खामोशी तनहाई में
अर्पण किए
मैंने अपनी श्रद्धा के फूल तुमको
जानती हूँ
मिले हैं वो तुमको
क्योंकि
देखी है मैंने तुम्हारी निगाह
प्यार गौरव से भरी मुझ पर
जब भी मैं तुम्हारे बताए
उसूलों पर चलती हूँ चुपचाप
माँ!
मुझमें इतनी शक्ति भर देना
गौरव से सर उठा रहे तुम्हारा
कर जाऊँ ऐसा कुछ जीवन में
बन जाऊँ
हर माँ की आँख का सितारा
आज मदर्स डे के दिन
“अर्चना” कर रही हूँ मैं तुम्हारी
श्रद्धा, गौरव और विश्वास के चंद फूल लिए
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माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती (Hindi Poems on Mother)
माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती,
तुझे देख रोना नहीं चाहती !!
तुझसे जुड़ गया है दिल मेरा,
तुझे छोड़ कुछ पाना नही चाहती !!तुम भी एक दिन बचपन में थी,
आज बुढ़ापे में हो क्यों सो जाती !!
यही देख मन ही मन तड़पती,
तेरे बिन पूरी दुनिया वीरान सी लगती !!
माँ में तुझको खोना नहीं चाहती,
तुझे देख रोना नहीं चाहती !!सरसों के फूलों से ज्यादा पीला पड़ गया तेरा चेहरा माँ,
बुढ़ापे में झुर्रियों का तेरे उपर पड़ गया पहरा माँ !!
थक कर तुम जल्दी सो जाती,
माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती,
तुझे देख रोना नहीं चाहती !!तेरे सिवा किसी को नहीं चाहती,
तेरे साथ ही में रहना चाहती !!
तेरे अनुभव को मैं कभी अनुभव नही कर पाती,
तुम अनुभव से सब दुख-दर्द छिपाती !!
मुझको खुश रखना तुम चाहती,
पर माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती !!
तुझे देख रोना नहीं चाहती !!गुरसेवक सिंह की कविता यही बतलाती,
कि माँ मैं तुझको खोना नहीं चाहती,
तुझे देख रोना नहीं चाहती !
माँ आँखों से ओझल होती (Hindi Poems on Mother)
माँ आँखों से ओझल होती,
आँखें ढूँढ़ा करती रोती।
वो आँखों में स्वप्न सँजोती,
हर दम नींद में जगती सोती।वो मेरी आँखों की ज्योति,
मैं उसकी आँखों का मोती।
कितने आँचल रोज भिगोती,
वो फिर भी ना धीरज खोती।
कहता घर मैं हूँ इकलौती,
दादी की मैं पहली पोती।
माँ की गोदी स्वर्ग मनौती,
क्या होता जो माँ ना होती।
नहीं जरा भी हुई कटौती,
गंगा बन कर भरी कठौती।
बड़ी हुई मैं हँसती रोती,
आँख दिखाती जो हद खोती।शब्द नहीं माँ कैसी होती,
माँ तो बस माँ जैसी होती।
आज हूँ जो, वो कभी न होती,
मेरे संग जो माँ ना होती।।
Maa – Rimjhim barsaat k baad wo geeli shaam me
Rimjhim barsaat k baad wo geeli shaam me
galiyaro ko roshan karte deeyo ke ujale me
yaad aata hai us patli si pagdandi par
saanjh dhale wo ghar laut ke aana maachoolhe par sikti wo taazi roti ki mehak
yaa teri choodiyon ki khanakne ki thi aawaze
jaane kis baat me wo jaadu tha maa
ki door gaaon me khelti bhi, shaam ko
ghar laut aaya karti thi me maayun pukaara karti thi tu din bhar
par sun kar ansuna karti thi me maa
aaj teri ik aawaz ko yun tarasti hun maa
aa pahuchi hu door itni tujhse
ki maa k khane ki khushboo ko tarasti hu maadhalte din yaha bhi hai, baadal bhi baraste hai
par jaane kyu ye tapish khatam nahi hoti
maati ki wo saundhi mehak yaha nai aatishor to bohat hoti hai maa, bas ik teri aawaz nahi aati!!
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अम्मा (Hindi Poems on Mother)
चिंतन दर्शन जीवन सर्जन
रूह नज़र पर छाई अम्मा
सारे घर का शोर शराबा
सूनापन तनहाई अम्माउसने खुद़ को खोकर मुझमें
एक नया आकार लिया है,
धरती अंबर आग हवा जल
जैसी ही सच्चाई अम्मासारे रिश्ते- जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी-सी पुरवाई अम्माघर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्माबाबू जी गुज़रे, आपस में-
सब चीज़ें तक़सीम हुई तब-
मैं घर में सबसे छोटा था
मेरे हिस्से आई अम्मा
इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं (Hindi Poems on Mother)
सिरफिरे लोग हमें दुश्मने जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैंमुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह खुशग्वार लगती हैमैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपनालबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होतीकिसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आईइस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देतीये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती हैखाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रहीबरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में हैलिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।मंज़िल न दे चराग न दे हौसला तो दे
तिनके का ही सही तू मगर आसरा तो दे
मैंने ये कब कहा के मेरे हक में हो जवाब
लेकिन खामोश क्यूँ है तू कोई फैसला तो दे
बरसों मैं तेरे नाम पे खाता रहा फरेब
मेरे खुदा कहाँ है तू अपना पता तो दे
बेशक मेरे नसीब पे रख अपना इख्तियार
लेकिन मेरे नसीब में क्या है बता तो दे
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नि:शब्द है वो माँ (Hindi Poems on Mother)
वो सुकून
जो मिलता है
माँ की गोदि मे
सर रख कर सोने मेवो अश्रु
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने मेवो भाव
जो बह जाते है अपने ही आपवो शान्ति
जब होता है ममता से मिलापवो सुख
जो हर लेता है
सारी पीडा और उलझनवो आनन्द
जिसमे स्वच्छ
हो जाता है मन
Mother – You are the sunlight in my day (Hindi Poems on Mother)
You are the sunlight in my day,
You are the moon I see far away.
You are the tree I lean upon,
You are the one that makes troubles be gone.
You are the one who taught me life,
How not to fight, and what is right.
You are the words inside my song,
You are my love, my life, my mom.
You are the one who cares for me,
You are the eyes that help me see.
You are the one who knows me best,
When it’s time to have fun and time to rest.
You are the one who has helped me to dream,
You hear my heart and you hear my screams.
Afraid of life but looking for love,
I’m blessed for God sent you from above.
You are my friend, my heart, and my soul
You are the greatest friend I know.
You are the words inside my song,
You are my love, my life, my Mom.
माँ तुम गंगाजल होती हो (Hindi Poems on Mother)
मेरी ही यादों में खोई
अक्सर तुम पागल होती हो
माँ तुम गंगा-जल होती हो!जीवन भर दुःख के पहाड़ पर
तुम पीती आँसू के सागर
फिर भी महकाती फूलों-सा
मन का सूना संवत्सरजब-जब हम लय गति से भटकें
तब-तब तुम मादल होती हो।व्रत, उत्सव, मेले की गणना
कभी न तुम भूला करती हो
सम्बन्धों की डोर पकड कर
आजीवन झूला करती होतुम कार्तिक की धुली चाँदनी से
ज्यादा निर्मल होती हो।पल-पल जगती-सी आँखों में
मेरी ख़ातिर स्वप्न सजाती
अपनी उमर हमें देने को
मंदिर में घंटियाँ बजातीजब-जब ये आँखें धुंधलाती
तब-तब तुम काजल होती हो।हम तो नहीं भगीरथ जैसे
कैसे सिर से कर्ज उतारें
तुम तो ख़ुद ही गंगाजल हो
तुमको हम किस जल से तारेंतुझ पर फूल चढ़ाएँ कैसे
तुम तो स्वयं कमल होती हो।