गुरुदेव अंगद की परीक्षा | GuruDev Angad Ki Pariksha

गुरुदेव अंगद की परीक्षा | GuruDev Angad Ki Pariksha : अपनी मृत्यु से पहले ही गुरु नानक देव गुरु अंगद देव को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे पर उसके साथ-साथ वह यह भी सोचते थे कि गुरु अंगद देव उनके उत्तराधिकारी बनने के लायक भी है या नहीं। यही सोच-सोचकर वह सारा-सारा दिन परेशान रहते थे और अपनी इसी सोच के चलते उन्होंने गुरु अंगद देव की एक नहीं, अपितु अनेक प्रकार से परीक्षा ली। एक दिन कड़ाके की ठंड पड़ रही थी ऐसे समय में गुरुदेव अर्द्धरात्रि में उठ गये। उन्होंने अपने पुत्र तथा शिष्यों को अपने पास बुलाया और कहा, “मेरे वस्त्र स्वच्छ नहीं हैं।

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गुरुदेव अंगद की परीक्षा | GuruDev Angad Ki Pariksha : क्या कोई इसी समय नदी में जाकर इन्हें धो सकता है? दरअसल मैं चाहता हूँ कि प्रात: काल में उठकर मैं इन्हीं वस्त्रों को धारण करूं।” गुरु नानक देव की यह बात सुनकर उनका पुत्र तथा उनके शिष्य, हर कोई उनके आदेश से बचने के बहाने सोचने लगा, क्योंकि कोई भी कडाके की इस ठंड में नदी के ठंडे पानी में जाकर वस्त्र नहीं धोना चाहता था। हर शिष्य चाहता था कि कोई न कोई बहाना बनाकर गुरु देव के इस आदेश से बचा जाये व वापिस जाकर अपने-अपने लिहाफों में सोया जाये। परन्तु भक्त लहना ऐसा नहीं था, उसने उसी वक्त गुरु नानक देव के कपड़े उठाये और नदी में जाकर उन कपड़ों को धो डाला तथा वापस आकर सभी वस्त्रों को सुखा दिया। दरअसल भाई लहना ही गुरु नानक के वे शिष्य थे, जिन्हें बाद में गुरु अंगद देव का नाम दिया गया।

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गुरुदेव अंगद की परीक्षा | GuruDev Angad Ki Pariksha : इसी प्रकार भाई लहना ने गुरु नानक देव के प्रति अपनी भक्ति का एक बार और प्रदर्शन किया। एक दिन बारिश की रात थी। बिजली रह-रहकर गरज रही थी और बारिश थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे में गुरु नानक देव बहुत परेशान थे, उनकी परेशानी का कारण उनके पशु थे जो बहुत भूखे थे, और ऐसे में कोई भी बाहर जाकर उनके पशुओं के लिए चारा लाने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में भाई लहना बरसात में भीगते हुए खेतों की ओर निकल पड़े। चलते-चलते उन्हें खेतों के निकट एक जगह सूखी घास दिखाई दी। उन्होंने उसे उठाया और गुरुजी के पशुओं के पास ले आये। ऐसे खराब मौसम में भी उन्होंने गुरु जी के आदेश के सामने अपने भीगने तक की परवाह नहीं की।

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गुरुदेव अंगद की परीक्षा | GuruDev Angad Ki Pariksha : इसी तरह एक बार गुरु नानक देव ने सर्दियों के समय में भोजन के लिये लंगर की व्यवस्था की। लंगर अर्थात् वह जगह जहाँ सभी धर्मों, जातियों तथा वर्गों के व्यक्तियों को एक साथ बिठाकर भोजन कराया जाता है। जिस समय लोग लंगर में भोजन का आनन्द उठा रहे थे, उस समय लगर में भोजन बनाने के लिए प्रयोग किये जाने वाला नमक समाप्त हो गया। लंगर करतारपुर में चल रहा था और नमक वहाँ से दूर खादुर नामक जगह पर ही मिल सकता था। गुरु नानक देव ने भाई लहना को खादुर जाकर नमक लाने के लिये कहा। भाई लहना ने सिर झुकाकर उनकी आज्ञा का पालन किया और कड़कती हुई ठंड में खादुर गये तथा वहाँ से नमक की बोरी अपने सिर पर रख करतारपुर वापिस आ गये। इस तरह भाई लहना ने गुरु नानक देव के आगे अपनी कर्तव्यपरायणता प्रकट की, जिनके फलस्वरूप गुरु नानक देव ने भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी चुना।

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