Ganesh ji ki Aarti download Lyrics in Hindi
Ganesh ji ki Aarti download Lyrics in Hindi : गणेश जी की सुंदर आरती को हिंदी भाषा में सुंदर शब्दों को सुशोभित करते हुवे हम आपके लिए गणेश भगवान् की ये आरती लेकर प्रस्तुत हुवे हैं. आशा करते हैं आपको पसंद आएगी. हमे अपने विचार comment section में बताइए 🙂
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जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा
एक दिन दयावन्त चार भुजा धारी
मस्तक सिन्दूर सोहे मुसे की सवारी
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डू अन का भोग लागो सन्त करे सेवा
अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा
‘ सूरश्याम ‘ शरण आए सुफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा
विध्न – हरण मंगल – करण, काटत सकल कलेस
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गणेश श्लोक :
गणेश
गणेश चतुर्थी
गणेश स्तुति
गणेश चालीसा
गणेश जी की आरती
गणेश जी की कथा
ऋद्धि सिद्धि
श्री गणेश सहस्त्रनामावली
श्लोक
ॐ गजाननं भूंतागणाधि सेवितम्, कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम् |
उमासुतम् शोक विनाश कारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ||
स्तुति
गाइये गणपति जगवंदन |
शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
सिद्धी सदन गजवदन विनायक |
कृपा सिंधु सुंदर सब लायक़ ॥
मोदक प्रिय मृद मंगल दाता |
विद्या बारिधि बुद्धि विधाता ॥
Ganesh ji ki Aarti download Lyrics in Hindi
मांगत तुलसीदास कर ज़ोरे |
बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥
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गणेश जी के श्लोको का अर्थ :
अधिकांश हिंदू परिवारों-समुदायों में किसी भी शुभकार्य का आरंभ प्रायः गणेश वंदना से किया जाता है । इसी परंपरा के अनुरूप कार्यारंभ को बहुधा उसके ‘श्रीगणेश’ से भी पुकारा जाता है । वैवाहिक निमंत्रण-पत्रों पर देवाधिदेव गणेश की आकृति एवं उनकी स्तुति या प्रार्थना के श्लोक का उल्लेख आम प्रचलन में है । आजकल विवाहों का ‘मौसम’ चल रहा है । हिंदुओं में ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर ही पारंपरिक वैवाहिक मुहूर्त तय किए जाते हैं ।
वर्ष भर में कुछ गिने हुए दिन ही विवाह-योग्य मुहूर्त नियत होते हैं, और वे भी कुछ चुने हुए महीनों में । अतः इन दिनों एक साथ कई परिवारों में विवाह संस्कार संपन्न किए जाते हैं, और फलस्वरूप कई लोगों को मित्रों-परिचितों से अलग-अलग साजसज्जा के ढेरों निमंत्रण एक साथ मिलते हैं । जैसा पहले कह चुका हूं, इनमें गणेश वंदना के छंद प्रायः पढ़ने को मिलते हैं । मुझे प्राप्त होने वाले निमंत्रणों में निम्नांकित श्लोक सबसे अधिक देखने को मिलता है:
Ganesh ji ki Aarti download Lyrics in Hindi
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
हे वक्रतुण्ड, महाकाय, करोड़ों सूर्यों के समान आभा वाले देव (गणेश), मेरे सभी कार्यों में विघ्नो का अभाव करो, अर्थात् वे बिना विघ्नों के संपन्न होवें ।
गणेशजी को वक्रतुण्ड पुकारा गया है । तुण्ड का सामान्य अर्थ मुख या चोंच होता है, किंतु यह हाथी की सूंड़ को भी व्यक्त करता है । गणेश यानी टेढ़ीमेढ़ी सूंड़ वाले । उनका पेट या तोंद फूलकर बढ़ा हुआ, अथवा भारीभरकम है, अतः वे महाकाय – स्थूल देह वाले – हैं । उनकी चमक करोड़ों सूर्यों के समान है । यह कथन अतिशयोक्ति से भरा है ।
प्रार्थनाकर्ता का तात्पर्य है कि वे अत्यंत तेजवान् हैं । निर्विघ्न शब्द प्रायः विशेषण के तौर पर प्रयुक्त होता है, किंतु यहां यह संज्ञा के रूप में है, जिसका अर्थ है विघ्न-बाधाओं का अभाव । तदनुसार निहितार्थ निकलता है सभी कार्यों में ‘विघ्न-बाधाओं का अभाव’ रहे ऐसी कृपा करो, अर्थात् विघ्न-बाधाएं न हों ।
प्रार्थना का यह श्लोक कइयों के लिए सुपरिचित होगा । मैं इसकी चर्चा विशेष प्रयोजन से कर रहा हूं । मैंने देखा है कि यह छंद लगभग सदा ही त्रुटिपूर्ण तरीके से लिखित रहता है । अक्सर यह निम्न प्रकार से लिपिबद्ध रहता है:
वक्रतुण्ड महाकाय कोटि सूर्य सम प्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा ॥
अथवा मिलती-जुलती त्रुटियों के साथ । इसमें पहली त्रुटि यह है ‘सूर्य कोटि’ न होकर ‘कोटिसूर्य’ होना चाहिए । करोडों सूर्यों के समुच्चय या समूह के लिए सामासिक शब्द है ‘कोटिसूर्य’ = करोड़ों सूरज । दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि संस्कृत के नियम सामासिक शब्दों के घटकों के बीच रिक्ति (स्पेस) की अनुमति नहीं देते हैं । अतः इसे ‘कोटि सूर्य’ नहीं लिख जा सकता है । आगे इस पर भी ध्यान दें:
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सूर्यकोटिसमप्रभ
जिसका अर्थ है करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाला है जो वह । यह स्वयं बड़ा-सा सामासिक शब्द है और इसके अवयवों को बिना रिक्तियों के मिलाकर लिखना अनिवार्य है । कहने का तात्पर्य है कि समासजनित शब्दों के अंतर्गत रिक्तियां नहीं होनी चाहिए । मैंने देखा है कि निमंत्रण पत्र जैसे दस्तावेजों में संस्कृत श्लोकों की वर्तनी एवं उसमें उपलब्ध शाब्दिक क्रम कभी-कभी दोषपूर्ण रहते हैं ।
Ganesh ji ki Aarti download Lyrics in Hindi
इसका कारण कदाचित् यह है कि इन श्लोकों को उद्धृत करने वाले अधिकतर लोग संस्कृत के ज्ञाता नहीं होते हैं, अथवा उनका ज्ञान अपर्याप्त होता है । बहुत संभव है कि वे विभिन्न श्लोकों को अन्य निमंत्रण-पत्रों से लेते होंगे, या ऐसे स्रोत से लेते होंगे जहां किन्हीं कारणों से वे दोषपूर्ण मुद्रित हों ।
एक बार उनका त्रुटिपूर्ण पाठ व्यवहार में आ जाए और वही प्रचारित हो जाए तो उक्त प्रकार की गलती देखने में आने लगेगी ही ।
उपर्युक्त छंद से साम्य रखने वाला एक और छंद मेरे देखने आया है । वह है:
विनायक नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय ।
अविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
सदैव लड्डुओं के प्रेमी हे विनायक, तुम्हें नमस्कार है , हे देव, मेरे सभी कार्यों में विघ्नों का अभाव पैदा करो, अर्थात् वे निर्विघ्न संपादित हों ।
इस श्लोक के ‘मोदकप्रिय’ शब्द में भी समास है और इसे ‘मोदक प्रिय’ नहीं लिखा सकता है ।
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