Essay on Child Labour in Hindi
Essay on Child Labour in Hindi : आज यदि दिल्ली की सडको पर ही हम देख ले तो आपको जगह जगह पर इस प्रकार के बच्चे आपको मिल जाएंगे जिनके तन पर ना कपडा होता हैं और उन्हें खाना भी सही से नहीं मिलता यानी की तीनो समय के खाने से वो वंचित रह जाते हैं काफी मात्रा में. इसके पीछे कही ना कही प्रशासन भी जिम्मेदार हैं की कहाँ से वो बच्चे आएं हैं? कहाँ वो बच्चे जाएंगे किसी ने इस चीज़ को जानने की कोशिश नहीं की. 1986 में बाल श्रम कानून लागू हो गया और 1987 में ये अमल में भी लाया गया परन्तु इन 20 सालो में उस पर ठीक प्रकार से जिनके पास इसको रोकने का इसको सम्मान करने का जिनके पास दायित्व था उन्होंने अपना काम सही से नहीं किया उनके कारण से ये परिस्थिति भयावह हो गयी हैं.
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Essay on Child Labour in Hindi
मुद्दे की बात ये हैं की जो पूरा का पूरा बचपन हैं बच्चे हैं उनकी जो एक तस्वीर अगर हम पुरे देश के अंदर देखे तो वो तस्वीर क्या हैं और खासतौर पर जो कानून शुरू में बना और जो कानून अभी इस संशोधन के साथ अभी हाल ही में पास हुआ दोनों के बीच जो फर्क हैं वो फर्क अहालिया संशोधन बाल श्रम को प्रोत्साहित करते हैं की हतौत्साहित करते है? दोनों को हम चाहेंगे की तुलनात्मक रूप से दोनों को अलग अलग रूप से आप जाने.
Essay on Child Labour in Hindi
देखिये इस समय देश में बाल मजदूरी की क्या स्थिति हैं वो हम सभी जानते हैं तो जो आंकड़े आप देखेंगे सरकार के आंकड़े की चर्चा करे तो पता चलेगा की लगभग 83,00,000 अगर गैर सरकारी आंकड़ो की बात करे तो 5,00,00,000 के आस पास जो बच्चे हैं वो बाल मजदूरी कर रहे हैं जिनका बचपन पूरी तरह से गुलाम हैं और unicef की हालिया रिपोर्ट आप देखेंगे तो पाएंगे उसमे ये बताया गया हैं की जो पूरी दुनिया में जितने बाल श्रम हो रहे हैं उसमे जो 12% की हिस्सेदारी हैं वो भारत की हैं तो वो हमारे सामने शर्मनाक बात हैं लेकिन एक अच्छी बात ये हुई हैं की भारत सरकार ने 1 अच्छा कदम उठाते हुवे एक कोशिश तो की हैं जो पुराना कानून था
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1986 का जो पुराना कानून था उसमे संशोधन करके और एक तरफ से बाल श्रम को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने की बात की हैं. 14 साल के बच्चे अगर बाल मजदूरी नहीं करेंगे तो वो अपराध माना जाएगा तो ये अच्छी पहल हैं लेकिन जो कानून बनाया गया हैं जो ये नया विधेयक हैं उसमे बहुत सारी ऐसी कमियाँ हैं जिनकी वजह से ऐसा लगता हैं बाल मजदूरी घटने की जगह और बढ़ेगी इसमें 2 – 3 चीजों का ज़िक्र हम यहाँ पर करेंगे जो पिछला कानून था 1986 का जो कानून था उसमे ये कहा गया था की 14 साल तक के बच्चे भी काम कर सकते हैं लेकिन जो 83 उद्योग प्रक्रियाए हैं जो स्वास्थ्य के लिए बच्चे के लिए खतरनाक हैं उनमे ये बच्चे काम नहीं करेंगे
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लेकिन एक अच्छी बात थी वो लेकिन जो नया कानून बना वो 83 वाले से घटा के 3 कर दिया गया हैं यानी अब जो हैं और उसमे एक तरह से ये भी बाँट दिया गया हैं की जो 14 साल के बच्चे हैं वो जो हैं फॅमिली इंटरप्राइजेज में काम कर सकते हैं जैसे चाचा, ताऊ, फूफा, मामा, नाना नानी इसमें जो फॅमिली को डिफाइन किया हैं उसमे माता पिता तक तो ठीक हैं की बच्चे हाथ बटाते हैं.
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जैसे की आमतौर पर घर में कुछ काम रहता हैं तो बच्चे भी समय बचा कर थोडा काम कर के माता पिता के साथ अपना हाथ बंटाते हैं. कहा गया हैं उसमे की पिता के भाई, माता का भाई, माता की बहन तो ये ताऊ चाचा मामा जो हैं वो भी इस तरह से परिवार में परिवार के हिस्से में आते हैं और काम करा सकते हैं अब इसकी दिक्कत ये हैं की हम लोगो ने जिस organisation की बात कर रहे हैं बचपन बचाओ organisation तो वो लगभग 30 सालो से बच्चो को छुड़ा रहा हैं उनके जो आंकड़े हैं उनको यदि आप देखेंगे तो उसमे से 21% बच्चे ऐसे हैं जो 14 साल से कम उम्र के हैं जो अपने परिवार में काम करते थे जिनको छुड़ाया गया, जो 83 industries थी उसमे वो लोग काम करते थे इसी तरह से जो total अगर देखा जाए उसमे 83 या 84% का आंकड़ा हैं जो बच्चे रिश्तेदारों के यहाँ ही काम करते थे.
एक तो ये जो हैं ये जो कानून हैं जो इसमें हैं अभी ये कहा गया हैं ये एक संग्य अपराध हैं सजा बड़ा दी गयी हैं लेकिन ये जो अपराध हैं वो शमी अपराध की श्रेणी में आ गया हैं.
यानी DM अगर कोई पहली बार पकड़ा जाता हैं जो बाल श्रम करा रहा हैं तो DM कुछ जुरमाना लगा के उसे छोड़ सकता हैं तो इससे बाल शहरम बढेगा तो ये कुछ चीज़े हैं जो सूचि को छोटा कर देना इसके बाद आपने देखा की फॅमिली एंटरप्राइज के नम पर लोगो का काम पर लगा देना तो ये कुछ ऐसी चीज़ हैं जो कानून में लूपहोल हैं. हम यहाँ मंशा की बात नहीं कर रहे हैं हो सकता हैं मंशा अच्छी हो पर ये जो लूपहोल हैं उससे बाल श्रम को बढ़ावा मिलेगा.
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ये जो हमे आधुनिक भारत में समझ में आती हैं. 18६० में ब्रिटेन में जो ब्रिटन की क्रान्ति शुरू हुई तो बाल मजदूरी की समस्या वहां पैदा हुई. उससे पहल बाल मजदुर खेती हर समाज या फिर जो छोटे छोटे कॉटेज इंडस्ट्री पर टिक्का हुआ समाज होता हैं उसमे बाल मजदूरी को समस्या नहीं माना गया हैं उसमे उसे आनंद माना गया हैं चुकी इंडस्ट्री जो हैं वो बहुत मॉस प्रोडक्शन करती हैं और उसमे की तरह की परेशानियां सामने आती हैं और उन्हें केवल एक mature आदमी उन्हें Finish कर सकता हैं बच्चे उनमे कही दब से जाते हैं चाहे आप पीपल नगरी का मसला ले ले.
चाहे आप कालीन उद्योग का मसला ले ले चाहे बाकी भी आप उद्धरण ले सकते हैं एक बात ये हैं की बच्चो को उनके परिवार के अंतर्गत तब तक तो वो सुरक्षित थे जब तक वो खेती किसान के साथ में अगर बच्चा बुगी परर बैठ गया और दादाजी ने भैसे का रस्सा उसको पकड़ा दिया और किसी विभाग के अधिकारी ने देख लिया की ये भैसा या बुगी हांक रहा हैं तो दादाजी के ऊपर केस चलाना या कार्यवाई करना तो ये बात समझ में या अपच कर सकती हैं गाँव के लोगो को लेकिन जब से कंपनी आई हैं कमानियो में 12,00,000 बचे खतरनाक कामो में लगे हुवे हैं तो जो ये कपनियां जो हैं कही ना कही इनसे खतरा इनसे पैदा हुआ हैं. उद्योग से बचपन ज्यादा कुचला जा रहा हैं ना की सामाजिक सामान्य परिवेश हैं.
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बाल आस्था कहिये बाल मजदूरी कहिये ये चिमनी वाली उद्योगों से कही बढ़कर हैं उन्ही जीनो पर जहाँ पर खरती की गयी हैं चाहे कालीन उद्योग हो यया आप पोलिशिंग इंडस्ट्री हो या साडी उद्योग हो बहुत ज्यदा इस तरह के मजदुर मौजूद हैं लेकिन जहाँ पर भी इंडस्ट्री हैं मजदूरी वही पर हैं, बाल श्रम वही पर हैं. जो उनोर्गानिसे सेक्टर हैं वहां पर बा मजदूरी ज्यादा हैं जहाँ पर इंडस्ट्रियल एरिया हैं जहा पर हर जिस सिस्टेमेटिक तरीके से हो रही हैं वहां पर तो बच्चो की कोई एंट्री हैं ही नहीं जहा पर किसी भी तरह की परिभाषा नहीं हो उद्योग को लेकर वहां पर तमाम नियो का उलंघन करते हुवे काम कर रहे हैं वहां पर बच्चो को involve किया जा रहा हैं ये कहते हुवे की बच्चो को ज्यादा शोषित किया जा सकता हैं
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बच्चो को मजदूरी देकर काम करवाया जा सकता हैं ये एक दुसरे तरीके का हैं चिमनी वाले उद्योगों में और संगठित उद्योगों में ऐसा बहुत कम हैं ऐसा बहुत कम हैं लेकिन वहां पर बाल मजदूरी अपेक्षाकृत कम हैं तो सवाल यहाँ ये उठता हैं तो जैसे की यहाँ पर दादाजी की भैस वाली बात हुई तो कानून ऐसा भी नहीं हैं की वो बिलकुल अँधा होकर काम करे लेकिन वास्तविकता ये हैं की वो जहाँ पर वो काम कर रहा हैं अब तो अभ्रक का उद्योग बंद हो चूका है. तो बहुत बड़ा सवाल ये हैं की बच्चे जो बाई का मान ले लीजिये कोडरमा और गिरी अभ्रक का उद्योग जो बंद हो चूका हैं एक बहुत बड़ा सवाल हैं उनके लिए बिखरा पड़ा अभ्रक हैं वो क्या हैं
वो उनके लिए credit card हैं, ATM मशीन हैं बच्चे जाते हैं अभ्रक इक्कठा करते हैं और जाकर बेच दिया उस चीज़ को आप रोक रहे हैं. हमारा ये सवाल हैं की आप कानून पर कानून बनाए जा रहे हैं लेकिन जो वास्तविकता हैं उसको नहीं देख रहे हैं की आपने उस जगह के लिए उन लोगो के लिए किया क्या? greedy के लिए किया क्या, मायका माइनिंग इलाके के लिए किया क्या? कानून तो आप बनाए जा रहे हैं लेकिन आप क्या कर रहे हैं वो आप नहीं देख रहे.
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लेकिन अब भी सवाल यहाँ ये उठता हैं की कुम्हार का बच्चा 3 बजे स्कूल से लौट कर जो गुल्लक हैं, जो बर्तन हैं उसने उनको भी आकार देना शुरू कर दिया. ऐसे में क्या उसके पिताजी के ऊपर मामला बनना चाहिए. तो हम आपको बता दे की बिलकुल नहीं बनना चाहिए ये तो परंपरा की बात हैं लेकिन इससे पहले का जो कानून था वो कहता था की कोई भी बच्चा काम कर सकता हैं जो पुराने कानून थे उसके आधार पर 14 साल तक को बच्चा माना गया था और वो बच्चा जिसको हमने बताया खतरनाक उद्योग थे जिसको सूचि दी गयी थी वो पटाखा उद्योग हैं, ढाबा आदि हैं उनके अलावा वो काम कर सकता हैं और हम भी चाहते हैं. हमारे ख्याल से जो हमारी परंपरा रही हैं उसमे इसी हिसाब से हम सीखते हैं.
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ये बुराई भी नहीं हैं इसको होना चाहिए लेकिन जो दूसरा सवाल हैं वो ये हैं की इसको आड नहीं बनाना चाहिए जो बाल मजदूरी कराइ जाती हैं पुरे देश में बड़ा तंत्र हैं आप देखते होंगे बहुत बड़े बड़े तस्कर हैं जो बच्चो की तस्करी करते हैं इसके बारे में जानने के लिए हमे इसके मूल में जाना होगा की बच्चे जो हैं सस्ते श्रम होते हैं. आप ये देखिये अगर किसी बड़े व्यक्ति से काम करेंगे उसको आपको ज्यादा पैसा देना पड़ेगा वो मन मुताबिक़ अपना काम करेगा, उसका एक समय निर्धारित होगा लेकिन बच्चे 24 घंटे काम करते हैं तो ये बड़ी बात हैं अभी जो बात हो रही हैं
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अब जो हैं 14 से जो 15 से अट्ठारह साल के बच्चे हैं अब वो भी allow कर दिए गए हैं वो संगठित क्षेत्र में भी काम कर सकते हैं नए कानून के मुताबिक तो आप देखिये वो जो हैं एक जो व्यस्क जो किशोर हैं वो एक आपके सस्ते मजदूर मिल जाएंगे तो सवाल यहाँ पर ये हैं इसका कानून तो हैं लेकिन कानून अपनी जगह ठीक हैं कानून की जरुरत ही क्यूँ पड़े अगर समाज, लोग और हुई पहल करे तो वो हमे लगता हैं की ज्यादा अच्छी बात हैं. परिवार बच्चे के उपर पहले अधिकार किसका होना चाहिए. परिवार का, गाँव का या सरकार का. पहला धिकार तो परिवार का ही होना चाहिए और सरकार भी मना नहीं करेगी. और एक civil society भी परिवार का विरोध नहीं करेगी. विरोध ये ख रहे हैं जो फॅमिली इंटरप्राइजेज की बात हैं जैसे की उद्हरण के लिए आपको एक case study स्टडी बताते हैं.
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बच्चा हैं मेरठ का और वो काम सिखाने के नाम पर ताऊ या चाचा उसे ले आएं हैं उसकी जरी का छोटा सा काम था और वो जरी की काम फैशन की वजह से ज्यदा चलन में हिन् इसी वजह से उसमे कम करने की cost भी ज्यादा होती हैं लेकिन वो बच्चे से फ्री में काम कर रहे हैं या 10 – 20 रुपये आप देते हैं तो आप देखिये उसका बचपन भी प्रभावित हो रहा है. अगर पढने – लिखने की बात करे तो दुनिय में तमाम ऐसे अध्यन हो चुके हैं जो राष्ट्र विकसित हुवे हैं वो अपनी शिक्षा के बदौलत विकसित हुवे हैं. दुनिया की तमाम रिपोर्ट बताती हैं की अगर आप बच्चो की शिक्षा में निवेश करते हैं तो उसका कई गुना जो हैं वो राष्ट्र को मिलता हैं उके लिए skill devlopement के बाद वो ज्यादा कमाई कर लेता हैं तो सही सवाल ये हैं ना की ये की माता – पिता कराए या ना.
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क्या रास्ता हैं और उस रस्ते से civil society का क्या वास्ता हैं.
देखिये ऐसा हैं भिन्न भिन्न बच्चो के background हैं उनके आधार है. जैसे माँ बाप बहुत गरीब हैं तो वो छोटे छोटे बच्चो से मजदूरी करवाते हैं, काम करवाते हैं या फिर मगल शनि मांगने के लिए बजते हैं तो ऐसे जो ब्च्चे हैं और उनकी जो शिक्षा हैं जिन्हें ऐसी शिक्षा नहीं मिलती हैं. जो वो बच्चे जो कूड़ा बीनते हुवे दिख जाते हैं, शनि मंगल मांगते हुवे दिख जाते हैं किसी बड़ी संस्था से जुड़ जाने के बाद उनके भीतर जो बदलाव आय होता हैं उसके बारे में हम आपको बता दे – धिरे धीरे कर के उन में बदलाव आता हैं, एक दम से बदलाव नहीं आता. सबसे बड़ी बात ये होती हैं की उनके साथ आत्मीयता का व्यहवार हो. उनको अपने जैसा लगे उनको ये ना लगे की ये तो बहुत ऊँचे लोग हैं या बड़े हैं.
उनके साथ उनके जैसा बना कर अगर हम लोग काम करते हैं तो अच्छा रहता हैं. शिक्षा भी उनको देते रहते हैं उनको बंद नहीं करवाते लेकिन उनको प्रेरणा देते हैं की ये काम तुम्हारे लायक नहीं हैं. तुम मंगल, शनि मांगना बंद करो, कूड़ा बिनना बंद करो तुम अच्छे तरह से पढाई करो और हम व्यावसायिक प्रशिक्षण भही देते हैं ताकि बड़े होते होते उनके अंदर skill भी develop होते रहे. जिससे उनका आत्विश्वास बढ़ता हैं और जो श्रम हैं उसके प्रति उनका गौरव का भाव अत हैं उसके साथ.
यहाँ पर सबसे बड़ी बात ये हैं की बाल श्रम एक तरीके से कही न कही जो हैं वो उसमे बहुत बड़ा महत्वपूर्ण कारक हैं.
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शिक्षा देश में अगर उचित नहीं हैं और ऐसी शिक्षा नहीं हैं जो कही न कही किसी दिश में ले जा सके तो वो एक दिक्कत बनती हैं और देखने वाली बात हैं. अंतराष्ट्रीय स्तर पर अगर हम देखे तो जापान जैसे देश ने जब अपने सारे इलाके की अच्छी तरह से नाके बंदी कर रखी थो और अमेरिका वो देश था जो उसके अंदर घुसा और जैसे ही जापान ने उसके बाद दुनिया से संपर्क किया तो वहां के सम्राट को एक बात पहले सूझी की हमे हमारे लोगो को शिक्षा के मामले में ऊपर तक्क ले जाना हैं तो सम्राट के पास जितना भी खजाना था उन्होंने अपने देश के बच्चो के लिए, युवाओं के लिए खोल दिया उसके बाद जापान से अमेरिका और यूरोप जाने वाले शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे थे उनकी संख्या सबसे ज्यादा थी और जापान जो हैं वो प्रगति के मामले में सबसे आगे निकल गया कही न कही शिक्षा व्यक्ति को skiled बनाती हैं कुशल बनाती हैं और कार्यकुशलता से प्रगति का सीधा सीधा सम्बन्ध होता हैं.
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शिक्षा जो हैं शिक्षा की जो भूमीका हैं खासतौर पर बचपन में बच्चे के साथ उस भूमिका से आप कितना इत्तेफाक रखते हैं. शिक्षा की तो हर समाज को जरुरत होती हैं और बाल मजदूरी को सीधा शिक्षा से जोड़ कर देखिये. क्युकी शिक्षा का मतलब केवल पढना नहीं होता जागरूकता होती हैं लोग जागरूक होते हैं, बच्चे जागरूक होते हैं, नागरिक जागरूक होते हैं. और इस पर तो सर्व सम्मति हैं की शिक्षा होनी ही चाहिए लेकिन उन इलाको में आदिवासी इलाको में, दूरवर्ती इलाको
में, वहां शिक्षा की हालात क्या हैं? शिक्षा के rights क्या हैं?
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देश में 36 तरह के बोर्ड हैं लेकन शिक्षा में गुणवत्ता नाम को लेकर समानता नहीं हैं. सबसे बड़ी बात हैं की आपकी नियत क्या हैं? अगर आपकी नियत ठीक होगी तो नज़र ठीक होगी और अगर नज़र ठीक होगी तो नज़ारा भी अच्छा होता हैं. दुःख की बात हैं. माइनिंग वाले इलाको में ऐसी स्थिति हैं शिक्षा विभाग है, शिक्षा विभाग में आला अधिकारी बैठते हैं, करते क्या हैं 12 बजे तक और 1 बजे तक जब विद्यालयों में जाते हैं तो छात्रो की उपस्थिति देखिये तो 100% हैं.
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मिड डे मिल खाने के बाद बच्चे गायब हो जाते हैं. बच्चे कहाँ जा रहे हैं? बच्चे अभ्रक चुनने जा रहे हैं. वहां पर शिक्षा का अधिकार रखा गया हैं. जब तक लोग जागरूक नहीं होंगे शिक्षा को लेकर, शिक्षा विभाग के अधिकारी, शिक्षक जब तक इस मामले में प्रेरित नहीं किया जाएगा की आप शिक्षा का प्रकाश जलाइए तब तक ये अँधेरा रहेगा. शिक्षा बहुत ही जरुरी हैं
ये अलग कम से कम क्युकी हो सकता हैं की कुछ परिवार ऐसे हो जो जागरूक हो आने बच्चो के प्रति शिक्षा चाहते हो लेकिन कुछ परिवार ना भी हो ऐसा भी हो सकता हैं. लेकिन कम से कम एक गाँव के अंदर एक यूनिट के अंदर 5 – 7 लोग तो ऐसे होते होंगे जिनके अंदर इस तरह की awareness होती होगी.
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अगर उनको system अपने साथ direct attach करे जिसको participatory democracy कहते हैं, power अ सेविंग कहते हैं उनको उस शिक्षा में अगर वहां उनको अधिकार थे की चीजों को s तरह से ओर्गानिसे करे तो आपको क्या लगता हैं की इसमें किस तरह से रफ़्तार पकड़ेगी ये सारे के सारे जो समस्या हैं. जहाँ तक रफ़्तार की बात हैं तो इसमें गति आने ही वाली हैं. जब शिक्षा नहीं थी, ज्ञान नहीं था विवेक नहीं था तो स्वाभिमान जगा हैं. तो शिक्षा से व्यक्ति में स्वाभिमान तो जगता हैं.
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शिक्षा और बाल श्रम का आपस में एक ऐसा corelation हैं की अगर शिक्षा बच्चो को मिलनी शुरू हो जाए या सरकार उस पर invest करे गुणवत्ता वाली शिक्षा पर तो क्या ये देश को ही मिलने वाला हैं.
देखिये शिक्षा ही एक अकेला ऐसा माध्यम हैं जो बाल श्रम को पूरी तरह खत्म कर सकता हैं. और जो participatory democracy की बात करते हैं तो ऐसे experiment हो रहे हैं. तो एक बाल मिथ ग्राम की अवधारणा कर के हमारा concept हैं.
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nice…
धन्यवाद हंस जी 🙂