एकता में शक्ति हैं | Ekta Mein Shakti Hain
एकता में शक्ति हैं | Ekta Mein Shakti Hain : किसी बिल में एक महा भयंकर सर्प निवास करता था। उसका नाम था, अतिदर्प। नाम के अनुरूप ही वह सर्प महाअभिमानी था। छोटे-छोटे जीवों की तो गिनती ही क्या, वह खरगोशों तक को निगल जाया करता था। एक दिन की बात है कि वह नित्य के मार्ग से बाहर न निकलकर अन्य संकरे मार्ग से निकलने लगा। पत्थरों की नोकें चुभने के कारण उसका शरीर जगह-जगह से जख्मी हो गया और उन भागों से रक्त टपकने लगा. उसके बिल के समीप रहने वाली चीटियों को जब उसके रक्त की गंध मिली तो वे उसके शरीर पर चढ़ गई और घावों में घुसकर उसका रक्त चूसने लगीं। सर्प ने अनेक चींटियों को मार डाला, किंतु चींटियों की संख्या बढ़ती ही गई। सर्प को उन्होंने अशक्त कर डाला। वह अधिक दिनों तक जीवित न रह सका और शीघ्र ही उसका प्राणान्त हो गया। यह कथा सुनाकर स्थिरजीवी कहने लगा-‘इसलिए मैं कहता हूं कि जनसमूह से विरोध मोल लेना नहीं चाहिए। बस अब हमको यही करना चाहिए कि हम छल नीति को स्वीकार करें।
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एकता में शक्ति हैं | Ekta Mein Shakti Hain : मैं स्वयं गुप्तचर का काम करूंगा। तुम लोग मुझसे लड़कर, मुझे लहूलुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर स्वयं सपरिवार ऋष्यमूक पर्वत पर चले जाओ। मैं तुम्हारे शत्रु उल्लुओं का विश्वासपात्र बनकर उन्हें वृक्ष पर बने अपने दुर्ग में बसा लूगा, और अवसर पाकर उन सबका नाश कर दूंगा। तब फिर तुम सब यहां आ जाना।’ यह कहकर स्थिरजीवी ने मेघवर्ण के साथ स्वयं ही बनावटी झगड़ा आरंभ कर दिया। जब अन्य कौओं ने यह देखा तो वे स्थिरजीवी को मारने के लिए दौड़े। मेघवर्ण ने उन्हें रोकते हुए कहा-तुम सब अलग हट जाओ। मैं स्वयं इस बूढ़े को सजा देता हूं।’ मेघवर्ण ने नकली रक्त का प्रबंध कर लिया था। उसने उस रक्त को स्थिरजीवी के शरीर पर लेप दिया+ इस प्रकार उसको आहत-सा करके मेघवर्ण अपने परिवार तथा प्रजा को लेकर ऋष्यमूक पर्वत की ओर उड़ गया। – उल्लू की मित्र कृकालिका ने भी जब यह सब देखा तो उसने उल्लूराज के पास पहुंचकर सारी बातें बता दीं।
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एकता में शक्ति हैं | Ekta Mein Shakti Hain : उल्लूराज ने भी रात आने पर दल-बल समेत उस वृक्ष पर जाकर अधिकार कर लिया। उसने सोचा कि भागते हुए शत्रु को नष्ट करना अधिक सहज होता है, इसलिए उसी समय उसने कौओं पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया । अभी वह अपनी सेना को कौओं पर आक्रमण करने का आदेश देने की सोच ही रहा था कि नीचे पड़े स्थिरजीवी ने कराहना आरंभ कर दिया। उसे सुनकर सबका ध्यान उसकी ओर चला गया। उल्लू नीचे पड़े स्थिरजीवी को मारने के लिए नीचे झपटे। तभी स्थिरजीवी ने कहा-‘इससे पूर्व कि तुम मुझे मार डालो, मेरी एक बात सुन लो। मैं मेघवर्ण का सबसे पुराना मंत्री हूं। मेघवर्ण ने ही मुझे घायल करके इस तरह फेंक दिया है। मैं तुम्हारे राजा से बहुत-सी बातें कहना चाहता हूं। उनसे मेरी भेट करवा दो । ” उल्लुओं ने यब बात उल्लूराज को बताई तो वह स्वयं वहां पहुंचा। स्थिरजीवी की ऐसी दशा देखकर उसने आश्चर्य से पूछ-तुम्हारी यह दशा किसने कर दी !”
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एकता में शक्ति हैं | Ekta Mein Shakti Hain : स्थिरजीवी बोला-‘देव ! बात यह हुई कि दुष्ट मेघवर्ण आपके ऊपर सेना सहित आक्रमण करना चाहता था। मैंने उसे रोकते हुए कहा कि शत्रु बलशाली हैं, उनसे युद्ध न करके संधि कर लो। मेरी बात सुनकर मेघवर्ण ने समझा कि मैं आपका हितचिंतक हूं। इसलिए उसने मेरी यह हालत कर दी। अब आप ही मेरे स्वामी हैं। जैसे ही मेरे घाव भर जाएंगे, मैं स्वयं आपके साथ जाकर मेघवर्ण को खोज निकालूगा और उसका सर्वनाश करने में आपका सहायक बनूंगा।’ स्थिरजीवी की बात सुनकर उल्लूराज ने अपने सभी पुराने मंत्रियों से सलाह की। उसके पास भी पांच मंत्री थे, रक्ताक्ष, क्रूराक्ष, दीप्तांक्ष, वक्रनाल एवं प्राकारकर्ण। पहले उसने रक्ताक्ष से पूछा- इस शरणागृत शत्रु मंत्री के साथ कैसा व्यवहार किया जाए ?’ तब रक्ताक्ष ने कहा—‘महाराज ! इसे तत्काल मार देना चाहिए। शत्रु को निबल अवस्था में ही मार देना चाहिए, अन्यथा बलशाली हो जाने पर वह अजेय हो जाता है। कहा भी गया है कि एक बार टूटकर जुड़ी प्रीत स्नेह के अतिशय प्रदर्शन से भी नहीं बढ़ सकती।’ उल्लूराज ने पूछा-‘वह कैसे ?’ तब रक्ताक्ष ने उसे यह कथा सुनाई।
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