Durga Ashtami Vrat Katha | दुर्गा अष्टमी व्रत कथा

Durga Ashtami Vrat Katha | दुर्गा अष्टमी व्रत कथा

Durga Ashtami Vrat Katha : दुर्गा अष्टमी व्रत कथा के अनुसार देवी सती ने पार्वती रूप में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी. एक बार भगवान भोले नाथ ने पार्वती जी को देख कर कुछ कह दिया जिससे देवी का मन आहत हो गया और पार्वती जी तपस्या में लीन हो गयी. इस प्रकार वर्षो तक कठोर तपस्या करने के बाद जब पार्वती नहीं आई तो उनको खोजते हुवे भगवान शिव उनके पास पहुंचे वहां पहुँच कर माँ पार्वती को देख कर भगवान शिव आश्चर्यचकित रह गए.

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Durga Ashtami Vrat Katha

 

Durga Ashtami Vrat Katha

 

Durga Ashtami Vrat Katha : पार्वती जी का रंग अत्यंत ओझ पूर्ण था, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत, कुंध के फूल के समान धवल दिखाई पड़ रही थी, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने ने देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान दिया. एक कथा के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे उनका शरीर काला पड़ गया. देवी की तपस्या से प्रसन्न हो कर भगवान उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और शिव जी उनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं तब देवी विद्दयुत के समान अत्यंत गौर वर्ण की हो जाती हैं और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा था.

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Durga Ashtami Vrat Katha

 

Durga Ashtami Vrat Katha : महा गौरी रूप में देवी करुनामय स्नेहमय शांत और म्र्दंग दिखती हैं देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुवे देव और ऋषिगण कहते हैं ”सर्वमंगल मांगलये शिवे सर्वाध्य साधिके शरन्य अम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते” महा गौरी जी से सम्बंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित हैं इसके अनुसार एक सिंह काफी भूखा था जब वो भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहाँ देवी उमा तपस्या कर रही थी. देवी को देख कर सिंह की भूख और बढ़ गयी परन्तु वह देवी की तपस्या से उठने का इंतज़ार करते हुवे वही बैठ गया इस इंतज़ार में वह काफी कमज़ोर हो गया. देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देख कर उन्हें उस पर दया आ गयी और माँ उसे अपनी सवारी बना लेती हैं क्यूंकि इस प्रकार से उसने भी तपस्या की थी इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल भी हैं और सिंह भी हैं.

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