द्रोण का जन्म : समय आने पर एक दिन द्रोण से एक दिव्य शिशु का जन्म हुआ। महर्षि भरद्वाज ने इसका नामकरण किया’ द्रोण’।
शिशु द्रोण का पालन-पोषण महर्षि भरद्वाज के आश्रम में बड़े लाड़-प्यार के साथ होने लगा। सभी आश्रमवासी शिशु द्रोण को बड़ा स्नेह करते। महर्षि भरद्वाज ने शिशु को माता और पिता दोनों का भरपूर प्रेम-स्नेह दिया। | द्रोण बाल्यकाल से ही बुद्धि और प्रतिभा के धनी थे। इसलिए उन्हें आचार्य अग्निवेश के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए भेज दिया गया। मन लगाकर आचार्य अग्निवेश के आश्रम में बालक द्रोण विद्याध्ययन करने लगा। ज्यों-ज्यों समय बीतता रहा, द्रोण की प्रतिभा में निखार आता गया।
द्रोण के परिश्रम, लगन और विद्या के प्रति गहन अनुराग को देखते हुए आचार्य अग्निवेश उसे अत्यंत स्नेह करते थे।