धुर्व वीर | Dhurv Veer
धुर्व वीर | Dhurv Veer : राजा उत्तन्पाद की दो रानियाँ थी. बड़ी रानी का नाम सुनीति था। उसका ध्रुव नाम का एक है पुत्र था। छोटी रानी का नाम सुरुचि था और वह राजा की प्रिय थी। उसने अपने पुत्र का नाम उत्तम रखा। एक दिन उत्तम राजा की गोद में बैठा था। तभी ध्रुव वहाँ आया और उसने भी राजा की गोद में बैठने की इच्छा प्रकट की। इस पर रानी सुरुचि ने कहा, “चले जाओ, ध्रुव! यदि तुम राजा की गोद में बैठना चाहते हो, तो तुम्हें मेरा पुत्र होना चाहिए था।” ध्रुव को यह सब बहुत बुरा लगा, वह शिकायत करने के लिये अपनी माँ के पास गया। वहाँ जाकर उसने सारी कथा अपनी माँ को बता दी। माँ ने कहा, “ध्रुव मेरे पुत्र, घबराओ नहीं। वह भी तो तुम्हारी माँ के समान ही है।” “माँ, क्या कोई इस संसार में पिताश्री से भी बड़ा है?” “हाँ पुत्र, विष्णु भगवान् सारे संसार को सुरक्षित रखते हैं। वह तुम्हारे पिता से भी बड़े हैं।”
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धुर्व वीर | Dhurv Veer : ‘तब तो माँ, मैं उनकी गोद में बैठूँगा” यह कहकर दस-बारह वर्षीय बालक ध्रुव ने घर छोड़ दिया और जंगल की और चल दिया। जंगल केमार्ग में उसे नारद मुनि मिले, उनके बार-बार पूछने पर उसने अपनी इच्छा बता दी। तब नारद बोले, “मेरे पुत्र, तुम्हें ‘ओम नमोः भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप कर तपस्या करनी पड़ेगी। इससे भगवान् विष्णु तुमसे प्रसन्न हो जाएँगे।” बालक ध्रुव ने नारद मुनि की बात मान ली। पहले माह में उसने पेड़ों के फल – फूल तीन दिन में एक बार खाए। दूसरे माह में उसने छ: दिनों में केवल एक बार सूखी घास व पत्तियाँ ही खाई। तीसरे माह में नौ दिन में उसने केवल एक बार खाया और पानी पीकर गुजारा किया। पाँचवे माह तक उसने खाना पीना छोड़ दिया। वह एक पैर पर खड़ा होकर भगवान् के नाम का जाप करता रहा। उसकी तपस्या का ताप देवलोक अर्थात् स्वर्ग तक पहुँचा। सभी देवता, भगवान् विष्णु के साथ ध्रुव को देखने गए।
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धुर्व वीर | Dhurv Veer : तब भगवान् विष्णु ने ध्रुव को दर्शन दिए और बोले, “पुत्र, तुम क्या चाहते हो?” इस पर ध्रुव बोला, “हे प्रभु, आप तो सब जानते हैं। आप तो सृष्टि के संरक्षक हैं। आपके दर्शन पाकर मैं धन्य हो गया। इसके अतिरिक्त मैं और क्या चाह सकता हूँ।” भगवान् विष्णु मुस्कुराए और बोले, “तुम मेरे भक्त होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी हो। मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि जब तक आकाश में तारे चमकते रहेंगे, तब तक तुम्हारा नाम व प्रसिद्धि ब्रह्माण्ड में फैली रहेगी। सभी सितारे व ग्रह तुम्हारे चारों और चक्कर लगाएँगे। यहाँ तक कि यात्री जब भी अपना मार्ग भूल जाऐंगे, तो तुम उन्हें मार्ग दिखाओगे।” सो यही कथा है ध्रुव तारे की। बाद में ध्रुव अपने माता-पिता के पास आया। उन्होंने उसका भरपूर स्वागत् किया और वह अपने परिवार के साथ हँसी-खुशी रहने लगा। कई साल गुजर गए और उत्तम व ध्रुव युवावस्था में आ गए। तब ध्रुव ने प्रजापति शिशु कुमार की पुत्री भूमि से विवाह किया।
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धुर्व वीर | Dhurv Veer : उनके दो पुत्र हुए, कल्प व वत्सर। उत्तम का विवाह नहीं हुआ। कुछ वर्षों बाद ध्रुव का पुन: इला के साथ विवाह हुआ, जो वायु देव की पुत्री थी। उनके एक पुत्री तथा उत्कल नाम के पुत्र ने जन्म लिया। एक दिन उत्तम हिमालय पर शिकार के लिए गया। वहाँ उसका यक्ष के साथ किसी बात पर युद्ध हो गया। नतीजतन उस युद्ध में उत्तम मारा गया। उसकी माँ सुरुचि अपने पुत्र की मृत्यु की सूचना को सहन नहीं कर पाई और यह सूचना सुनकर उनकी भी मृत्यु हो गयी. इस घटना के घटने से ध्रुव बहुत ही अधिक परेशान व चिड़चिड़े हो गए। वह यक्ष से अपने भाई की मृत्यु का बदला लेना चाहते थे। तब ध्रुव ने घोषणा की ‘जब तक मैं सभी यक्षों को इस पृथ्वी से समाप्त नहीं कर लेता, तब तक मैं चैन से नहीं बैठूँगा.”
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धुर्व वीर | Dhurv Veer : क्योंकि उनमें से ही किसी एक ने मेरे भाई उत्तम को मारा है।” अत: ध्रुव अकेले ही यक्षों का नाश करने के लिये अल्कापुरी की ओर चल दिए, जहाँ यक्ष रहते थे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने अपना शंख इतनी तेजी से बजाया कि उसकी ध्वनि पूरी अल्कापुरी में गूँज उठी। इस गूँज की आवाज सुनकर यक्षराज ने अपने सहायक से इस विषय में पूछा। उन्होंने यक्षराज को ध्रुव की घोषणा के विषय में बताया। शीघ्र ही, ध्रुव एक लाख तीस हजार यक्षों से घिर चुके थे। सभी यक्षों के साथ स्वयं यक्षराज भी युद्ध के लिये वहाँ पहुँचें हुए थे। एक ही साथ सभी यक्षों ने ध्रुव पर तीर चलाए, परन्तु एक भी तीर ने ध्रुव को हानि नहीं पहुँचाई और न ही उसके रथ को छू सका।
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धुर्व वीर | Dhurv Veer : ध्रुव ने अपना दिव्य धनुष निकाला और अपने दिव्य शस्त्रों का प्रयोग किया। शीघ्र ही कुछ यक्ष मृत्यु को प्राप्त हो गए और कुछ डर कर भाग गए। यह देखकर यक्षराज ने युद्ध में मायावी चालों तथा शस्त्रों का उपयोग किया। जिसके फलस्वरूप खून की वर्षा होने लगी तथा माँस के टुकड़े आकाश से ध्रुव पर गिरने लगे। परन्तु ध्रुव इसके लिए पहले ही से तैयार थे। उन्होंने अपना नारायण शस्त्र धनुष पर चढ़ाया तथा उसे यक्षराज की ओर छोड़ दिया। नारायण शस्त्र ने यक्षराज को मार गिराया। यक्षराज के मरते ही सभी मायावी चालें समाप्त हो गई। यह देखकर देवताओं ने ध्रुव पर फूलों की बरसात की।
ध्रुव के क्रोध को शान्त करने के लिए उनके दादा स्वयम्भू मनु भी उस स्थान पर पहुँच गए। उनका आशीर्वाद लेकर ध्रुव शान्त होकर अपने महल में वापस आ गए। उनके राज्य की प्रजा लोगों ने वीर ध्रुव की प्रशंसा की, जिन्होंने अपने सौतेले भाई की हत्या का बदला लिया।
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