नेटाल इंडियन कांग्रेस : प्रिटोरिया में चल रहा मुकदमा सेठ अब्दुल्ला जीत गए थे। वहां से गांधी जी डरबन लौट आए। | उन्होंने वापस भारत
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तूफान में फंसा गांधी परिवार : दक्षिण अफ्रीका में तीन वर्ष के प्रवास में बैरिस्टर गांधी की वकालत चल निकली थी। रंगभेदी सरकार के विरुद्ध
गांधी जी का क्षमादान : उसी समय पुलिस सुपरिंटेंडेंट एलजेंडर और उनकी पत्नी उधर से आ निकले। उन्होंने गांधी जी । और मिस्टर लाटन को
गांधी पर पथराव और मारपीट : दक्षिण अफ्रीका के गोरे नहीं चाहते थे कि गांधी जी दुबारा अफ्रीका में प्रवेश करें। इसलिए उन्होंने दोनों स्टीमरों
क्रांतिकारी परिवर्तन : बैरिस्टर गांधी के क्षमादान का आक्रमणकारी लड़कों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। वे अपनी हरकत पर बेहद शर्मिंदा हुए। उधर इंग्लैंड के
गांधी जी की स्वदेश वापसी : अब दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी का कोई काम नहीं रह गया था। वे भारत लौटना चाहते थे। लेकिन
गांधी जी शांति-निकेतन में : गांधी जी बंबई में रहने लगे। बीच-बीच में वे भारत-भ्रमण पर भी जाते रहे। परंतु इसी बीच उन्हें फिर से
साबरमती आश्रम की स्थापना : बर्मा उन दिनों भारत का ही एक हिस्सा था। उसकी राजधानी रंगून थी। गुरुदेव से मिलकर गांधी । जी रंगून
गांधी जी चंपारन में : सन् 1916 में लखनऊ में हुए कांग्रेस अधिवेशन में चंपारन को लेकर एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें वहां के
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में : राजनीति के प्रथम चरण में गांधी जी काशी-हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में शामिल हुए। इस समारोह में भारत की
जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड : सन् 1918 में गांधी जी ने अहमदाबाद के मिल मजदूरों की हड़ताल का नेतृत्व किया। तभी विश्वयुद्ध समाप्त हो गया। अंग्रेजों
असहयोग आंदोलन : सन् 1920 में कलकत्ता अधिवेशन में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा। उसका पंडित मोतीलाल नेहरू ने तो समर्थन किया,
गांधी जी जेल में : शांतिपूर्ण ढंग से चलाए जा रहे इस असहयोग आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजों ने गोलियों और लाठियों का सहारा
एकता के पक्षधर : गांधी जी को जनता अब प्यार से ‘बापू’ और ‘महात्मा’ का विशेषण लगाकर पुकारने लगी थी। हिंदूमुस्लिम एकता के वे प्रबल
पूर्ण स्वराज की मांग : 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में, जिसकी अध्यक्षता पंडित मोतीलाल नेहरू के पुत्र पंडित जवाहरलाल नेहरू कर